एक ऐसे विटामिन जिसकी कमी से आप सर्दियों में बार बार बीमार पड़ सकते हैं और हर समय पूरे शरीर के मांसपेशियों में दर्द और थकान से हो सकता है हाल बेहाल … पर इस आसान नुस्खे से बिल्कुल फ्री में पूरी कर सकते हैं इस कमी को …

A vitamin whose deficiency can make you fall sick frequently in winters and can make you feel miserable all the time due to muscle pain and fatigue in the entire body… but with this simple remedy, you can make up for this deficiency absolutely free…

विटामिन-डी  हमारे शरीर के लिए एक बेहद आवश्यक पोषक तत्वों में से एक है। पर अक्सर लोगों में इस विटामिन की कमी (Vitamin D Deficiency) देखी जाती है । खास कर सर्दियों में लोगों में इसकी कमी ज्यादा देखने को मिलती है क्यों कि इन दिनों में मौसम ऐसा होता है कि  हमें ठीक से धूप मिल नहीं पाती, कभी धूप निकलती ही नहीं है तो कभी निकलती भी है तो हल्की धूप निकलती है वो भी थोड़े समय के के लिए । इसीलिए ठण्ड के दिनों में इसके लक्षण ज्यादा दिखने लगते हैं। और यह मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन कम हो जाता है । कई अध्ययनों में ये बताया गया है कि लगभग 70 से 80 फ़ीसदी भारतीयों में विटामिन-डी की कमी पाई जाती है। इसलिए इसकी कमी से बचाव करना जरूरी है। इस लेख में हम विटामिन डी के फायदे, विटामिन-डी की कमी के कुछ लक्षणों और ये किन वजहों से होता है साथ ही इससे कैसे बचें, के बारे के बारे में जानेगें ।

 

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विटामिन-डी के लाभ

विटामिन डी शरीर का कैल्शियम बनाए रखने में मददगार होता है। अगर यह विटामिन कम जाये तो बॉडी में कैल्शियम अवशोषण (एब्जॉर्ब) नहीं हो पाता और इस कारण से  कैल्शियम की कमी हो जाती है। कैल्सियम ठीक से बॉडी में एब्जॉर्ब हो इसके लिए विटामिन डी का सही मात्रा होना जरुरी होता है। यह विटामिन हड्डियों को हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है और इसे भंगुर, बोन डेंसिटी कम या फ्रैक्चर होने से हड्डियों को बचाता है। दांतों के स्वास्थ्य के लिए भी यह जरूरी है। अगर विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा हो तो बॉडी की मसल्स ग्रोथ भी ठीक से होता है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और हमारी बॉडी को बाहरी आक्रमण जैसे कि वायरस, बैक्टीरिया, फंगस आदि के संक्रमण से बचाता है। विटामिन D तनाव कम करने एवं डिप्रेशन को कम कर मूड सही रखने बहुत मददगार होता है। यह विटामिन हमें कैंसर और थायरॉइड के खतरे से भी बचाता है। कई अध्ययनों में यह देखा गया है कि विटामिन डी की सही मात्रा हाइपरटेंशन यानी हाई बीपी के जोखिम को भी बहुत हद तक कम कर देती है।

 

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विटामिन-डी की कमी से होने वाली समस्याएं

कमजोर इम्यूनिटी यानि बार-बार बीमार पड़ना, हड्डियों में दर्द, हड्डियों में फ्रैक्चर, मांसपेशियों में दर्द, थकान महसूस होना, हेयरफॉल, कोशिकाओं का विकास रुकना, घाव भरने में देरी, वजन बढ़ना, डिप्रेशन और  एंग्जायटी जैसी समस्याएं विटामिन डी की कमी से होने लगती हैं।

 

 

विटामिन-डी की कमी होने के क्या कारण होते हैं

मुख्य रूप से विटामिन डी हमें सूरज की रोशनी से मिलती है। इसलिए यदि हम पर्याप्त समय धूप में नहीं बिताते हैं, तो हम में विटामिन-डी की कमी हो सकती है। विटामिन-डी कुछ खाद्य पदार्थों में भी पाया जाता है जैसे मछली,अंडे और मशरूम आदि में । यदि इन खाद्य पदार्थ को अपने भोजन में शामिल नहीं करते हों तो इससे भी कुछ हद तक विटामिन-डी की कमी हो सकती है। कुछ दवाएं भी विटामिन-डी के अवशोषण को कम कर सकती हैं।

 

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विटामिन-डी की कमी का इलाज

यदि आपको विटामिन-डी की कमी के सिम्टम्स दिखे तो सबसे पहले आप रोजाना सुबह 8 से दोपहर 12 बजे के बीच धूप में लगभग ३० मिनट्स बैठना शुरू कर दें और विटामिन-डी से भरपूर फूड्स खाने शुरू कर दें इससे आप प्राकृतिक रूप से इस विटामिन को प्राप्त कर सकते हैं। धूप में सरसों तेल, तिल के तेल से मालिश करने से रक्त संचार बेहतर होता है और विटामिन डी का अवशोषण अच्छे से होता है। हमारे बॉडी को मुख्य रूप से अधिकांशतः विटामिन डी सूर्य की किरणों से ही मिल जाती है। और समस्या ज्यादा हो तो इसके लिए डॉक्टर से भी सलाह लेना चाहिए। खून जाँच से पता लग जाता है कि हमारे शरीर में विटामिन-डी का स्तर क्या है और इसी के अनुसार डॉक्टर हमारा इलाज करते हैं । वैसे साधारणतः डॉक्टर इस विटामिन की कमी को ठीक करने के लिए विटामिन-डी की सप्लीमेंट्स लेने को कहते हैं । विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए जो सप्प्लिमेंट्स आम तौर पर दिए जाते हैं वो है कैल्सिफेरोल ग्रेनुअल्स या कैप्सूल । आपकी जरूरतों के आधार पर खुराक निर्धारित किया जाता है ।

 

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विटामिन D के स्त्रोत

विटामिन डी हमें अधिकांशतः प्राकृतिक रूप से सूर्य की किरणों से ही मिल जाती है। इसके अलावा कोल्ड लिवर ऑयल, सेलमन फिश, टूना मछली, ऑरेंज जूस फोर्टिफाइड, डेयरी प्रोडक्ट, अंडे की जर्दी (पीला भाग), दूध, दही, पनीर,मशरूम आदि में भी विटामिन डी भरपूर होता है।  इसकी बहुत ज्यादा कमी होने पर सप्लीमेंट्स लिए जाते हैं।

 

 

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कमी होने पर  कितना विटामिन डी जरूरी होता है

किसी भी तरह के सप्लीमेंट्स लेने से पहले ये जानना महत्वपूर्ण होता है कि हमें कितनी मात्रा में विटामिन डी की जरूरत है। सामान्यतः 60 साल तक के लोगों को 600 आईयू विटामिन डी लेने की सलाह दी जाती है। जबकि 60 साल के ऊपर हैं उन्हें  800 आईयू विटामिन डी लेने को कहा जाता है। वहीं एक साल से छोटे बच्चों के लिए रोजाना 400 इंटरनेशनल यूनिट विटामिन डी जरूरी होता है।

इसकी कमी को पूरा करने के लिए दवा लेने की जो अवधि होती है वो कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, जैसे कि कमी का स्तर और उम्र।  आमतौर पर  डॉक्टर 8 से 12 हफ्तों तक विटामिन D लेने की सलाह देते हैं।  यह विटामिन डी ग्रेनुअल्स, टैबलेट्स, कैप्सूल या लिक्विड के रूप में भी हो सकते हैं।

 

विटामिन डी ज्यादा लेने से ये समस्याएं होने कि संभावनाएं होती हैं

विटामिन डी वसा में घुलनशील विटामिन है। जिसकी वजह से अगर ये शरीर में ज्यादा हो जाता है तो यह पानी के साथ बाहर नहीं निकल पाता है और शरीर में ही जमा होने लगता है और किडनी पर प्रेशर बढ़ जाता है जिससे किडनी फेल होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा विटामिन डी की वजह से डाइजेशन प्रॉब्लम,सीने में दर्द या जलन, उल्टी होना, दस्त लगना या कब्ज जैसी दिक्कतें हो सकती हैं । इसीलिए हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही कोई भी मेडिसिन लेनी चाहिए।

 

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है । किसी भी दवा को लेने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

 

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BY: MADHU KUMARI Delhi School Of Journalism (University of Delhi)

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