वेटेरेन एक्ट्रेस वहीदा रहमान को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है. हिन्दी सिनेमा इंडस्ट्री के बेशकीमती हीरों में से एक हैं वहीदा जी. खूबसूरती, नज़ाकत, उम्दा अदाकारी वहीदा रहमान में हर वो खूबी है लेकिन इसके बावजूद एक सादगी है, एक संजीदगी है. 1955 में उन्होंने तेलुगु फ़िल्मों से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की. रोजुलु मराई (Rojulu Maraayi) और जयसिम्हा (Jayasimha) जैसी फ़िल्मों से शुरू की.
पद्म श्री, पद्म भूषण से सम्मानित अभिनेत्री को अब भारत सरकार ने दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से पुरस्कृत करने का निर्णय लिया है. आप फ़िल्मों के शौक़ीन हों या न हों वहीदा जी की ये फ़िल्मों आपको लाइफ़ में एक बार देखनी चाहिए
1. प्यासा (Pyaasa, 1957)
गुरु दत्त की कल्ट क्लासिक फ़िल्में वहीदा रहमान ने एक वेश्या गुलाबो का रोल किया. गुलाबो को विजय (गुरु दत्त) से सहानुभूति होती है. विजय भी अपनी दिल की बातें गुलाबो से करता है, किताब न छपने का ग़म भी वो गुलाबो के साथ बांटता है. गुलाबो अपने क्लाइंट्स से बात करके विजय की किताब छपवाने की कोशिश करती है. ‘प्यासा’ पहली हिन्दी फ़िल्म है जिसमें वहीदा जी को लीड रोल मिला.
2. कागज़ के फूल (Kaagaz Ke Phool, 1959)
गुरु दत्त और वहीदा रहमान की एक और बेहतरीन फ़िल्म. वहीदा जी ने इसमें शांति का रोल निभाया. ये गुरु दत्त द्वारा निर्देशित आखिरी फ़िल्म थी. ‘कागज़ के फूल’ को बॉलीवुड की सबसे आयकॉनिक फ़िल्म कहा जाता है गौरतलब है कि रिलीज़ के बाद ये बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह पिट गई. आलोचकों ने भी गुरु दत्त के बारे में काफ़ी बुरा-भला लिखा. इस सबका गुरु दत्त पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ा.
3. चौदहवीं का चांद (Chaudavin ka Chand, 1960)
रोमैंटिक ड्रामा जिसे मोहम्मद सादिक़ ने निर्देशित किया. वहीदा जी ने फ़िल्म में ‘जमीला’ का किरदार निभाया है. ये फ़िल्म दो दोस्तों की दोस्ती, मोहब्बत की कहानी है. दोनों ही दोस्त को एक ही महिला से प्यार हो जाता है और एक लव ट्रांयगल बन जाता है. वहीदा जी की मौजूदगी ने फ़िल्म की कहानी को और संजीदा कर दिया.
4. साहिब बीवी और गुलाम (Sahib Bibi Aur Ghulam, 1962)
बिमल मित्र की किताब साहेब बिबी गोलाम (1953) पर आधारित है ये फ़िल्म, साहिब बीवी और गुलाम. फ़िल्म मीना कुमारी और गुरु दत्त के इर्द-गिर्द घूमती है. वहीदा रहमान के किरदार को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. 35th अकेडेमी अवॉर्ड्स में इस फ़िल्म को बेस्ट फ़ॉरेन लैंग्वेज फिल्म अवॉर्ड के लिए भारत की तरफ़ से भेजा गया था.
5. गाइड (Guide, 1965)
गाइड में न सिर्फ़ वहीदा रहमान बतौर एक्ट्रेस नज़र आईं, बल्कि उन्होंने साबित किया कि वो एक बेहतरीन डांसर हैं. फ़िल्म ने कहानी, एक्टिंग, डायरेक्शन, म्यूज़िक सभी से दर्शकों का दिल जीत लिया. फ़िल्म को कुछ लोग वक़्त से काफ़ी आगे की फ़िल्म भी बताते हैं. ‘गाइड’ के लिए वहीदा जी को शिकागो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला. 1967 फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड्स में भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवॉर्ड दिया गया. फ़िल्म में फ़िल्म इंडस्ट्री पर कटाक्ष किया गया है. ये वहीदा जी के बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है.
6. तीसरी कसम (Teesri Kasam, 1966)
एक ऐसी फ़िल्म जिसे दर्शकों ने बिल्कुल रिजेक्ट कर दिया. और आगे चलकर ये फ़िल्म भारतीय फ़िल्म हिस्ट्री का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई. ये फ़िल्म फणीश्वर नाथ रेणु की ‘मारे गए गुलफ़ाम’ पर आधारित है. वहीदा रहमान को ही नहीं राज कपूर को भी इस क्लासिक फ़िल्म के लिए हमेशा याद किया जाता है.
7. नील कमल (Neel Kamal, 1968)
नील कमल एक रोमैंटिक थ्रिलर है. इसमें मनोज कुमार, राज कुमार और वहीदा रहमान नज़र आए. फ़िल्म ने न सिर्फ़ बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छी कमाई की बल्कि आलोचकों ने भी काफ़ी तारीफ़ की. वहीदा रहमान को अपने परफ़ॉर्मेंस के लिए दुनियाभर में वाहवाही मिली थी.
8. ख़ामोशी (Khamoshi, 1969)
कहते हैं ये फ़िल्म वहीदा रहमान के करियर में मील का पत्थर साबित हुई. न सिर्फ़ वहीदा जी के लिए बल्कि फ़िल्म ने राजेश खन्ना की किस्मत बदल दी. आशुतोष मुखर्जी की शॉर्ट स्टोरी ‘नर्स मित्र’ पर बनी है ये फ़िल्म. वहीदा रहमान ने ही फ़िल्म के हीरो के लिए राजेश खन्ना का नाम सुझाया था. फ़िल्म की कहानी मानसिक रोगी अस्पताल की नर्स, राधा के इर्द-गिर्द घूमती है.