कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना किसी भी कीमत पर सेक्टर द्रास की टाइगर हिल पर अपना कब्ज़ा चाहती थी. इसी के तहत 4 जुलाई ,1999 को 18 ग्रेनेडियर्स के एक प्लाटून को टाइगर हिल के बेहद अहम तीन दुश्मन बंकरों पर कब्ज़ा करने का दायित्व सौंपा गया था. इन बंकरों तक पहुंचने के लिए ऊंची चढ़ाई करनी थी. ये चढ़ाई आसान नहीं थी. मगर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे योगेन्द्र यादव ने इसे संभव कर दिखाया.
इस संघर्ष के दौरान उनके शरीर में 15 गोलियां लगी थीं, लेकिन वह झुके नहीं और भारत को जीत दिलाई. इस युद्ध के बाद योगेन्द्र सिंह यादव को 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. योगेन्द्र सबसे कम उम्र के सैनिक हैं, जिन्हें यह सम्मान प्राप्त है. हाल ही में उन्हें ‘Rank of Hony Lieutenant’ से नवाज़ा गया.
Congratulations to the Hero of Motherland 🇮🇳 ‘Yogendra Singh Yadav PVC ‘ on being given Rank of Hony Lieutenant. Stay Safe, Stay Healthy 🇮🇳🙏🏻. pic.twitter.com/OFjp5Pg74I
— Captain Bana Singh Param Vir Chakra (@banasinghpvc) January 28, 2021
पिता 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध का हिस्सा रहे
10 मई 1980 को यूपी के बुलंदशहर ज़िले में मौजूद औरंगाबाद अहिर गांव में योगेन्द्र यादव का जन्म हुआ. पिता करण सिंह पहले से ही सेना का हिस्सा रह चुके थे. 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में उन्होंने कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ़ से विरोधियों से दो-दो हाथ किए. पिता से शौर्य के किस्से सुनकर वह बड़े हुए और 1996 में महज़ 16 साल की उम्र में फ़ौज में भर्ती हो गए.
आर्मी जॉइन किए हुए योगेन्द्र को कुछ ही साल ही हुए थे कि सीमा पर कारगिल का युद्ध छिड़ गया. 1947, 1965 और 1971 में लगातार हारने के बाद भी पाकिस्तान नहीं सुधरा और 1999 में एक बार फिर से भारत पर हमला कर दिया था. इस युद्ध के दौरान योगेन्द्र सिंह यादव को टाइगर हिल के तीन सबसे ख़ास बंकरों पर कब्ज़ा करने का काम सौंपा गया था.
टाइगर हिल के बंकरों पर कब्ज़ा करने का काम मिला था
4 जुलाई 1999 को योगेन्द्र अपने कमांडो प्लाटून ‘घातक’ के साथ आगे बढ़े. उन्हें करीब-करीब 90 डिग्री की सीधी चढ़ाई पर चढ़ना था. यह एक जोखिम भरा काम था. मगर सिर्फ़ यही एक रास्ता था, जहां से पाकिस्तानियों को चकमा दिया जा सकता था. योगेन्द्र की टीम ने रात 8 बजे अपना बेस कैंप छोड़ा और असंभव सी लगने वाली चढ़ाई शुरू कर दी.
वह कुछ दूरी तक पहुंचे ही थे कि विरोधी को उनके आने की आहट हो गई. फिर क्या था. पाकिस्तानी सैनिकों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी. इसमें कई भारतीय जवान गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ समय के लिए भारतीय जवानों को पीछे हटा पड़ा. 5 जुलाई को 18 ग्रनेडियर्स के 25 सैनिक फिर आगे बढ़े. इस बार भी वह विरोधियों की नज़र से नहीं बच सके और उनकी गोलियों का निशाना बने.
करीब पांच घंटे की लगातार गोलाबारी के बाद भारतीय सेना ने योजनाबद्ध तरीके से अपने कुछ जवानों को पीछे हटने के लिए कहा. दुश्मन यह देखकर खुश हो गया. जबकि, यह एक योजना का हिस्सा था.
जब योगेन्द्र ने अपने 6 साथियों के साथ दुश्मन से दो-दो हाथ किए
योगेन्द्र समेत 7 भारतीय सैनिक अभी भी वहीं थे. कुछ देर बाद विरोधी जैसे ही इसकी पुष्टि करने नीचे आए कि कोई भारतीय सैनिक ज़िंदा तो नहीं बचा. योगेन्द्र की टुकड़ी ने उन पर हमला कर दिया. इस संघर्ष के दौरान कुछ पाकिस्तानी सैनिक भागने में सफ़ल रहे. उन्होंने ऊपर जाकर भारतीय सेना के बारे में अपने साथियों को बताया.
दूसरी तरफ़ भारतीय सैनिक तेज़ी से ऊपर की तरफ़ चढ़े और सुबह होते-होते टाइगर हिल की चोटी के नज़दीक पहुंचने में सफल हो गए. असंभव सी लगनी वाली इस चढ़ाई के लिए उन्होंने रस्सियों का सहारा लिया. बंदूकें उनकी पीठ से बंधी हुई थीं. प्लान सफल होते दिख रहा था. तभी पाकिस्तानी सेना ने अपने साथियों की सूचना की मदद से योगेन्द्र को टुकड़ी को चारों तरफ़ से घेरते हुए हमला कर दिया.
इसमें योगेन्द्र के सभी सैनिक शहीद गए. योगेन्द्र के शरीर में भी करीब 15 गोलियां लगी थी. मगर उनकी सांसें चल रही थीं. आंखें मूंदे हुए वह मौके की तलाश में थे. जब दुश्मन को अहसास हो गया कि योगेन्द्र मर चुके हैं. योगेन्द्र ने अपनी जेब में रखे ग्रेनेड की पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दिया.
15 गोलियां लगने के बाद भी योगेन्द्र का साहस कम नहीं हुआ
आगे एक ज़ोरदार धमाके के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए. इस बीच योगेन्द्र ने पास पड़ी रायफ़ल उठा ली थी और बचे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. योगेंद्र का बहुत ख़ून बह चुका था. इसलिए वो ज़्यादा देर होश में नहीं रह सके. इत्तेफाक़ से वह एक नाले में जा गिरे और बहते हुए नीचे आ गए.
भारतीय सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और इस तरह से उनकी जान बच सकी और कारगिल पर भारतीय तिरंगा लहराया गया. युद्ध के बाद योगेंद्र सिंह यादव को अपनी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. वर्तमान में भी वो भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दे रहे हैं.