शिमला/धर्मशाला — हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को एक दिलचस्प और चर्चा में आ गया बयान सुनने को मिला। भाजपा विधायक और पूर्व डिप्टी स्पीकर डॉ. हंस राज ने सदन में कहा कि पहले जब वह स्कूल में पढ़ाते थे, तब उनकी जरूरत सिर्फ 20 रुपये की होती थी, लेकिन अब समय बदल गया है और उन्हें अपनी गाड़ी पर झंडी लगाना मजबूरी हो गई है।
डॉ. हंस राज ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं नौ महीने तक माध्यमिक स्कूल जनवास में पढ़ा चुका हूं। तब मेरी जेब में 20 रुपये जाते थे और शाम को वही 20 रुपये वापस आ जाते थे। जरूरत ही उतनी थी। मैं पैदल स्कूल जाता था और पैदल ही लौटता था।” लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आज हालात अलग हैं। अब वे एक लाख लोगों के प्रतिनिधि हैं, लंबी दूरी से आते हैं, और किसी “ऑर्डिनरी गाड़ी” में नहीं आ सकते।
‘झंडी और बत्ती अब जरूरत बन गई’ हंस राज ने कहा कि पहले गाड़ियों पर झंडियां और लाल बत्तियां लगती थीं, लोग रास्ता दे देते थे, सम्मान करते थे। लेकिन अब हालात यह हैं कि “जान बचाना मुश्किल हो गया है।” इसलिए उन्हें भी मजबूरी में झंडी और बड़ी गाड़ी रखनी पड़ रही है।
सियासी हलकों में बयान पर चर्चाएँ विधायक के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या जनप्रतिनिधि बनने के बाद जरूरतें वाकई इतनी बदल जाती हैं कि झंडी और विशेष वाहन के बिना जान पर बन आए?
विरोधियों ने भी साधा निशाना कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने डॉ. हंस राज के बयान पर तंज कसते हुए कहा कि जो लोग कल तक पैदल स्कूल जाते थे, आज जनता के टैक्स के पैसों से महंगी गाड़ियां और झंडियों की “जरूरत” समझने लगे हैं।