मेडिकल खर्चों ने हमेशा से मध्यवर्गीय और गरीब परिवारों की कमर तोड़ी है. इंसान खाने-रहने लायक तो पैसे कमा लेता है लेकिन जब बात अचानक से अस्पताल की आ जाती है तो उसकी आर्थिक स्थिति का पूरा सिस्टम बिगड़ जाता है. बच्चे के जन्म की खुशी बहुत ज्यादा होती है लेकिन जब बात डिलीवरी पर होने वाले खर्चे की हो तो एक बार के लिए सोचना पड़ता है.
डेढ़ लाख बच्चों को जीवन देने वाली ‘डॉक्टर दादी’
ऐसे महंगाई के दौर में अगर कोई डॉक्टर निशुल्क किसी महिला की डिलीवरी करा दे तो ये हैरान करने वाली बात होगी. इंदौर की डॉक्टर दादी ने वर्षों तक लोगों को इसी तरह हैरान किया. उन्होंने अपने जीवन में डेढ़ लाख बच्चों को जीवन दिया. सबसे ज्यादा डिलीवरी कराने का गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book Of World Records) भी उन्हीं के ही नाम पर है. हम यहां बात कर रहे हैं पद्मश्री डॉ. भक्ति यादव (Dr Bhakti Yadav) की, जिन्हें सब ‘डॉक्टर दादी’ कहते थे. वह 91 वर्ष की आयु में भी अपने अंतिम दिनों तक दूसरों को जीवन देने में जुटी रहीं.
इंदौर की पहली महिला डॉक्टर भक्त यादव
3 अप्रैल 1926 को उज्जैन के महिदपुर में जन्मी भक्ति यादव एक प्रसिध्द महाराष्ट्रीयन परिवार से संबंध राखती थीं. 1937 मे जब लडकियों कि शिक्षा एक सपने के समान थी तब उन्होंने उच्च शिक्षा की इच्छा व्याक्त की थी. उनके पिता ने उन्हें पास के गांव में पढ़ने भेज, जहां से उन्होंने सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की. उसके बाद उनका दाखिला इंदौर के अहिल्या आश्रम स्कूल में कराया गया. 11वीं के बाद 1948 मे उन्होंने अपनी बीएससी की पढ़ाई के लिए इंदौर के होल्कर साइंस कॉलेज मे दाखिला लिया. वह पहले साल मे कॉलेज मे टॉपर थीं.
इसके बाद उन्होंने महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एमजीएम से अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और इंदौर की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव प्राप्त किया. कुल 40 एमबीबीएस छात्रों मे से वह अकेली महिला थीं.
गरीबों का करती थीं मुफ़्त में इलाज
डॉ. भक्ति यादव ने अपनी अंतिम सांस तक मरीजों की सेवा की. डॉक्टर दादी के नाम से मशहूर हुई भक्ति यादव ने अपने पूरे जीवनकाल में 70,000 से ज्यादा महिलाओं की डिलिवरी और डेढ़ लाख से ज्यादा ऑपरेशन करने का रिकार्ड स्थापित किया. 1994 से उन्होंने मुफ़्त इलाज करना शुरू किया. वह एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ थीं और गरीब मिल मजदूरों की पत्नीयों का इलाज करती थीं. अपनी इस सेवा के लिए उन्होंने नंदलाल भंडारी मातृत्वा गृह में काम किया और इसके लिए उन्होंने सरकारी नौकरी का प्रस्ताव तक ठुकरा दिया.
उन्होंने अपने आवास पर अपने पति स्वार्गीय डॉक्टर सीएस यादव के साथ वात्सल्या नार्सिग होम शुरू किया था. जो 36 वर्षों से जारी है. अब इसकी देखभाल उनके बेटे डॅा चेतन एम यादव और उनकी बहू डॉ. सुनिता यादव करती हैं. उन्होने लगभग एक हजार महिला रोगियों का इलाज किया, उन्हे बिना कोई शुल्क दिए. एक गायनेकोलॉजिस्ट होने के बावजूद वे किसी भी महिला की डिलिवरी कराने के लिए महज एक रुपया फीस लेती थीं.
मिला पद्मश्री अवार्ड
Padmashri for Dr Bhakti Yadav, 91 yr. She has been treating patients free of cost since 1948. No words to say thanks to @PMOIndia #gratitude pic.twitter.com/oHghd9BLh1
— rahul verma (@rahulverma08) January 25, 2017
30 मार्च 2017 को भक्ति यादव को पद्मश्री अवॉर्ड देने की घोषणा हुई थी. यह सम्मान राष्ट्रपति की ओर से एक सम्मान समारोह में बांटे गए थे, लेकिन अधिक उम्र होने के कारण डाक्टर दादी यह सम्मान लेने नहीं जा पाई. इसके बाद कलेक्टर और प्रभारी मंत्री खुद उनके घर गए और उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. इंदौर के लोग उन्हें इसलिए भी याद करते हैं क्योंकि इंदौर के ज्यादातर घरों में एक न एक बच्चे का जन्म डाक्टर दादी के अस्पताल में हुआ है.
डाक्टर दादी हर किसी मरीज से मुस्कुराते हुए और अपने परिवार के सदस्य की तरह बात करती थीं. उनके बारे में कहा जाता था कि उनके किसी मरीज के पास पहुंच जाने भर से मरीज का आधा रोग खत्म हो जाता था. लोगों के प्रति यही अपनत्व वो कारण था जिस वजह से लोग उन्हें डाक्टर दादी कहने लगे थे. डॉ. भक्ति को उनकी सेवाओं के लिए डॉक्टर्स के विशेष सम्मान से नवाजा गया था. वह 91 साल की उम्र तक डिलीवरी करवाती रहीं. 14 अगस्त 2017 को डॉक्टर दादी का उनके घर पर निशान हो गया. वह ऑस्टियोपोरोसिस और अन्य आयु संबंधी बीमारियों से पीड़ित थीं. मृत्यु से पहले कुछ महिनों में उनका वजन लगातार कम होने लगा था.
‘डॉक्टर बनाएं मरीजों से मजबूत रिश्ता’
अपनी जीवन यात्रा के बारे में बात करते हुए डॉ भक्ति यादव ने एक साक्षात्कार में भास्कर से बताया था कि, ”बचपन से उनका एक ही सपना था कि वह डॉक्टर बनें. उस दौर में लड़कियों को पढ़ाई भी नहीं करने दी जाती थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 1948 से 1951 के बैच में वह अकेली लड़की थीं, जिसने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया. पढ़ाई पूरी कर वह डॉक्टर बनीं. 68 साल तक हजारों लोगों का इलाज किया, खूब दुआएं मिलीं. उन्होंने कहा था कि वह चाहती हैं मरते दम तक लोगों का मुफ्त इलाज करें और उन्होंने ऐसा ही किया. पद्मश्री मिलने पर उन्होंने कहा था कि अवॉर्ड मिलने की खुशी है, लेकिन यह खुशी तब और बढ़ जाएगी जब पहले की तरह मरीज डॉक्टर पर भगवान जैसा भरोसा करने लगें. इसके लिए डॉक्टरों को इलाज के वक्त मरीज से ऐसा रिश्ता बनाना होगा.”