मशरूम की खेती में रोग प्रबंधन अत्यंत जरूरी, गलत प्रोटोकॉल से हो सकता है भारी नुकसान

मशरूम की खेती में रोग प्रबंधन और वैज्ञानिक प्रोटोकॉल का पालन बेहद आवश्यक माना जाता है, क्योंकि मशरूम स्वयं एक फफूंद है और यह मुख्य रूप से फफूंद जनित रोगों से प्रभावित होता है। वेट बबल, ड्राई बबल, ग्रीन मोल्ड और कॉब डिज़ीज जैसे रोग उत्पादन को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार वेट बबल रोग लगने पर पूरी फसल नष्ट होने तक की संभावना रहती है।

रोगों की पहचान शुरुआती चरण में माइसीलियम की गंध और फफूंद के असामान्य विकास से की जा सकती है। तापमान, नमी, प्रकाश और कार्बन डाईऑक्साइड का सही संतुलन खेती की सफलता का मुख्य आधार है। बिजाई के बाद माइसीलियम रन पूरा होने तक तापमान नियंत्रण ही मुख्य कार्य होता है, जबकि फ्रूटिंग के दौरान नमी और तापमान में बदलाव जरूरी होता है।

रोग प्रबंधन में पीएच का विशेष महत्व है। मशरूम 7 से ऊपर और 8 से नीचे के अल्कलाइन पीएच में अच्छी वृद्धि करते हैं, जबकि रोगाणु एसिडिक पीएच में पनपते हैं। खेत में स्वच्छता बनाए रखना, बची खाद का समुचित निपटान, वर्मी कंपोस्ट या बायो-डीकंपोजर का उपयोग बीमारियों को रोकने में मदद करता है।

डॉ. अनिल कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि मशरूम के रोग विशिष्ट होते हैं और अन्य फसलों को प्रभावित नहीं करते, इसलिए प्रोटोकॉल का पालन कर किसान सुरक्षित और अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

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