राजीव बिंदल ने वन नेशन, वन इलेक्शन को समय की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से देश का करोड़ों रुपया बर्बाद होता है और प्रशासनिक तंत्र चुनावी प्रक्रिया में उलझा रहता है, जिससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया कि जब संविधान लागू हुआ, तब 1952, 1957 और 1962 में देश में एक साथ चुनाव हुए, लेकिन बाद में कांग्रेस सरकारों ने अपने स्वार्थ के लिए सरकारें गिराईं और राष्ट्रपति शासन लगाकर चुनावी ढांचे को बिगाड़ दिया।डॉ. बिंदल ने 1975 के आपातकाल को याद दिलाते हुए कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र को कुचल दिया और संविधान में मनमाने बदलाव किए। उन्होंने श्रीराम मंदिर आंदोलन के दौरान यूपी, एमपी, हिमाचल और गुजरात की सरकारें गिराने को भी गलत करार दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे बड़े देश एक साथ चुनाव कर सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? उन्होंने बताया कि चुनावों पर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ता है। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों, तो नीतिगत फैसले जल्दी लिए जाएंगे और लोकतंत्र मजबूत होगा।