सत्तू : कभी गरीबों के लिए था मजबूरी, आज दुनिया के लिए बन गया एनर्जी टॉनिक, रोचक है इसका इतिहास

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‘सत्तू या सतुआ’ ऐसा नाम जो मजबूरी भी रहा और शौक भी बना. आज सत्तू पर बिहार का दावा चलता है. यहां पीने के रूप से लेकर फेमस लिट्टी तक में इसका इस्तेमाल होता है. और तो और बिहार इस खाने की सामग्री के नाम पर सतुआन जैसा त्योहार मनाता आ रहा है. आज जब लोग अपने आसपास अनजानी बीमारियों को बढ़ता देख अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने लगे हैं, ऐसे में सत्तू जैसा वर्षों पुराना आहार अब लोगों के मॉडर्न डाइट चार्ट में शामिल होने लगा है.

कभी मजबूरी, आज शौक

Sattu Pure

एक समय था जब बिहार का गरीब तबका इस सत्तू से अपना पेट भरा करता था. इस सत्तू ने कई परिवारों को भुखमरी से बचाया है. आज इसी सत्तू को पीने के लिए लोग सड़कों पर लाइन लगाते हैं. इस सत्तू में प्याज, मिर्च आचार का मसाला और नींबू पड़ता है तो गर्मी में ये किसी अमृत से कम नहीं लगता. काभी मजबूरी में खाए जाने वाले इस सत्तू को लोग आज चाव और शौक से कहा रहे हैं.

पुराना है इसका इतिहास

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जितना स्वादिष्ट और पौष्टिक सत्तू का स्वाद है उतना ही रोचक इसका इतिहास है. आज भले ही सत्तू बिहार और झारखंड जैसे राज्यों का फूड माना जाता हो लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है. सत्तू के बारे में बहुत सी बातें प्रचलित हैं. कहा जाता है कि भरपूर पोषण और ऊर्जा के लिए ये आहार पहले के समय में युद्ध के दौरान सैनिकों को दिया जाता था. यही कारण है कि सत्तू को भारत का सबसे पुराना ‘इंस्टेंट एनर्जी ड्रिंक’ कहा जाता है.

बौद्ध भिक्षु करते थे इसका सेवन

Tsampa NPR/Tsampa

इतिहासकारों के अनुसार बौद्ध भिक्षु जब भी अपनी यात्रा पर निकलते थे, अपने साथ ‘tsampa’ जरूर रखते थे. बता दें कि ये भिक्षु सत्तू को ‘tsampa’ कहते थे. भूख को मिटाने और पोषण पाने का सबसे आसान तरीका होने के कारण ही बौद्ध भिक्षु सत्तू को आहार के रूप में प्राथमिकता देते थे. इसके अलावा बताया जाता है कि कारगिल युद्ध में भी सत्तू को बहुत महत्व दिया गया था. लद्दाख स्काउट्स की रेजिमेंट के फ़ूड की लिस्ट में इस सुपरफूड का नाम शामिल किया गया था. वहीं, छत्रपति शिवाजी महाराज की गुरिल्ला सेना द्वारा भी सत्तू का सेवन किया जाता था. क्योंकि इससे मिलने वाली ऊर्जा के साथ-साथ, इसे साथ में रखना और इसका सेवन करना बहुत ही आसान था.

कई प्रकार का होता है सत्तू

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बताया जाता है कि सत्तू नाम संस्कृत के सक्तु या सक्तुकः से लिया गया है. इसका मतलब होता है अनाज को भूनने के बाद उसे पीस कर बनाया गया आटा. बता दें कि सत्तू का कोई एक प्रकार नहीं होता. बल्कि ये जौ का सत्तू, जौ-चने का सत्तू, चावल का सत्तू, जौ-गेहूँ चने का सत्तू जैसे रूपों में पाया जाता है.

सत्तू बनाने के लिए सबसे पहले चने को पानी में भीगने के लिये रख दिया जाता है. इसके बाद इन्हें सुखाने के बाद बालू में भूना जाता है. इसके बाद इसे भूने हुए मसालों, यथा जीरा, काली मिर्च इत्यादि के साथ पीसा जाता है. बता दें कि सत्तू सिर्फ चने का ही नहीं बल्कि जौ से भी बनता है. जौ का सत्तू बनाने के लिए भी उपरोक्त तरीका ही अपनाया जाता है.

इस तरह कर सकते हैं सत्तू का सेवन

Sattu paratha Sattu paratha

सत्तू का सेवन करने के कई तरीके हैं. आप इसे पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लाप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं. इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोल सकते हैं. आप उचित मसाले मिला कर इसे आंटे की तरह गूंथ कर कच्चा ही कहा सकते हैं. सत्तू अपने आप में संपूर्ण आहार है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है. यही वजह है कि इसे गर्मियों में इतना पसंद किया जाता है. बरसात आते ही सत्तू लिट्टी का रूप ले लेता है. इसके साथ ही सत्तू के पराठे भी बनाए जा सकते हैं.