सिंगर कुमार सानू का कहना है कि उनके पास मक्खन लगाने की स्किल नहीं है। और ना ही उनके पास इतना बड़ा अप्रोच है। इसलिए उन्हें आज तक नेशनल अवॉर्ड या पद्म भूषण अवॉर्ड नहीं मिला है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि कुमार सानू ने 4 दशक के अपने लंबे करियर में 21 हजार से ज्यादा गानें गाए हैं।
‘एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’, ‘मेरा दिल भी कितना पागल है…’, ‘दो दिल मिल रहे हैं…’ ऐसे ही तमाम गाने, जो आज भी उतने ही फेमस हैं, जितने उस जमाने में हुआ करते थे। चाय की टपरी हो या फिर ऑटोरिक्शा, आज भी कई जगहों पर इस तरह के गाने बजते हैं। जब कानों में पड़ते हैं तो शहद की तरह घुल जाते हैं। इन गानों को आवाज देने वाले सिंगर कुमार सानू। रिपोर्ट्स कहती हैं कि उन्होंने 21 हजार से ज्यादा गानें गाए हैं। उनका कहना है कि उन्हें मक्खन लगाने की कला नहीं आती है, उनके पास ऐसा अप्रोच भी नहीं है, जो उन्हें नेशनल अवॉर्ड तक पहुंचा सके।
कुमार सानू का छलका दर्द
Kumar Sanu ने अपना दर्द बताते हुए ‘आज तक’ से कहा कि उन्हें नेशनल अवॉर्ड और पद्म भूषण पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन इस सम्मान के बिना ही संतोष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘अगर आपके पास मक्खन लगाने की स्किल और बड़ा अप्रोच नहीं है तो ये अवॉर्ड मिलना संभव नहीं है। अगर सरकार को लगेगा तो मुझे अवॉर्ड दे देंगे। इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं है।’
जगजीत सिंह ने की थी मदद
कुमार सानू ने अपने करियर की शुरुआत बतौर सानू भट्टाचार्या साल 1983 में की थी। साल 1986 में वो ‘तीन कन्या’ फिल्म में थे, जिसे Shibli Sadiq ने डायरेक्ट किया था। उनका मेजर बॉलीवुड सॉन्ग ‘हीरो हीरालाल’ फिल्म में था, जो साल 1988 में रिलीज हुई थी। एक साल बाद जगजीत सिंह ने कुमार सानू का परिचय कल्याण जी से करवाया। उनके सुझाव पर ही कुमार सानू ने अपना नाम बदला। चूंकि वो किशोर कुमार को मानते थे, इसलिए अपने नाम के आगे कुमार लगा लिया। कल्याण जी-आनंद जी ने कुमार सानू को ‘जादूगर’ फिल्म में गाने का मौका दिया।
‘आशिकी’ मूवी से मिली सक्सेस
साल 1990 में कुमार सानू को तब सफलता मिली, जब ‘आशिकी’ फिल्म हिट हुई और उन्होंने फिल्म के गाने गाए। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘साजन’, ‘दीवाना’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में गाने गाए।