शिक्षा रूपी मोती देकर एक शिक्षक अपने स्टूडेंट का भविष्य तो बनाता ही है, लेकिन कुछ टीचर्स ऐसे होते हैं जो इस प्रोफेशन की गरिमा को और भी अधिक बढ़ा देते हैं. बच्चों की आर्थिक मदद करने से लेकर इन टीचर्स ने उन्हें अंधेरे कुएं से निकालकर सुनहरा भविष्य दिखाया है. ऐसे टीचर्स समाज के लिए एक मिसाल हैं.
आज कुछ ऐसे शिक्षकों की कहानी से रूबरू होते हैं, जिन्होंने न सिर्फ़ शिक्षा के ज़रिये बच्चों का जीवन बदला बल्कि अपने प्रयासों के ज़रिये भी एक नए बदलाव की नींव रखी.
40 से ज्यादा बच्चों को चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग से बचाने वाला टीचर
राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिलों के जनजातीय क्षेत्रों में लोगों को गरीब होने, शिक्षा न होने और नौकरियों की कमी की वजह से अपने बच्चों को ‘बंधक’ बनाना पड़ता है. जब एक सरकारी स्कूल के टीचर दुर्गा राम मुवाल के सामने ये समस्या आई, तो उन्होंने इस दिशा में काम शुरू किया. उन्होंने पिछले 8 साल में 40 से ज्यादा बच्चों को बचाया है.
नागौर जिले के इस टीचर ने ये काम तब शुरू किया जब उन्होंने उदयपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर परगियापाड़ा गाँव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, तो पाया कि कैसे कुछ छात्रों ने स्कूल आना बंद कर दिया. उन्होंने कहा, “यह क्षेत्र गुजरात की सीमा के पास है. मुझे बताया गया था कि गुजरात और आंध्र प्रदेश में दलाल हमारे छात्रों को जबरन ले जाते हैं. प्रतिदिन 50 रुपये में, इन बच्चों को 18 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. अक्सर अन्य तरीकों से भी शोषण किया जाता है.”
इसके बाद उन्होंने इस ओर काम शुरू किया और जागरूकता अभियान के साथ शुरुआत की और आदिवासियों को इससे लड़ने के लिए प्रेरित किया.
स्टूडेंट की फीस के लिए टीचर्स ने जुटाए पैसे
कोयंबटूर के रामकृष्णपूरम की श्वेता पकियम को NEET-2020 में श्वेता को 720 में से 142 नंबर मिले. श्वेता पढ़ने में तेज़ थीं, लेकिन एडमिशन के लिए उसके पास पैसे नहीं थे. जिसके बाद उसके स्कूल टीचर्स ने मिलकर 55 हजार रुपये मेटेरियल फीस जमा किया और श्वेता की शिक्षा के बीच की बाधा को खत्म किया.
श्वेता के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं. ऐसे में बड़े खर्च उठाना उनके लिए मुश्किल है. पढ़ाई में होशियार श्वेता आर्थिक तंगी के चलते पीछे न रह जाए, इसलिए टीचर्स ने उसकी मदद की. आगे का खर्च सरकार उठाएगी.
रामकृष्णपुरम कॉर्पोरेशन गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा, जैसे ही हमें जानकारी हुई कि श्वेता को बीडीएस में सीट मिल गई है, हमने पैसा इकट्ठा करना शुरू कर दिया. हमने 46 हजार रुपये जुटा लिए. बचा हुआ पैसा श्वेता के परिवार ने दिया.
मुआवज़े के पैसों से बनाया खेल का मैदान
तमिलनाडु के तंजावुर के पेरुवुरानी की 36 वर्षीय बकियालक्ष्मी थिरुनीलाकंदन एक किसान और पूर्व शिक्षिका हैं. उन्होंने सरकारी स्कूल की लड़कियों के लिए एक वॉलीबॉल कोर्ट बनवाया. उन्होंने इस कोर्ट का निर्माण उन्हें चक्रवात राहत के रूप में 1.5 लाख रुपये का सरकारी मुआवजा के पैसे से बनवाया. लक्ष्मी को 16 नवंबर, 2018 को आये गाजा चक्रवात में अपने नारियल के पेड़ों के बर्बाद होने पर लिए 1.5 लाख का सरकारी मुआवजा मिला था.
खिलाड़ी बनने की ख्वाहिश रखने वाली कई लड़कियों को वॉलीबॉल कोर्ट की अनुपलब्धता की वजह से समस्या हो रही थी. उन्होंने कहा, “मैंने पाया कि हालांकि कई लड़कियां हमारे राज्य और देश के लिए खेलने की ख्वाहिश रखती हैं, लेकिन उनके माता-पिता अभ्यास के लिए अपने वार्ड भेजने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि कोच उन्हें एक अच्छी वॉलीबॉल कोर्ट की तलाश में विभिन्न स्थानों पर ले जाते हैं. स्कूल में पढ़ने वाले पांच छात्रों को राज्य के विभिन्न खेल छात्रावासों में प्रवेश मिला. लेकिन, उनके माता-पिता ने उन्हें हॉस्टल में शामिल होने से रोक दिया.”
बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने वाले प्रिंसिपल
झारखंड के एक गांव के एक स्कूल के प्रिंसिपल कोविड महामारी के दौरान शिक्षा को दूसरे स्तर तक ले जाने की पहल की. रांची के दुमका के दुमथर गाँव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय ’के प्रिंसिपल सपन कुमार ने एक बेहतरीन पहल की है, जिसके तहत वो बच्चों को चाक, चटाई और झाड़ू बनाने में मदद करने के लिए आत्मनिर्भर बना रहे हैं.
कुमार ने कहा कि स्टूडेंट्स अपनी क्लास के बाद चाक, मैट और झाड़ू का उत्पादन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “मुझे चाक खरीदना बहुत महंगा लगा. इसलिए, मैंने एक विकल्प की तलाश शुरू कर दी. कुछ दिनों तक सोचने के बाद मैंने इसे स्वयं उत्पादित करने का फैसला किया क्योंकि कच्चा माल प्राप्त करना बहुत कठिन नहीं था.”
उन्होंने आगे कहा, “अब, बच्चे हर दिन 200 से अधिक चाक बना रहा है. इसी तरह, हर बच्चे को अपने घरों के बाहर बैठने के लिए एक चटाई की आवश्यकता होती है. इन मटकों को ताड़ के पत्तों का उपयोग करके बनाया जाता है.”
ये टीचर प्लास्टिक से निपट रही है
जम्मू की टीचर और पर्यावरणविद Dr. Nazia Rasool Latifi प्लास्टिक की बोतलों से बाग़ बनाती हैं. वह वर्टीकल गार्डन बना रही है, जिससे प्रदूषण और पानी की बर्बादी दोनों में कमी होगी.
Latifi ने कहा, “मैंने एक सेमिनार में भाग लिया था जिसके बाद मुझे यह विचार आया. मुझे प्रकृति से प्यार है और मुझे कुछ करने का जुनून था इसलिए मैंने इसकी शुरुआत की. मैंने गांधी नगर में गवर्नमेंट कॉलेज फॉर वीमेन में वर्टिकल गार्डन बनाया था, जिसमें मैं पढ़ा रही थी. मैंने पुलिस पब्लिक स्कूल, जम्मू विश्वविद्यालय में एक वर्टिकल गार्डन बनाया है जिसके बाद कई संगठन मुझसे संपर्क कर रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “इस ड्रिप सिंचाई का उपयोग प्रक्रिया में किया जाता है ताकि पानी की कम मात्रा का उपयोग किया जाए. COVID-19 में जब एक स्वस्थ वातावरण की ज़रूरत है, तब यह एक अच्छी पहल है. मैं इसे स्टूडेंट्स को सिखाती हूं ताकि आगे वो इसके ज़रिये कमाई भी कर सकें.”
टीचर्स ने मिलकर भरी 50 बच्चों की फीस
कर्नाटक में लेक्चरर्स अपने 50 स्टूडेंट्स की फ़ीस भरी ताकि बच्चे पढ़ाई जारी रख पायें. Shirahatti College में कुछ बच्चे एडमिशन के लिए इसलिए नहीं आ पा रहे थे क्योंकि उनके घर में आर्थिक तंगी चल रही थी. जिसके बाद कॉलेज फ़ैकल्टी ने पैसे जुटाए और 50 स्टूडेंट्स की एडमिशन फ़ीस भरी.
इनमें से अधिकतर बच्चों के अभिभावक दिहाड़ी मज़दूर और खेतिहर किसान थे.11 लेक्चरर की इस पहल को देखकर कॉलेज प्रबंधन प्रभावित हुआ और मदद के लिए आगे आया. कॉलेज ने कई बच्चों की फ़ीस अपनी जेब से भरने की घोषणा की है.
इस टीचर ने लिया जागरूकता फ़ैलाने का बीड़ा
तेलंगाना में खम्मम जिले के उच्च विद्यालय के टीचर जी सुरेश कुमार साइकिल पर हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करके COVID -19 के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं. वो बीते 6 महीने में 300 से भी ज्यादा गाँवों में सफ़र कर चुके हैं. कुमार स्थानीय भाषा में जागरूकता बढ़ा रहे हैं और अपनी साइकिल पर सैकड़ों गांव से गुज़रते हुए लोगों को जागरूक करते हैं. वो अपनी साईकिल के पहिये पर लगे मेगाफोन के माध्यम से घोषणाएं करते हैं.
ये पहली बार नहीं है जब कुमार इस तरह की सामाजिक ज़िम्मेदारी अपने नाम की हो. इससे पहले वो प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने और शराब के ग़लत प्रभाव से जुड़ी जानकारी देने के लिए अपनी साइकिल से ही अभियान चला चुके हैं. उन्होंने कहा, “मैं पिछले 17 साल से HIV, प्रदूषण, धूम्रपान और नशे की लत आदि के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए साइकिल पर यात्रा कर रहा हूं.”