Health Challenges Of Prolonged Tunnel Entrapment: पिछले कुछ हफ़्तों से उत्तराखंड का उत्तरकाशी सुरंग चर्चा में है. लम्बे प्रयास के बाद उत्तरकाशी सुरंग में फंसे सभी मजदूरों को निकाल लिया गया है. प्रशासन के मुताबिक़ सभी मजदूर स्वस्थ हैं. रेस्क्यू के बाद पीएम ने मजदूरों से बात भी की.
पीएम मोदी और मजदूरों की बातचीत सोशल मीडिया पर वॉयरल है. वायरल वीडियो में मजदूर सुरक्षित दिखाई दे रहे हैं. किन्तु, विशेषज्ञों का कहना है कि लगभग 18 दिनों तक मजदूरों को सुरंग के अंदर रहना पड़ा है, इस वजह से उनके शरीर पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़े होंगे. वो प्रभाव कौन से हो सकते हैं आइए जानते हैं:
लोगों में अच्छी नींद और भूख की हो सकती है समस्या
एक्सपर्ट्स की मानें तो सिल्कयारा जैसी सुरंग से लंबे समय बाद बाहर निकलने के बाद लोगों को सबसे अधिक नींद की दिक्कत हो सकती है. कुछ वक्त तक मजदूरों को बदहजमी और शरीर में कमजोरी का सामना करना पड़ सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करते वक्त एक मजदूर ने बताया कि वो लोग अंदर योग किया करते थे.
योग और व्यायाम से शरीर पर सकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ा होगा. किन्तु Food Department के एक डॉक्टर के मुताबिक़ मजदूरों के अंदर हल्का गुस्सा बढ़ा होगा. क्योंकि, हर रोज जिंदगी के लिए जंग लड़ते हुए उनके Sentiment पर असर स्वाभविक है. हो सकता है कि कुछ दिनों तक उनके रिश्ते भी प्रभावीत हों. कई दिनों तक सुरंग के अंदर के घुटन को भूलना भी उनके लिए मुश्किल हो सकता है.
Claustrophobia का सामना करना पड़ सकता है?
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें बंद कमरे में घुटन होने लगती है. इसे क्लॉस्ट्रोफोबिया भी कहते हैं. यानी बंद जगहों में जाने पर बेचैनी वाली घबराहट महसूस होने लगती है. क्लॉस्ट्रोफोबिया की स्थिति में चिंता, घबराहट, तेज दिल की धड़कन, सांस लेने में तकलीफ, पसीना, चक्कर, माइग्रेन और उल्टी के लक्षण आने लगते हैं.
इसीलिए किसी सुरंग, या खदान में जब लोग फंस जाते हैं तो सबसे ज्यादा घुटन का एहसास होता है. घुटन पैदा होने पर चिंता और बेचैनी होती है. इस बेचैनी का शरीर पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. बेचैन लोगों को नींद कम आती है और भूख भी नहीं लगती. पर Treatment से कुछ वक्त बाद सब कुछ पहले जैसा हो सकता है. क्लॉस्ट्रोफोबिया के लिए Psychotherapy सबसे अच्छा माध्यम है.
लोगों के अंदर पैनिक अटैक का भी हो सकता है खतरा
Psychiatrists के मुताबिक़ सुरंग में लंबे वक्त तक रहने की वजह से घबराहट बढ़ जाती है. इससे पैनिक अटैक का भी खतरा बना रहता है. पैनिक अटैक आने से दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं. सांस लेने में भी दिक्कत होती है. चक्कर और कंपकंपी की शिकायत भी आ सकती है. पैनिक अटैक का खतरा किसी को भी हो सकता है. सुरंग में रहे मजदूरों पर इसका विशेष खतरा नहीं है. पर मनोचिकित्सकों के मुताबिक आने वाले कुछ महीनों तक मजदूरों के शरीर में कोई ना कोई समस्या बनी रहेगी.
पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का रिस्क हो सकता है?
कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक एक बार सुरंग में अंदर फ़ंसे रहने का सदमा ख़त्म होने के बाद व्यक्ति फ़्लैशबैक में जा सकता है. फ़्लैशबैक में जाने वाले व्यक्ति को सुरंग में फ़ंसे होने की स्थिति का एहसाह होता है. उस स्थिति को फिर से महसूस करने पर चिंता की स्थिति पैदा हो सकती है जिसे मनोवैज्ञानिक लोग पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं.
Silkyara सुरंग के अंदर कितने दिनों तक रहे मजदूर?
17 दिन से मजदूर सुरंग के अंदर जिंदगी की जंग लड़ रह थे. उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा में दिवाली के दिन Under Construction सुरंग धंस गई थीं. सुरंग के धंस जाने से करीब आठ राज्यों के करीब 41 मजदूर फंस गए थे. इन मजदूरों को लगातार निकालने का प्रयास किया जा रहा था.
28 नवंबर को देर शाम सभी मजदूरों को सुरंग से सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. उत्तराखंड प्रशासन ने मजदूरों को सुरक्षित घर भेजने और उनके अच्छे उपचार की व्यवस्था की है. सुरंग से बाहर निकलने के बाद मजदूरों ने मीडिया से भी बात की. बातचीत के दौरान सभी मजदूर स्वस्थ और सुरक्षित दिखाई दे रहे हैं.