वाराणसी को पहचान कई चीजों से है. इनमें से एक बनारसी मिठाइयां भी है, जिसकी पूरी दुनिया कायल है. इन सबके बीच वाराणसी में बनने वाली मलइयो अपने स्वाद की वजह से अलग पहचान बनाए रखती है. एक बार जो इसे चखा, वह इसके स्वाद को नहीं भूल पाता है और बार-बार खाना चाहता है.
साल में सिर्फ़ 3 महीने मिलने वाली मलइयो मुंह में जाते ही झट से घुल तो जाती है, लेकिन इसकी तासीर ऐसी है कि स्वाद घंटों ज़ुबान पर बना रहता है. लोगों को इंतजार रहता है कि कब ठंड आए और कब उन्हें बनारसी मलइय्यो को खाने का सुख मिले.
ओंस की बूंदो से तैयार मलइय्यो जहां स्वादिष्ट होती है, वहीं यह सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. इसे आंखों के लिए फायदेमंद माना जाता है वहीं इसमें केसर, बादाम को मिला देने से ये स्किन के लिए फायदेमंद हो जाता है और शक्तिवर्धक भी हो जाता है. दूध से बनने वाली इस मिठाई की पहचान पूरी दुनिया में है.
वाराणसी में साल में 3 महीने में ओंस गिरता है. बस इसी समय मलइयो बनता है. कहा जाता है कि जितनी ज्यादा ओंस गिरती है मलइय्यो की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होती जाती है. सुबह-सुबह इसे खाने वालों की भीड़ लगी रहती है. कई जगह तो कुछ ही घंटे में स्टॉक खत्म हो जाता है.
बनाने की विधि
मलइय्यो बनाने के लिए कच्चे दूध को बड़े-बड़े कड़ाहों में खौलाया जाता है. इसके बाद रात में इस दूध को खुले आसमान के नीच रख दिया जाता है. पूरी रात ओस पड़ने की वजह से इसमें झाग पैदा हो जाता है. सुबह मथनी से इस दूध को मथा जाता है. इसके बाद छोटी इलायची, केसर और मेवा डालकर एक बार फिर से इसे मथा जाता है. इसके बाद इसे कुल्हण में डालकर बेचा जाता है.
3 महीने का इंतजार
नंबर अंत से फरवरी की शुरुआत तक मिलने वाली मलइय्यो का इंतजार लोगों को सालभर रहता है. इसके बिने के साथ ही लोग इसे खाने के लिए पहुंचने लगते हैं. कुछ लोग इसकी तुलना लखनऊ के मक्खन से भी करते हैं. लेकिन, ये उससे बिल्कुल अलग होता है. यही कारण है कि दुनियाभर में इसकी अलग पहचान है.