प्रदर्शन लगभग दो घंटे चला। प्रदर्शन को उग्र होते देख पहले उप श्रमायुक्त व बाद में श्रमायुक्त हिमाचल प्रदेश ने सीटू पदाधिकारियों के साथ दो बैठकों का आयोजन किया व आश्वासन दिया कि लंबित यूनियनों का पंजीकरण तुरंत कर दिया जाएगा। प्रदर्शन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, उपाध्यक्ष जगत राम, जिला शिमला अध्यक्ष कुलदीप डोगरा, कोषाध्यक्ष बालक राम, जिला सोलन महासचिव ओमदत्त शर्मा, उपाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ठाकुर, रामप्रकाश, होटल यूनियन कोषाध्यक्ष पूर्ण चंद, उपाध्यक्ष कपिल नेगी, मुकेश, एसटीपी यूनियन अध्यक्ष दलीप सिंह, आईजीएमसी यूनियन अध्यक्ष विरेंद्र लाल, कोषाध्यक्ष सीताराम, उपाध्यक्ष निशा, बनीता, संदीप, प्रवीण, जीएमपी यूनियन बद्दी अध्यक्ष कृष्ण पाल, विपिन, राजीव, बालमुकंद, चिरंजी लाल, महेंद्र, विशाल मेगामार्ट यूनियन अध्यक्ष भूप सिंह, महासचिव प्रेम, राकेश रवि, हनी, रजनी, सीता, लायक राम लक्की सहित सैंकड़ों मजदूर शामिल रहे।
धरने को संबोधित करते हुए विजेंद्र मेहरा, जगत राम, कुलदीप डोगरा, ओमदत्त शर्मा, राकेश कुमार व बालक राम ने कहा कि श्रम विभाग पूरी तरह से पूंजीपतियों, उद्योगपतियों, कारखानेदारों व अमीरों की गोद में बैठ गया है। श्रम विभाग के अधिकारी कंपनियों से कमीशनखोरी करते हैं व श्रम कानूनों का गला घोंटते हैं। हैरानी की बात यह है कि विशाल मेगामार्ट यूनियन के पंजीकरण की प्रक्रिया आज से ग्यारह वर्ष पूर्व 2014 में शुरू हुई थी परंतु यह यूनियन आज भी पंजीकृत नहीं हुई है। जीएमपी यूनियन बद्दी के पंजीकरण के कागज पिछले तीन वर्षों से श्रम विभाग के पास लंबित हैं। मनरेगा यूनियन का पंजीकरण पिछले चार वर्षों से नहीं किया जा रहा है। ल्यूमिनस प्लांट गगरेट की दो यूनियनों के कागज कई वर्षों से श्रम विभाग के पास लंबित हैं। जेपी यूनियन, ऑस्ट्रेल यूनियन, मिड डे मील यूनियन, एसबीआई यूनियन सहित दर्जनों यूनियनों का पंजीकरण कई वर्षों बाद हुआ। इस से साफ है कि श्रम विभाग मजदूरों के अधिकारों का हनन कर रहा है। वर्ष 1926 में बने ट्रेड यूनियन एक्ट के अनुसार मजदूर अपनी यूनियन बना कर उसका पंजीकरण करवा सकते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 मजदूरों व कर्मचारियों को अपनी यूनियन व एसोसिएशन बनाने का अधिकार देता है। श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा कई वर्षों तक यूनियन पंजीकरण न करना कानून विरोधी कार्य है। माननीय उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश को भी कई बार यूनियन पंजीकरण पर दिशानिर्देश दे चुका है परंतु श्रम विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है। श्रम विभाग राज स्तरीय यूनियनों के पंजीकरण में भी मनमाने तर्क देकर रोड़े अटका रहा है। श्रम विभाग मजदूरों का विभाग कम प्रतीत होता है व यह उद्योगपतियों की संस्था ज्यादा लगती है। श्रम विभाग से मजदूरों का विश्वास उठ रहा है। श्रम अधिकारी कंपनी मालिकों व प्रबंधनों की भाषा बोलते हैं। वे यूनियन पंजीकरण के गोपनीय कागजों को कंपनी प्रबंधकों को लीक कर देते हैं। कई यूनियनों के कागज श्रम विभाग से गायब हो जाते हैं। श्रम अधिकारी यूनियन पंजीकरण के कागजों को कई महीनों तक दबाकर बैठे रहते हैं। श्रमायुक्त व ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार कार्यालय तरह तरह के बहाने बनाकर अनचाही आपत्तियां लगाता है व इन कागजों को श्रम अधिकारियों के पास लौटा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे प्रदेश में श्रम विभाग का कोई रैकेट काम कर रहा है जिसकी पूंजीपतियों से सीधी मिलीभगत है। यूनियन पंजीकरण प्रक्रिया कई वर्षों तक लटकने से मजदूर नेताओं को कंपनी प्रबंधनों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है व बिना कारण गैर कानूनी तरीके से नौकरी से बाहर कर दिया जाता है। श्रम विभाग पूरी तरह से उद्योगपतियों के इशारे पर कार्य करता है। उन्होंने कहा है कि अगर प्रदेश के श्रम अधिकारियों की संपत्ति की जांच की जाए तो भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हो जाएगा व श्रम विभाग की कार्यप्रणाली जनता के सामने आ जाएगी। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर लंबित यूनियनों का पंजीकरण तुरंत न हुआ तो सीटू हजारों मजदूरों को लामबंद करके श्रमायुक्त कार्यालय पर महापड़ाव करेगा।