जिला में रिवालसर की पहाड़ियों पर माता नैणा देवी के आंचल में स्थित प्राचीन कुंतभयो झील अभी भी खतरे के निशान से कहीं उपर तक पानी से लबालब भरी हुई है। झील के इस विकराल रूप को देखकर सरकीधार और आस-पास के इलाकों के लोग सहमे हुए हैं।
लोगों का कहना है कि उन्होंने इससे पहले कभी भी इस झील का इतना विकराल रूप नहीं देखा। बीती 12, 13 और 14 अगस्त को हुई भारी बारिश से झील का जलस्तर इतना अधिक बढ़ गया कि झील के आस-पास सदियों से रह रहे लोगों के घर तक पानी में डूब गए। अभी भी यह जलस्तर कुछ घरों के धरातल को छू रहा है। जिस दिन झील में जल प्रलय हुआ उस दिन हनुमान भगवान की मूर्ति और माता का मंदिर पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे।
स्थानीय निवासी प्रेम शर्मा, रत्न चंद, ठाकर दास और धर्मा देवी ने बताया कि उन्होंने इससे पहले कभी झील का ऐसा विकराल रूप नहीं देखा। दशकों पहले एक बार झील में जलभराव जरूर हुआ था लेकिन वो भी इतना नहीं था। लोगों के घर पूरी तरह से सुरक्षित बच गए थे। लेकिन इस बार तो झील ने जल प्रलय मचा दी। इस बार की बारिश से आस-पास के क्षेत्रों में काफी ज्यादा नुकसान हुआ और कुछ घर टूट गए और कुछ घरों में दरारें आ गई हैं। सड़कें और स्कूल भी टूट गए हैं। यदि झील का पानी दो या ढाई फीट उपर चढ़ जाता है तो झील टूट कर महाजलप्रलय ला सकती थी। झील के विकराल रूप को देखकर ग्रामीण अभी भी खौफजदा हैं।
अर्जुन ने तीर मारकर निकाला है पानी
कुंतभयो झील का इतिहास पांडव काल से जुड़ा हुआ बताया जाता है। कहा जाता है कि बनवास के दौरान जब पांडव इन पहाड़ियों पर आए तो माता कुंती को प्यास लगी और अर्जुन ने इसी स्थान पर तीर मारकर पानी निकालकर अपनी माता की प्यास बुझाई थी। इसी कारण इस झील का नाम कुंतभयो झील पड़ा। इस झील में पानी कहां से आता है और कहां जाता है इसका आज दिन तक किसी को कोई पता नहीं। यह एक गूढ़ रहस्य है। चाहे कितनी ही प्रचंड गर्मी क्यों न पड़ जाए, इस झील का पानी कभी नहीं सूखता। जल शक्ति विभाग ने इस झील के पानी से कई स्किमें चला रखी हैं।