देश के अलग-अलग कोने में ये बुराइयां, कुप्रथाएं घर बनाए बैठी हैं. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हम चाहे कितना भी आगे बढ़ चुके हों लेकिन जब तक ये बुराइयां जड़ से खत्म नहीं होती है, समाज का संपूर्ण विकास संभव नहीं है. समाज में व्याप्त कई कुप्रथाओं में से एक है बाल विवाह. भारत सरकार के अनुसार, शादी की समय सीमा 21 साल है लेकिन बहुत से परिवार छोटी उम्र में ही लड़के और लड़कियों की शादी कर देते हैं. लड़कियों पर बाल विवाह कुप्रथा का ज़्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है. एक लड़की की ज़िन्दगी बचाने के लिए राजस्थान की एक महिला उठ खड़ी हुई लेकिन उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ी.
इंडिया टाइम्स हिंदी आप तक दुनिया के कोने-कोने से दिलचस्प कहानियां ढूंढकर लाता है. लिखने और पढ़ने के इस रिश्ते को बरक़रार रखते हुए आज हम बात करेंगे भारत के कुछ बेहद ज़रूरी, चर्चित अदालती मुकदमों (Famous Court Cases of India) की. इस कड़ी में आज हम जिस केस के बारे में बात करेंगे, उस केस के बाद भारत के कार्यस्थलों पर भी महिलाओं को दरिंदों से सुरक्षा देने के लिए नए कानून बनाए गए. हम बात कर रह रहे हैं, भंवरी देवी रेप केस (Bhanwari Devi Rape Case) की. एक महिला ने अकेले ही अपने गुनहगारों से लड़ने की हिम्मत दिखाई और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अपने कानून बदलने पड़े.
कौन हैं भंवरी देवी?
जयपुर से 55 Km दूर भटेरी नामक गांव में एक ‘पिछड़ी जाति’, कुम्हारों की जाति में भंवरी देवी का जन्म हुआ. भंवरी देवी को स्कूल नहीं भेजा गया. 1985 में भंवरी देवी बतौर ‘साथिन’ राजस्थान सरकार के महिला विकास प्रोग्राम से जुड़ी. भंवरी देवी का काम था लोगों को बाल विवाह कुरीति के प्रति जागरूक करना और अधिकारियों को बाल विवाह की सूचना देना.
भंवरी देवी घर-घर जाकर महिलाओं को स्वच्छता, परिवार नियोजन के बारे में जागरूक करती. इसके साथ ही वो महिलाओं को लड़कियों को शिक्षित करनी की भी जानकारी देती. भंवरी देवी खुद अशिक्षित थी लेकिन शिक्षा का महत्व समझती थी. वो महिलाओं को कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के बारे में भी जागरूक करती.
बाल विवाह रोकने की कीमत चुकाई
1992 में भंवरी देवी को एक 9 महीने की बच्ची के बाल विवाह की जानकारी मिली. जो परिवार 9 महीने की बच्ची की शादी कर रहा था वो गांव के दबंग और गुर्जरों का परिवार था. भंवरी देवी अपने काम से नहीं डगमगाई और न ही डरी.
भंवरी देवी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया, ‘मैं सिर्फ अपना काम कर रहा थी. वो एक 9 महीने की बच्ची थी और मुझे ये शादी रोकनी थी. मैंने पुलिस को सूचित किया. मैंने उस परिवार से बात करने और उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी. मुझे गालियां दी गई और बाहर निकाल दिया गया.’
ये जानते हुए कि गुर्जरों के मामले में बोलने का खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है, भंवरी देवी ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. एक पुलिसवाला गुर्जरों के घर पहुंचा और उससे कहा गया कि यहां कोई शादी नहीं हो रही है. भंवरी देवी ने बताया कि बिना तहकीकात किए वो मिठाई खाकर चला गया.
पिछड़ी जाति की महिला ने ऊंची जाति वालों के काम में दखल देने की जुर्रत की थी. भंवरी देवी को समाज से बाहर निकाल दिया गया. गांव ने भी उसके परिवार का बहिष्कार कर दिया. लोगों को भंवरी देवी के मिट्टी के घड़े और अन्य बरतन खरीदने से मना कर दिया गया. गौरतलब है कि गुर्जरों ने दोनों शिशुओं की शादी की लेकिन एक दूसरी तारीख पर, एक दूसरे घर की छत पर.
22 सितंबर, 1992 को भंवरी देवी और उसका पति मोहन लाल खेत में काम कर रहे थे. पांच गुर्जर वहां पहुंचे और उसके पति को बुरी तरह मारा. दो ने मोहन लाल को बांधकर धरती पर गिरा दिया. बारी-बारी से सबने भंवरी देवी के साथ रेप किया.
भंवरी देवी ने लड़ाई जारी रखी
आज के समय में रेप या गैंगरेप की बात लोग छिपाते हैं, सर्वाइवर को चुप रहने की हिदायत दी जाती है, सोचिए 1992 में समाज की क्या दशा रही होगी. गुर्जरों को लगा कि भंवरी देवी चुप हो जाएगी लेकिन उन्होंने वो किया जो आज से पहले न देखा गया था और न ही सुना गया था. भंवरी देवी ने अपने दोषियों को सज़ा दिलाने की ठानी. पति के साथ वो मदद मांगने के लिए पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भंवरी देवी से पुलिस ने पूछा, ‘तुझे पता भी है रेप होता क्या है?’
पुलिस, डॉक्टर और भारत की न्याय व्यवस्था ने भंवरी देवी के साथ संवेदनशीलता नहीं दिखाई. गुर्जरों ने तमाम आरोपों को झूठा बताया. पूरे गांव ने भंवरी देवी और उसके परिवार से मुंह मोड़ लिया. ये उस दौर का भारत था जब ज़्यादातर लोग रेप का कुसूरवार रेप सर्वाइवर या विक्टिम को ही मानते थे. भंवरी देवी और मोहन लाल ने उम्मीद नहीं छोड़ी.
ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया
भंवरी देवी रेप केस के शुरुआत से ही पुलिस ने ढिलाई बरती. कई संगठनों के दबाव डालने के बाद पुलिस ने शिकायत दर्ज की. भंवरी देवी का मेडिकल टेस्ट घटना के 52 घंटे बाद किया गया. महिल संगठनों की बदौलत ये केस CBI को ट्रांसफ़र किया गया. सितंबर 1993 में चार्जशीट फाइल की गई और अक्टूबर 1994 में पांचों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.
ये सब देखकर भंवरी देवी को लगा कि उन्हें न्याय मिलेगा. दिसंबर 1993 में राजस्थान हाई कोर्ट ने पांचों की बेल खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि भंवरी देवी का गैंगरेप इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने बाल विवाह रोकने की कोशिश की थी.
गौरतलब है कि नवंबर 1995 में जयपुर के एक ट्रायल कोर्ट ने पांचों आरोपियों को बरी कर दिया. इसके बाद मामला राजस्थान हाई कोर्ट में गया. कोर्ट ने कहा कि दूसरे जाति के लोग रेप नहीं कर सकते. दो आरोपियों की उम्र 60 से ज़्यादा है, इतने उम्रदराज़ लोग इस तरह की वारदात में शामिल नहीं हो सकते. कोर्ट ने ये भी कहा कि पति के रहते महिला का रेप नहीं हो सकता.
ट्रायल कोर्ट के निर्णय के बाद पूरे राजस्थान में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. विरोध की आग दिल्ली तक फैल गई. बहुत सी महिलाएं भटेरी पहुंचने लगी. 1995 में ही भंवरी देवी ने राजस्थान हाई कोर्ट में अपील की.
देश की महिलाओं को मिली ‘विशाखा गाइडलाइंस’
देश के सर्वोच्च न्यायालय में कई गैर सरकारी संगठनों ने ‘विशाखा’ नाम से जनहित याचिका दायर की. याचिका में कहा गया कि भंवरी देवी राजस्थान सरकार की कर्मचारी थी और अपना काम करने की वजह से उनके साथ असॉल्ट हुआ. ये भी कहा गया कि मौजूदा कानून भंवरी देवी जैसे सर्वाइवर्स को न्याय दिलाने के लिए काफ़ी नहीं हैं. याचिकाकर्ताओं ने महिलाओं के लिए कार्यस्थल ज़्यादा सुरक्षित बनाने की मांग की. 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कार्यस्थल में सेक्शुल हैरेसमेंट से निपटने के लिए देश के पहले गाइडलाइंस जारी किए गए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के 16 साल बाद सरकार ने सेक्शुअल हैरेसमेंट ऑफ विमेन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन ऐंड रिड्रेसल) एक्ट बनाया.
भंवरी देवी एक नेशनल हीरो बन गई. देश और विदेश की कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें 25,000 रुपये की इनामी राशी भी दी थी. भंवरी देवी को भले ही भारत की न्याय व्यवस्था ने हरा दिया लेकिन भंवरी देवी की वजह से आज लाखों महिलाएं कार्यस्थल पर पहले से ज़्यादा सुरक्षित हैं.