बिहार की राजनीतिक चर्चा बिना लालू प्रसाद यादव के पूरी नहीं होती। देश की राजनीति में भी लालू यादव की चर्चा होती है। लालू यादव सियासत के एवरग्रीन सितारे में गिने जाते हैं। हाल में विपक्षी एकता की बैठक के दौरान लालू के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सभी दल इनसे रायशुमारी कर रहे हैं। लालू यादव एक बार फिर अपने पुराने अंदाज में लौट आए हैं।
लालू की राजनीति उनके सांसों से बंधी है
शारीरिक रूप से भले लालू प्रसाद अस्वस्थ्य हों पर राजनीतिक की सूक्ष्म समझ आज भी है। ये सच है कि समय के साथ और कानूनी दाव पेंच में उलझने के कारण लालू प्रसाद आंतरिक रूप से टूट गए। दिमाग से वे राजनीतिक तीर चलाते रहे हैं। यह लालू यादव की राजनीति का ही असर है कि अपने द्वारा संजोए वोटों के जरिए लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार और भाजपा के विरुद्ध बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लड़ा कर तेजस्वी यादव को विधानसभा में पहले नंबर की पार्टी का दर्जा दिलाया। नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर रह गई।
विपक्षी एकता मुहिम और लालू प्रसाद
यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने को ले कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की मुहिम की शुरुआत की। हकीकत यह है कि इसके आधार में भी लालू प्रसाद यादव रहे हैं। बीजेपी आरोप भी लगाती है कि लालू प्रसाद ही नीतीश कुमार की विश्वसनीयता के ग्रांटर बने हैं। याद करें जब नीतीश कुमार पहली दफा कांग्रेस के नेताओं से भेंट करने गए थे। तब भी भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के किसी नेता ने मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। यहां तक की चुनौती भी दी कि गर मुलाकात हुई है तो तस्वीर जारी करें। सच्चाई यह है कि कोई तस्वीर जारी नहीं कर पाया। लेकिन दूसरी बार जब लालू प्रसाद और तेजस्वी के साथ गए तो सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से भी मुलाकात हुई। तस्वीर भी जारी हुई।
महागठबंधन की बैठक और लालू प्रसाद
बेंगलुरु में जब विपक्षी एकता की मुहिम की दूसरी बैठक हुई तो लालू प्रसाद ने पीएम नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जमकर हमला बोला। लालू प्रसाद ने इस बैठक में लोकतंत्र और संविधान खतरे में है को बतौर उदाहरण समझाया भी। पटना की बैठक में भी वो जम कर नरेंद्र मोदी की सरकार पर हमला बोला। बेंगलुरु की बैठक के बाद तो संवाददाताओं से बातचीत में खुल कर इस बैठक के मकसद पर अपनी बात कही। बढ़ती महंगाई और छद्म राष्ट्रवाद पर सधे स्वर में अपनी बात रखी।
एक्टिव लालू की भूमिका में लालू
एक्टिव भूमिका में लालू प्रसाद तो राजद की कार्यकारिणी की बैठक के दौरान ही आ गए थे। उन्होंने इस बैठक में सक्रिय राजनीति में रहने का आह्वान भी कर डाला था। तब एक संवाददाता ने पूछा कि आपको लोग राजनीतिक गुरु मानते है। तब उन्होंने हंसते हुए कहा गुरु तो अभी हम सबके हैं। एक समय सापेक्ष नेता की तरह उन्होंने इस बीमारी के समय में भी अपने पुत्र और जगतानन्द सिंह की लड़ाई को बड़े सलीके से सॉल्व करते समसामयिक राजनीतिक दृष्टि का बोध कराया।
चुनाव लड़ने की इच्छा भी जताई
कार्यकारिणी की बैठक के बाद लालू प्रसाद ने अपनी इच्छा जताते कहा था कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसकी इजाजत पाने की कोशिश भी करेंगे। तब उनसे पूछा गया कि आखिर कौन से इच्छा बची है कि आप लोकसभा जाना चाहते हैं। तब उन्होंने कहा था कि सदन में वे नरेंद्र मोदी को जवाब देना चाहते हैं। उन्हें बताना भी चाहते हैं कि देश केवल हिंदुओं का नहीं सभी धर्म और जातियों का है। बहरहाल, लालू प्रसाद का व्यक्तित्व ही राजनीति के लिए बना है। ऐसे ही नहीं वे जेपी आंदोलन के चर्चित छात्र नेता थे। कुछ आरोपों को छोड़ दें तो 90 के दशक के सफल राजनीतिज्ञ जिन्होंने बिहार की सत्ता को 15 वर्षों तक साधा। फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद के साथ राजनीति की परिपक्वता पाई। यह तो जातीय धरातल पर एक ऐसा समीकरण बना जहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीति अलग हुए। और समय का खेला देखें कि आज फिर नीतीश कुमार की इच्छा के साधक और साधन लालू प्रसाद बने हुए हैं।