अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इस परंपरा से होगी रामलला की पूजा, जानें जगाने से लेकर शयन का विधान

Ram Mandir Pran Pratishtha 2024: 22 जनवरी को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा है और इसे लेकर पूरे भारत में जोर शोर से तैयारियां की जा रही हैं। मंदिर से मिली जानकारी के अनुसार, भगवान राम की रामानंदी परंपरा पूजा अर्चना की जाएगी। आइए जानते हैं आखिर क्या है रामानंदी संप्रदाय परंपरा और किस तरह से की जाएगी इस परंपरा से पूजा अर्चना…

अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ रामलला के हर रोज विधि-विधान से पूजन की भी तैयारी हो रही है। राम मंदिर में रामलला की पूजा रामानंदी परंपरा से होगी। प्राण प्रतिष्ठा के बाद धार्मिक कार्यक्रमों और पूजन व्यवस्था का पूरा शेड्यूल तैयार करने की जिम्मेदारी राम मंदिर ट्रस्ट ने श्री राम सेवा विधान समिति को दी है। रामलला की पूजा के दौरान भक्तों को दर्शन करवाने की भी खास तैयारी है, पर भक्त अपनी ओर से कोई प्रसाद नहीं चढ़ा सकेंगे। वह ‘भाव’ लेकर रामलला के दर्शन करेंगे और ट्रस्ट की ओर से ही उन्हें प्रसाद दिया जाएगा।

क्या है रामानंदी परंपरा से पूजा?
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के मुताबिक राम मंदिर रामानंदी परंपरा का है और यहां पूजा भी इसी पद्धति से होगी। अयोध्या के 90 फीसदी मंदिरों में इसी परंपरा से पूजा होती है। अयोध्या के मंदिरों में रामानंदीय परंपरा से पूजा होने की कोई खास वजह है? राम मंदिर के पुजारी प्रेम चंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि इसके पीछे भी एक कथा प्रचलित है। 14वीं शताब्दी में स्वामी रामानंदाचार्य के धार्मिक प्रचार-प्रसार से हिंदू धर्म पर होने वाले मुगलकालीन आक्रांताओं के हमलों से बचाने की मुहिम चलाई गई थी।

वैष्णव, शैव और शाक्त इन तीन धार्मिक परंपराओं में स्वामी रामानंदाचार्य ने वैष्णव पूजा परंपरा को प्रचार अभियान का साधन बनाया, जिसमें श्रीराम और सीता को अपना ईष्ट आराध्य मानकर पूजा की जाती है। अयोध्या में अपने आराध्य श्रीराम की पूजा को श्रेष्ठ मानकर इस पूजन पद्धति को अपनाया गया। हालांकि, दक्षिण के वैष्णव संत स्वामी रामानुजाचार्य की पूजा परंपरा में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को ईष्ट आराध्य माना जाता है, जिनका अवतार भगवान श्रीराम और सीता को मानते हैं। इसलिए अयोध्या के तोताद्रि मठ, कौशलेश सदन और अशर्फी भवन सहित कुछ मठों में रामानुजाचार्य परंपरा से भी पूजा होती है। चूंकि रामानंदाचार्य प्रयाग के रहने वाले थे और काशी में संन्यासी जीवन बिताया था तो उनकी पूरा परंपरा को उत्तर भारत में स्थान मिला। रामानुजाचार्य दक्षिण भारत के संत थे तो उनका प्रसार दक्षिण भारत में ही ज्यादा रहा।

जगाने से लेकर शयन तक का पूरा विधान
रामानंदी परंपरा में रामलला की पूजन पद्धति थोड़े अलग भाव की रहती है। 32 साल से रामलला की पूजा करते आ रहे राम मंदिर के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास बताते हैं कि यहां राम की बालक स्वरूप में पूजा होती है। पूजन में लालन-पालन, खान-पान और पसंद का ध्यान रखा जाता है। पुजारी प्रेम चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि प्रभु राम को बाल स्वरूप में शयन से उठाने के बाद चंदन और शहद से स्नान करवाया जाता है। दोपहर को विश्राम और सायं भोग आरती के बाद शयन तक की कुल 16 मंत्रों की प्रक्रिया पूरी करवाई जाती हैं। सभी अनुष्ठान उनके बालरूप को ध्यान में रखकर संरक्षक बनकर किए जाते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूजन की विधि यही रहेगी। इसे भव्य रूप देने की भी तैयारी हो रही है।