भारत के इतिहास में ऐसे कम ही युद्ध हैं जिन्होंने आने वाले वक्त को इस कदर मोड़ा हो, ऐसा ही युद्ध था प्लासी का. ये सब 23 जून 1757 को संभव हो सका वो भाई चालाकी, धोखाधड़ी और सहयोग से. 1757 में अंग्रेजों की भारत में शक्ति बहुत सीमित थी. बंगाल जो उस समय तक केवल नाम का मुगल प्रांत था, 24 साल के नवाब सिराजुद्दौला के अधीन था. उसे यूरोपीय शक्तियों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था. फिर यूरोप में 7 इयर्स वार शुरू हो गया.
बंगाल में अंग्रेज और फ्रांसीसी अपने किलेबंदी को मजबूत करने में लग गए. सिराज को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई क्योंकि यह काम बिना उसके इजाजत के चल रहा था, और उसने निर्माण रोकने का हुक्म दे दिया. फ्रैंच तो मान गए पर अंग्रेज नहीं माने. सिराजुद्दौला सेना लेकर कलकत्ता पर चढ़ आया.
500 अंग्रेजों की सेना 5 हज़ार के सामने क्या ही टिकती. और 20 जून को कोलकाता का कोलकाता फोर्ट विलियम सिराजुद्दौला के अधीन आ गया. 146 अंग्रेज कैदियों को फोर्ट विलियम के एक 18 /14 फीट की कोठरी में भर दिया गया. अगले दिन जब दरवाजा खोला गया तो केवल 30 लोग जिंदा बाहर निकले.
यह घटना ब्लैक होल ऑफ कोलकाता के नाम से जाना गया. सिराजुद्दौला को शायद इस घटना के बारे में कुछ भी नहीं पता था वह पहले ही मुर्शिदाबाद लौट चुका था. जब मद्रास कोलकाता के गिरने की खबर पहुंची तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने कर्नल रॉबर्ट क्लाइव और एडमिरल वाटसन को सेना लेकर उधर भेजा. 1757 जनवरी मे इस सेना ने कलकत्ता पर आराम से कब्जा कर लिया. फिर 9 जनवरी को अंग्रेजों ने होगली को लूट लिया, बदले में नवाब कोलकाता पर चढ़ आया. इस पर क्लाइव ने रात के अंधेरे में घने कोहरे के तले नवाब पर हमला कर दिया.
नवाब के 600 सैनिक और सैकड़ों घोड़े- हाथी मारे गए. नवाब की सेना अंग्रेजों से कहीं बड़ी थी पर फिर भी उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक संधि कर ली जिसमें कंपनी को अपने पुराने अधिकार वापस मिल गए. इसके बाद क्लाइव ने बंगाल में फ्रेंच कॉलोनी चंद्र नगर पर 14 मार्च को हमला कर दिया.
नवाब इस हमले की खबर सुनकर गुस्से में आ गया, और 60 हजार सैनिकों की विशाल सेना लेकर दक्षिण की ओर बढ़ चला. इस बीच क्लाइव को खबर हुई की नवाब के मंत्री दीवान उसे गद्दी से हटाना चाहते हैं. इन साजिश करने वालो में से सेनानायक और सिराजुद्दौला का रिश्तेदार मीर जफर भी एक था.
कंपनी और मीरजफर एवं साथियों के बीच नवाब के पीठ पीछे समझौता हो गया. वहीं नवाब ने भी फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को साथ ले लिया. जो अंग्रेजों को हराने के लिए आतुर थी. 13 जून को करीब 3100 सैनिकों के साथ क्लाइव मुर्शिदाबाद की तरफ बढ़ा. और 23 जून को वह प्लासी क्षेत्रीय भाषा मैप में पलाशी के मैदान पे पहुंच गया, जहां नवाब की सेना एक दिन पहले ही पहुंच चुकी थी. अंग्रेजों ने नदी से लगे हुए आम के एक- एक बागान पर कब्जा कर लिया. जिसके आगे एक मिट्टी की दीवार थी वही सिराज की सेना का दाया अंग मीरमदन और दीवान मोहनलाल के कमांड में था.
उन्हीं के पास पानी के टैंक के करीब 50 सैनिकों की एक फ्रेंच आर्टिलरी की टुकड़ी सेंट फ्रे के कमांड में थी. केवल यही लोग नवाब के वफादार थे. बाकी 45 हजार सैनिक रायदुर्लभ, लुतुफखान और मीरजफर के अधीन थे. 23 जून सुबह 8 बजे पहला फायर एक फ्रेंच तोप से हुआ और फिर 3 घंटे तक लगातार दोनों पक्षों से गोलीबारी होती रही. क्लाइव को शुरू में इससे नुकसान हुआ तो उसने आगे बढ़े हुए सैनिक वापस बुला लिए. फिर अचानक जोरदार बारिश शुरू हो गई, अंग्रेजों ने तो अपने बारूद कोटा कॉलिंग से ढक कर रखा था पर नवाब के सेना ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे उनकी गोलाबारी काफी धीमी हो गई.
मीरमदन खान को लगा कि अंग्रेजों के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा और वो घुड़सवारों को लेकर अंग्रेजों पर चढ़ गया पर बदले में अंग्रेजों ने तोप से ग्रेप शॉट फायर किया, इस गोलाबारी में मीर मदन के सवार टिक नहीं पाए और वापस भाग गए .मीरमदन की वही मृत्यु हो गई. सिराजुद्दौला यह खबर सुनकर बहुत दुखी और चिंतित हो गया. मीरजफर को बुलाकर उसने उससे खूब मिन्नते कि वह अपने सैनिकों को जंग में उतारे पर मीरजफर झूठ में हा बोल कर वापस आ गया और आगे भी कुछ नहीं किया. रायदुर्लभ ने सिराज को वापस लौट जाने की सलाह दी जिसे वह मान गया.
पूरी सेना को उसने पीछे बुला लिया और खुद 2000 घुड़ सवारों की सेना लेकर मुर्शिदाबाद लौट गया. सेना को पीछे हटते देख अंग्रेज फ्रेंच आर्टिलरी की स्थिति पर चढ़ आए और सेंट फ्रै को पीछे हटना पड़ा. इस बीच नवाब की सेना की एक टुकड़ी बाकियों से पीछे रह गई थी और अंग्रेजों के पास आने लगी. क्लाइव ने कुछ सेना इनके विरोध में भेजी और जैसे ही उसे यह पता चला कि यह मीरजफर है तो उसने फिर उन्हें वापस बुला लिया और नवाब की बची हुई वफादार सेना के ऊपर चढ़ाई शुरू कर दी. तीन मोर्चो से अंग्रेजी सेना ने हमला किया और नवाब की सेना पूरी तरह मैदान छोड़कर निकल गई. अंग्रेज जीत चुके थे.
वो भी केवल 22 सैनिकों के शहादत के साथ. वही नवाब के 500 लोग मारे गए . अगले दिन मिरजफर को अंग्रेजो ने अपनी डिपेंडेंसी में बंगाल का नवाब बना दिया. सिराजुद्दौला ने भागने की कोशिश की पर वह पकड़ा गया और मारा गया. प्लासी की जंग के बाद भारत में अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गई. भारत का एक अध्याय यहीं पर समाप्त हो गया, और आधुनिक भारत भले ही पराधीनता में पर धीरे धीरे आकर लेने लगा.