Explained: क्या है Smiling Death, इसमें मरने से पहले इंसान अनायास ही मुस्कुराने क्यों लगता है?

मौत के बाद क्या होता है, या मौत के रहस्य को लेकर पूरी दुनिया उलझी हुई है. बड़े से बड़े वैज्ञानिक इस रहस्य पर ऐसा कुछ भी नहीं कह पाए हैं, जो सार्वभौमिक हो. मौत के रहस्य पर हर धर्म की अपनी अलग विवेचना है. मौत के भी कई अलग-अलग प्रकार हैं. कोई आकस्मिक मौत मरता है, तो कोई किसी दुर्घटना से.

हर कोई किसी न किसी वजह से मरता है, किन्तु एक ऐसी भी मौत होती है जिसमें मरने वाला मरने से पहले मुस्कुरा रहा होता है, और इस प्रकार की मौत को ‘ स्माइलिंग डेथ’ कहते हैं. ये ऐसी मौत है कि इसमें दर्द से कराहते हुए व्यक्ति भी हंसते हुए मरते हैं. इसे क्रश सिंड्रोम भी कहा जाता है. क्या है Smiling Death, और इसमें मरने से पहले इंसान अनायास ही मुस्कुराने क्यों लगता है, आइए जानते हैं:

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आखिर Smiling Death क्या है?

भूकंप, या प्राकृतिक आपदा आ जाने के बाद मलबे में दबे व्यक्ति के खून में पोटैशियम ज्यादा मात्रा में बहने लगता है जिससे दिल की धड़कन असंतुलित हो जाती है, और व्यक्ति को शॉक लगता है. शॉक लगने से इंसान की मौत हो जाती है. इस तरह की मौत से पहले इंसान अनायास ही हंसने लगता है. यदि व्यक्ति अंदरूनी रूप से भयंकर पीड़ा में हो तब भी वो हंस रहा होता है. इसी वजह से इसे Smiling Death कहते हैं.

Blood का फ्लो क्यों रुक जाता है?

भयंकर प्राकृतिक आपदा आ जाने के बाद कई बड़ी-बड़ी इमारतें गिर जाती हैं, जिनकी वजह से एक साथ कई लोगों की जान चली जाती है. कुछ लोग मलबे में घायल अवस्था में दबे रह जाते हैं तो उन्हें बचाने से पहले एक्सपर्ट को बुलाना चाहिए, और उन्हें ही प्रयास करने देना चाहिए. व्यक्ति को खुद से मलबे से निकालने का प्रयास नहीं करना चाहिए. ऐसा करने पर उनकी जान भी जा सकती है.

यदि किसी आदमी को बचाने के लिए कोई व्यक्ति उसके ऊपर जमा मलबा हटाएगा, तो उसके शरीर से Crushing Pressure रिलीज होगा, और उसकी मौत हो जाएगी. जब शरीर का मुख्य भाग- यानी हाथ, पैर या कोई और अंग किसी भारी मलबे में दबता हैं तो उस भार तो तुरंत नहीं हटाना चाहिए. क्योंकि मलबे की वजह से शरीर के ऊतकों में बहुत ज्यादा दबाव पैदा हो जाता है. दबाव का स्तर इतना ज्यादा होता है कि पूरे शरीर के उत्तक गंभीर रूप से प्रभावित हो जाते हैं जिससे शरीर का Blood Flow भी रुक जता है.

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Crush Syndrome क्या होता है?

जब किसी शरीर में रक्त का संचार रुक जाता है तो शरीर से अपने आप म्योग्लोबिन नाम का प्रोटीन रिलीज होने लगता है. ये गोल आकार का होता है. म्योग्लोबिन मसल्स में पाया जाता है. इसका मुख्य काम मसल्स के सेल्स में ऑक्सीजन को जमा करना होता है. म्योग्लोबिन मसल्स में इसलिए ऑक्सीजन स्टोर करता है क्योंकि जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन का उपयोग किया जा सके.

इसके रिलीज होने से किडनी के न काम करने की संभावना बहुत बढ़ जाती है. कई बार म्योग्लोबिन की वजह से किडनी फेल भी हो जाती है. इस पूरे प्रोसेस को Crush Syndrome कहते हैं. ऐसी स्थिति में जब किसी व्यक्ति के शरीर से अचानक भार हटा लिया जता है तो क्रश सिंड्रोम की वजह से ऊतकों में ऑक्सीजन बढ़ने लगता है, और व्यक्ति की मौत हो जाती है.

Crush Syndrome कब खोजा गया?

स्माइलिंग डेथ जिसे क्रश सिंड्रोम भी कहते हैं. इसकी सबसे पहले खोज जापान में हुई थी. जापानी डर्मेटोलॉजिस्ट सेइगो मिनामी ने 1923 में पहली बार क्रश सिंड्रोम नाम की बीमारी का पता लगाया था. उस समय World War I में किडनी फेल होने से कई लोगों की मौत हो गई थी. मिनामी मृत तीन आर्मी के जवानों की Pathology का अध्ययन कर रहे थे. जापान के बाद इंग्लैंड ने भी इस बीमारी पर अध्ययन किया.

करीब 1941 में इंग्लैंड के फिजिशियन Eric George Lapthorne ने क्रश सिंड्रोम को एक्सप्लेन किया.  क्रश सिंड्रोम के ज्यादातर मामले भयंकर प्राकृतिक आपदा के दौरान होते हैं. अब तक क्रश सिंड्रोम के मामले भूकंप, लड़ाई, किसी भवन या बिल्डिंग के गिर जाने यार रोड एक्सीडेंट के वजह से आते हैं. मलबे में फंसे हुए व्यक्ति को जो टीम रेस्क्यू करने आती है वह काफी ट्रेंड होती है.

उत्तरी टर्की में आए भूंकप में क्रश सिंड्रोम की वजह से मृत्यु का दर 15.2% था. यह भूकंप करीब 1999 में आया था. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार भूकंप के दौरान क्रश सिंड्रोम से मृत्यु दर 13% से 25% होती है.

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Crush Syndrome कब हो सकता है?

क्रश सिंड्रोम एक प्रकार का रीपरफ्यूजन चोट है जिसमें खतरनाक प्रकार का दर्द होता है. मलबे में दबने की वजह से शरीर की मांसपेशियां अव्यवस्थित हो जाती हैं. यदि कोई व्यक्ति मलबे में 4 से 6 घंटे तक दबा रहता है तो उसे क्रश सिंड्रोम हो सकता है कई बार यह 1 घंटे दबे रहने पर भी हो सकता है.

अभी तक ऐसी कोई खास मेडिसिन नहीं बनाई गई है जो रबडोमायोलिसिस के प्रभाव को पूरी तरह से ठीक कर दे. क्योंकि यह एक प्रकार का नेक्रोसिस है, ज्यादातर केस में डॉक्टरों द्वारा कोशिश की जाती है कि लीवर को डैमेज होने से बचाया जा सके. ज्यादातर दवाइयां लीवर को सुरक्षित करने के लिए उपयोग में लाई जाती है.

मौत से पहले इंसान के दिमाग में क्या होता है?

क्रश सिंड्रोम से अलग जब कोई व्यक्ति जब अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर होता है तो कई बार वो कुछ बोल पाने, या अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाने में असमर्थ हो जाता है. ऐसी स्थिति में लोग हमेशा यह जानने की कोशिश करते हैं कि व्यक्ति कैसा महसूस कर रहा होगा, या क्या सोच रहा होगा? हाल ही में एक रिसर्च की गई और पता किया गया कि आखिरी वक्त में दिमाग कुछ सोच रहा होता है.

जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में पब्लिश आर्टिकल के मुताबिक मरते वक्त इंसान अपने मरे हुए रिश्तेदारों को देखने लगता है. अमेरिका में मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने करीब 4 लोगों को प्रयोग के तौर पर लिया उन चारो के बचने की उम्मीद बिल्कुल न के बराबर थी. चारों व्यक्ति के वेंटिलेटर से हटा देने के बाद चारो व्यक्ति का हार्ट रेट बढ़ने लगा और गामा एक्टिविटी भी बढ़ गई.

अपने इस प्रयोग के आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया कि मरने से ठीक पहले व्यक्ति को सफेद रोशनी ,मरे हुए रिश्तेदार और कुछ अलग तरह की आवाज सुनाई देती है.