देश की राजधानी दिल्ली G-20 शिखर सम्मेलन (G20 2023 In India) की मेजबानी के लिए पूरी तरह से तैयार है. इस दौरान विदेशी मेहमानों की सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा गया है. इसमें किसी तरह की चूक ना हो इसके लिए नए-नए तरीके भी अपनाए जा रहे हैं. इसी के तहत बंदरों से बचाव के लिए 30 से 40 ऐसे लोगों को तैनात किया जाने का प्लान है जो लंगूर की आवाज़ की नकल कर सकते हैं.
G-20 शिखर सम्मेलन में आए महमानों को बंदरों से बचाने की तैयारी
अधिकारियों का कहना है कि जी 20 सम्मेलन में सरदार पटेल रोड सबसे अहम है. इस रोड पर स्थित होटल में विदेशी मेहमान रुकेंगे. इनमें अमेरिका के राष्ट्रपति सहित अन्य महत्वपूर्ण लोग भी शामिल हो सकते हैं. समस्या ये है कि इस सड़क पर हमेशा बंदरों का आतंक देखा जाता है. 11 मूर्ति से ताज होटल तक बंदर रिज क्षेत्र से निकलकर बाहर सड़क पर आ जाते हैं. सबसे ज्यादा समस्या मालचा मार्ग से बापू धाम तक है. ऐसे में जी 20 आयोजन के दौरान इन बंदरों को सड़कों तक आने से रोकने के लिए लंगूर का कटआउट का विकल्प लगाया जा रहा है.
लगाए जा रहे लंगूरों के कटआउट
इसके साथ ही ऐसे लोगों को भी तैनात किया जा रहा है जो लंगूरों की आवाज़ निकाल सकें. ये लोग जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान बंदरों को डराने की रणनीति के तहत तैनात किए जा रहे हैं. बंदरों की अनियंत्रित आबादी के कारण शहर भर में उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, जिसमें नई दिल्ली के इलाके (लुटियंस दिल्ली) भी शामिल हैं. यहां जानवर इधर-उधर घूमते रहते हैं और अक्सर लोगों पर हमला करते हैं और उन्हें काटते हैं.
लोग निकलेंगे लंगूरों की आवाज़
एनडीएमसी के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि नगर निकाय 30-40 व्यक्तियों को तैनात करेगा, जो बंदरों को डराने के लिए लंगूर की आवाज की नकल कर सकेंगे. ये लोग हमारे साथ रजिस्टर्ड हैं और उन्हें काम पर रखा गया है, क्योंकि वे लंगूर की आवाज निकालकर बंदरों को भगाने में प्रभावी हैं. उन्होंने कहा, हम उन होटलों में एक-एक व्यक्ति को तैनात करेंगे, जहां प्रतिनिधि रुकेंगे, साथ ही उन जगहों पर भी जहां बंदर देखे जाने की सूचना है,
लंगूरों के कटआउट बने बंदरों का खिलौना
हालांकि अब ये खबर भी आ रही है कि लंगूर के जो कटआउट बंदरों को डराने के लिए लगाए गए थे वे अब बंदरों का खिलौना बन गए हैं. बंदर इन कटआउट पर झूल रहे हैं. वहीं, कनॉट प्लेस से कबूतरों को हटाने के लिए लगाए गए पौधों भी असरदार नहीं हैं. मंगलवार को काफी संख्या में पक्षी यहां मंडराते दिखे. विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का तरीका कारगर नहीं हो सकता. लंबे समय में बनी आदतें एक दिन में नहीं बदल सकतीं.
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि बंदर की दोनों प्रजातियों का जंगल में परिवेश नजदीक है. लंगूर पत्तियां खाते हैं, जबकि बंदर पत्तियां व फल खाते हैं. जंगल में दोनों के बीच कभी संघर्ष नहीं होता. बंदर भगाने का जो चलन हुआ, उसमें लंगूर की लंबाई व उसका प्रशिक्षण काम करता है. लंगूर के साथ लाठी लेकर बंदर की तरफ बढ़ने से यह भाग जाता है, बावजूद इसके बंदर ज्यादा आक्रामक है. आवाज निकालने या कटआउट लगाने से लंगूर में डर पैदा करना संभव नहीं है.