Bhoota Kola: दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में होने वाली ‘भूतों की पूजा’, जिसे कन्नड़ फ़िल्म Kantara में दिखाया गया है

30 सितंबर 2022 को कन्नड़ फिल्म ‘कांतारा’ (Kannada Film Kantara) रिलीज़ हुई थी. रिलीज़ के बाद कम बजट में बनी इस फ़िल्म ने कई रिकॉर्ड तोड़े.  IMDb पर फ़िल्म की रेटिंग 9.4 रही और फ़िल्म ने KGF: Chapter 2 का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया था. हिंदी में रिलीज़ होने के बाद ये उत्तर भारत के लोगों को भी पसंद आ रही है. अब जल्द ही Kantara Chapter 1 रिलीज़ होने वाली है. फ़िल्म का टीज़र 27 नवंबर को रिलीज़ किया गया और दर्शकों के रौंगटे खड़े हो गए.

क्या है Kantara की कहानी?

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कांतारा की कहानी सरकार और ग्रामीणों के संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है. गांववाले जंगल पर निर्भर हैं पर सरकार उन पर नकेल कसना चाहती है. इसके लिए पुलिसबल की सहायता ली जाती है. दबंग ग्रामीणों पर अत्याचार करते हैं और ग्रामीण अपनी संस्कृति, तौर-तरीके बचाने की कोशिश करते हैं. फिल्म में लोक संस्कृति, रहन-सहन पर भी चर्चा की गई है. इसी फ़िल्म में चेहरे पर रंग लगाकर, रंग-बिरंगे कपड़े पहने कुछ लोग एक खास तरीके का ‘नृत्य’ करते नज़र आए. इस विशेष नृत्य को ‘भूत कोला’ (Bhoot Kola) कहा जाता है और ये तुलू भाषियों की संस्कृति का अभिन्न अंग है.

क्या है भूत कोला?

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Karnataka Tourism की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘भूत कोला’ कर्नाटक के तटीय इलाकों में बहुत कॉमन है. ढोल और अन्य वाद्य यंत्रों की थाप पर ‘भूत’ की प्रतिमाओं का जुलूस निकाला जाता है. जुलूस के आखिर में इन प्रतिमाओं को ऊंचे स्थान पर स्थापित किया जाता है. तलवार और घंटियां हाथ में लेकर एक ‘नर्तक’ इस प्रतिमा के चारों तरफ़ नृत्य करता है.

ये नर्तक कुछ इस तरह से हरकतें करता है मानो उस पर ‘भूत’ आ गया हो.

कौन करता है भूत कोला?

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भूत कोला को भूत आराधना भी कहा जाता है. ‘भूत कोला’ एक प्रशिक्षित शख्स करता है और ऐसी मान्यता है कि कुछ समय के लिए वो खुद ‘भगवान’ बन जाता है. भूत कोला करने वाले व्यक्ति के हाव-भाव बहुत बदल जाते हैं, ढोल और अन्य वाद्य यंत्रों की धुन पर वो और नृत्य करता है. नृत्य करने वाले शख्स की भाव-भंगिमा भी बहुत गुस्सैल नज़र आती है. लेकिन, इसके ठीक विपरीत भूत कोला करने वाले व्यक्ति को लोग बहुत सम्मान देते हैं.

क्या भूत कोला, भूतों का नृत्य है?

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आमतौर पर भूत शब्द एक नकारात्मक शक्ति के लिए ही प्रयोग किया जाता है. जब हम ‘भूत कोला’ शब्द पढ़ते हैं तो दिमाग में यही आना लाज़मी है कि ये कोई नकारात्मक शक्ति होगी. Daily O के एक लेख के अनुसार, तुलू भाषा में ‘भूत’ और ‘देव’ का अर्थ एक ही है… ‘भगवान’. ‘भूत कोला’ में सकारात्मक शक्तियों का ही आह्वान किया जाता है.

लोगों की मान्यता

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लोगों की मान्यता है कि ‘भूत कोला’ करने वाला व्यक्ति लोगों को आने वाली समस्याओं के प्रति आगाह करता है, लोगों के मसले सुलझाता है और लोगों को आशीर्वाद देता है. भूत कोला में जिस भूत का आह्वान किया जाता है वो स्थानीय देवता ही होते हैं. जिस देवता को बुलाना है उस हिसाब से ‘भूत कोला’ करने वाले की साज-सज्जा बदल जाती है. हर देवता की अलग रंग, फूल, साज-सज्जा होती है. सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक ये नृत्य चलता है और बिना खाए-पिए लोग भूत कोला करते हैं. भूत कोला 2-3 दिन तक भी चलता है और पूरे गांव के खाने-पीने की भी व्यवस्था होती है. कहा जाता है कि ये अनोखा नृत्य 500 साल से भी पुराना है. हालांकि इसका कोई सुबूत नहीं है लेकिन 18वीं शताब्दी में ‘भूत कोला’ के सुबूत मिलते हैं.

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कर्नाटक, केरल के कई गांवों में ‘भूत कोला’ होता है. ग्रामवासियों का मानना है कि देवता उनके गांव की रक्षा करते हैं. ‘भूत कोला’ प्रदर्शन में पूरा गांव इकट्ठा होता है. ‘भूत कोला’ करवाने की ज़िम्मेदारी कुछ परिवारों की होती है. ये ज़िम्मेदारी पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती रहती है. ये भी देखा गया है कि पिता अगर ‘भूत कोला’ करता है तो वो ये ज़िम्मेदारी अपने बेटे को देता है.