Explained: Doomsday Vault क्या है, इसे क्यों बनाया गया, भारत समेत 100 देशों ने रखा इसमें खजाना

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क्या होगा जब वैज्ञानिकों की चेतावनियां सच होने लगेंगी? क्या होगा जब वाकई प्रकृति हमसे मुंह मोड़ लेगी? क्या होगा अगर वाकई धरती का सारा पानी सूख गया, या फिर सारे ग्लेश्यिर अचानक पिघलकर धरती को डुबो दें? अगर एलियन्स ने वाकई इंसानों पर हमले कर दिए तो? रोबोट भविष्य में धरती पर राज करने लगे तो क्या होगा?

ये सारे सवाल पहेलियों की तरह अनसुलझे हैं? हो सकता है कि आज ये लगे कि हम काल्पनिक खतरों की बात कर रहे हैं. पर जरा सोचिए कि हवाई जहाज के अविष्कार से पहले इंसानों के परिंदों की तरह उड़ने की बात भी कोरी कल्पना ही थी. खतों की दुनिया में बेतार मोबाइल फोन और वीडियो कॉल कल्पना ही थे.

पर इंसानों ने वो सब कर दिखाया है. ऐसे में वैज्ञानिकों को इस बात में कोई शक महसूस नहीं होता कि कल को इंसान और दुनिया ऐसे खतरों से घिरी होगी जिनका तोड़ उसके पास ना हो. इन्ही खतरों को ध्यान में रखते हुए दुनिया के बहुत से देशों ने अंदर ही अंदर तैयारियां शुरू कर दी हैं. भले ही प्रलय आने में सालों हैं. भले ही एलियन्स से अभी हमारा संपर्क नहीं हुआ है.

भले ही रोबोट फिलहाल हमारे इशारों पर काम कर रहे हैं. पर अगर इन्होंने इंसानियत को खतरे में डाला तो उस मुसीबत के लिए खुद को तैयार रखना बहुत जरूरी है. अच्छी बात है कि दुनिया ने इसकी तैयारी कर ली है डूम्स डे वॉल्ट का निर्माण किया है. Doomsday Vault क्या है, इसे क्यों बनाया गया है?

100 देशों की मेहनत का नतीजा है Doomsday Vault

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65 मिनियन साल पहले आखरी प्रलय आई थी. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौरान हमने डायनासोर के साथ साथ बहुत सी खाद्य प्रजातियों और जीव जंतुओं की प्रजातियों को खो दिया. अगर ये प्रजातियां हमारे पास होती तो इंसानों के लिए काफी मददगार होती. खैर अब जब अगली बार प्रलय आएगी तब भी अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाएगी पर हम प्रजातियों को पूरी तरह ना खो दें इसलिए उन्हें एक तरह के ग्लोबल जींन बैंक में सहेज कर रखा जा रहा है. जिसे 100 देशों की सरकारों के सहयोग से बनाया जा रहा है. इसे डूम्स डे वॉल्ट का नाम दिया गया है. डूम्स डे वॉल्ट नार्वे के पहाड़ोंकी तलहटी में तैयार किया गया है.

जानकारी है कि यह वॉल्ट 2008 में ही बनकर तैयार हो गया था, पर दुनिया को इसके बारे में बहुत बाद में मालूम हुआ. हालांकि, यहां अभी भी निर्माण कार्य और खाद्य प्रजातियों को सहेंजने का काम जारी है. जहां डूम्स डे वॉल्ट तैयार हुआ है वो स्थान उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीक है. जो भी देश इस बैंक में अपने बीजों को रखना चाहते हैं उनको नॉर्वे सरकार के साथ एक डिपॉज़िट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने होते हैं. यहां पर यह बात बतानी जरूरी है कि इस बैंक में जमा किये गए बीजों पर मालिकाना हक़ बीज जमा कराने वाले देशों का ही होगा, नार्वे सरकार का नही.

सीरिया उठा चुका है Doomsday Vault का बड़ा लाभ

Doomsday Vaultmemphismagazine

डूम्स डे वॉल्ट का इस्तेमाल करने वाला सीरिया पहला देश था. सिविल वॉर के दौरान सूखे इलाकों में अनाज की कमी हो गई थी, ऐसे में पहली बार वॉल्ट का इस्तेमाल किया गया. हजारों की तादाद में बीज सीक्रेट शिपमेंट के जरिए मोरक्को और लेबनान भेजे गए थे. गेंहू, जौ, चने और दाल के करीब 38 हज़ार सैंपल भेजे गए, लेकिन सीरिया में जंग के हालात के चलते इनका ठीक ढंग से इस्तेमाल नहीं हो सका. हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि सीरिया में भले ही इन बीजों का सही इस्तेमाल नहीं हो सका लेकिन, प्राकृतिक आपदा यानी की बाढ़ या अकाल के समय ये बीज दुनिया भर के लिए कारगर हैं.

Doomsday Vault को मिसाइल भी नहीं भेद सकती?

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जमीन से लगभग 120 मीटर नीचे बनाए गए इस तहखाने के दरवाजे बुलेटप्रूफ हैं, जिसे मिसाइल से भी भेद नहीं जा सकता. यह न्यूक्लियर वॉर, महामारी, प्रलय जैसी स्थिति के बाद धरती पर खेती की दोबारा शुरुआत करने के लिए वॉल्ट मदद करेगी. इस वॉल्ट में दुनिया के करीब सभी देशों के 8 लाख 60 हजार से ज्यादा फसलों के बीज, फलियां, गेहूं और चावल के सैम्पल जमा किए गए हैं.

खास बात ये है कि  इस तिजोरी को एक साल में सिर्फ 3 या 4 बार बीज जमा करने के लिए खोला जाता है. वॉल्ट का डिजाइन भी अनोखा है. यह ग्रे कॉन्क्रीट से बना है और 400 फुट लंबा टनल माउंटेन है. जो कि पूरी तरह बर्फ से ढंका है. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बिजली न होने की स्थिति में भी इसमें 200 सालों तक बीज, बर्फ में जमे रह सकते हैं.

वॉल्ट में 8 लाख 60 हज़ार से ज़्यादा किस्म के बीज रखे जा चुके हैं, जबकि इसकी कैपिसिटी करीब 45 लाख किस्म के बीजों को संरक्षित करने की है. वॉल्ट में एक चैंबर है और चैंबर के भीतर 3 तिजोरियां हैं. हरेक में करोड़ों बीज रखे जा सकते हैं. फिलहाल केवल एक ही तिजोरी काम में आ रही है.

तिजोरी का दरवाजा बर्फ की मोटी परत से ढंका हुआ है. इसके भीतर भी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से तापमान माइनस 18 डिग्री पर रखा जाता है ताकि बीज सेफ रहें. पूरे सिस्टम को इस तरह डिजाइन किया गया है कि अगर तिजोरी तक बिजली की सप्लाई बंद हो जाए तो भी बीज कई सौ सालों तक सेफ रहे. इस वॉल्ट में अमेरिका, यूरोप जैसे देशों के साथ यूक्रेन और भारत ने भी अपने यहां की फसलों के बीज संरक्षित करवाएं हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि बायोडाइवर्सिटी इतनी कम हो चुकी कि अब लगभग  30 प्रकार की फसलें ही हमारे काम आ रही हैं. मिसाल के तौर पर चीन 1950 के दशक में जो अनाज  या फल-सब्जियां खाता था, आज वहां 10 किस्में ही बाकी रहीं. यही हाल दुनिया के बाकी देशों का है. ऐसे में वॉल्ट ने उन खत्म हो चुकी फसलों के बीच भी संभाले हुए हैं ताकि किसी समय काम आ सकें.