Battle of Panipat: बाबर ने कैसे जीता था हिंदुस्तान, भारत के इतिहास में इस जंग का महत्व क्या है?

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दिल्ली से लगभग 80-85 किलोमीटर के उत्तर में है पानीपत. केवल 235 सालों के अंतराल में ही यहां हुए 3 युद्ध उत्तर भारत के इतिहास को उसको आज का रूप देने के लिए बहुत बड़े कारक हैं.  चर्चा का जो केंद्र है, उसमें पहला है. 1526 में हुआ पानीपत का पहला युद्ध. 1521-22 में उत्तर भारत दिल्ली के सल्तनत के आखिरी दिनों में था. सुल्तान इब्राहिम लोदी के अधीन, और उसका राज गहरे पानी में था. आसपास कई दुश्मन और साम्राज्य के अंदर लगातार कलह और विद्रोह. इसके ऊपर इब्राहिम लोदी की छवि निरंकुश सुल्तान की थी, जो अपने मंत्री और दीवानों को भी ना बक्से.

दौलत खान लोदी जो सल्तनत के लिए लाहौर का गवर्नर था, उसने अपने बेटे को काबुल के अमीर के पास भेजा. ये पैगाम लेकर की वह दिल्ली पर हमला करें, यह अमीर था बाबर. जो इससे पहले मद्ध एशिया में फरगाना का शासक था. उसे वहां के उस्बे कबीलों के साथ 12 साल की उम्र से संघर्षरत रहना पड़ा, और अंततः वो हार कर काबुल को आ गया, जहां उसने एक नया राज्य बनाया. 1519 में उसने बजोर और और भेड़ा के किले कब्जा लिए. और इसी बात पर दौलत खान लोदी ने अपने बेटे को भेज बाबर को दिल्ली पर हमला करने का न्योता दिया.

दौलत खान लोदी के अलावा इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खान लोदी भी काबूल गया और बाबर की खुद की मां ने तो राना सांगा के साथ-साथ आगरा पर हमले की पेशकश की. बाबर हमला तो करने ही वाला था पर इन दूतों ने बाबर को यकीन दिला दिया कि हमले के लिए माहौल बिल्कुल सही है. इब्राहिम लोदी ने जब यह बातें सुनी तो उसने कुछ सेना पंजाब को बढ़ा दी. 1524 में इस सेना ने दौलत खान लोदी को भगा दिया और लाहौर पर कब्जा कर लिया. पर इससे पहले कि वो खुद को जमा पाते बाबर लाहौर पहुंच गया. लोदी सैनिक काफी बहादुरी से लड़े पर कुचल दिए गए.

बाबर ने बदले में 2 दिन तक लाहौर को जलने दिया. फिर वह दिपालपुर कि ओर चला गया, जहां उससे आलम खान और दौलत खान लोदी मिले. आलम खान को उसने गोपालपुर का गवर्नर बनाया. पर इब्राहिम लोदी ने उसे वहां से भगा दिया. वही बाबर ने हिंदुस्तान पर हमले की तैयारी में पहले कंधार और बल्ख पर कब्जा कर लिया. 1525 में वो लाहौर पहुंचा फिर बाबर धीरे-धीरे दिल्ली की ओर बढ़ा और इब्राहिम लोदी उसकी ओर. अप्रैल 1526 में दोनों सेनाएं पानीपत में मिली. इब्राहिम लोदी करीब 50000 की सेना लेकर आया था. सबसे आगे हाथी, फिर अफगान घुड़सवार और सबसे आखिर में पैदल सैनिक.

सुल्तान खुद सबसे पीछे था, अपने 5000 गार्ड के साथ. वही बाबर जानता था कि उसके 12000 सैनिक दिल्ली सुल्तान की फौज के एक चौथाई भी नहीं है. उसने अपनी सेना को ऐसे खड़ा किया कि उसका घेराव ना हो सके. सेना के एक तरफ पानीपत गांव, तो दूसरी तरफ बाबर ने एक खाई का निर्माण करवाया जिसमें कटी हुई टहनियां और पेड़ थे. सबसे पीछे घुड़सवार तीरंदाज थे जिसमें बाबर खुद बीच में था. सबसे आगे बाबर ने लगभग 700 लकड़ियों के ठेले, या अराबा एक दूसरे से बांधकर एक डिफेंसिव लाइन तैयार की. इसके ऊपर बाकी तीरंदाज और मैचलॉक बंदूकों से लैस सिपाही थे.

दो ठेलों के बीच में बाबर की टोपी भी थी, और भारत में बारूद के लिए हथियार बहुत कम ही जाने पहचाने थे. किसी बड़ी जंग में इसका इस्तेमाल शायद ही इससे पहले हुआ होगा. 8 दिन तक दोनों सेनाएं आमने सामने खड़ी रही. और 10 अप्रैल को इब्राहिम लोदी अपनी पूरी सेना लेकर बाबर पर चढ़ गया. फिर उसने देखा कि बाबर का फ्रंट काफी संकरा है तो उसने सेना को व्यवस्थित करने की कोशिश की. इस बीच बाबर ने दो तरफ से हमला कर दिया सुल्तान की सेना इनकी तरफ मुड़ी तो उसकी ज्यादातर सेना मुगल तोपों मैचलॉक और तीरंदाजों के सामने आ गई.

इसके ऊपर बाबर के तोपों की आवाज से इब्राहिम लोदी के हाथी डर गए और अपने ही सैनिकों को दबाते हुए भाग गए. इब्राहिम लोदी खुद अपने सैनिकों को लेकर जंग में उतर आया पर लड़ते-लड़ते वह मैदान में ही मारा गया. उसके मरते ही दिल्ली सल्तनत और उसकी सेना दोनों का अंत हो गया. पूरा उत्तरीय भारत अब बाबर के लिए खुला था और अगले 3 सालों में 3 और बड़ी जंगे. खानवा, चंदेली और घागरा जीतकर उसने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की. जो गिरते पड़ते किसी न किसी रूप में अगले 330 साल तक बना रहा.