नहान/सोलन, हिमाचल के नाहन में हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार की जयंती के मौके पर माल रोड स्थित डॉ परमार की प्रतिमा पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल सहित कार्यकर्ताओं की ओर से पुष्पांजलि अर्पित की गई।
राजीव बिंदल ने अवसर पर कहा की परमार न होते तो पहाड़ी राज्य हिमाचल भी न होता, इतिहास ही नहीं भूगोल भी दिया था बदल। पूरा हिमाचल प्रदेश अपने प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार को याद कर रहा है। इस अवसर पर भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर एक पेड़ मां के नाम अभियान के अंतर्गत पौधारोपण के कार्यक्रम भी करेगी जिसमे नहान मंडल में मैं स्वयं पौधारोपण के कार्यक्रम में भाग लूंगा
उन्होंने कहा की डा. परमार ऐसी शख्सीयत थे, जिन्होंने प्रदेश का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल कर रख दिया था। जिसका जीता जागता प्रमाण पूर्ण राज्य के रूप में प्रदेशवासियों के सामने है। जिसमें प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था, जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी।
डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चन्हालग गांव में उर्दू व फारसी के विद्धान व कला संस्कृति के संरक्षक भंडारी शिवानंद के घर हुआ था। परमार के पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। 1944 में ‘सोशियो इकोनोमिक बैकवल्र्ड ऑफ हिमालयन पोलिएंडरी’ विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद हिमाचल विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की। 1930 से 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज व 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे। 1943 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1946 में डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने गए। 1947 में ग्रुपिंग एंड अमलेमेशन कमेटी के सदस्य व प्रजामंडल सिरमौर के प्रधान रहे। उन्होंने सुकेत आंदोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया और प्रमुख कार्यों में से एक रहे।