भारतीय सिनेमा की कई खूबसूरत अदाकाराओं ने इंडस्ट्री पर राज किया, लेकिन आज कहानी बॉलीवुड की पहली फीमेल सुपरस्टार (India’s first female superstar) की, जिनकी खूबसूरती की वजह से परिवार उन्हें पर्दे में रखता था. बंटवारे में पति को छोड़ पाकिस्तान के बदले भारत को चुना और बेटी की खातिर अपने करियर के पीक पर इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया.
हम बात कर रहे हैं 40 के दशक की सबसे सुंदर और शानदार एक्ट्रेस नसीम बानों (First female superstar Naseem Bano) की, जिन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर 31 वर्षों तक राज किया. उनकी सुन्दरता की वजह से उन्हें ब्यूटी क्वीन कहा जाता था. यही नहीं नसीम बानों को भारत की पहली फीमेल सुपरस्टार के तौर पर भी जाना जाता है.
खूबसूरती की वजह से पर्दे में रखता था परिवार
नसीम बानो का जन्म 4 जुलाई 1916 को दिल्ली में हुआ था. उनका असली नाम रोशा आरम बेगम था. Naseem Bano की मां शमशाद बेगम उर्फ़ छमियान बाई एक मशहूर गायिका थीं. नसीम की परवरिश शाही तरीके से हुई. वह पालकी में सवार होकर स्कूल जाया करती थीं.
कहा जाता है नसीम इतनी खूबसूरत थीं कि उनका परिवार उन्हें नजर से बचाने के लिए हमेशा पर्दे में रखता था. मां का सपना था बेटी पढ़ लिखकर डॉक्टर बनें. मगर, नसीम एक्टिंग की दुनिया में अपना करियर बनाना चाहती थीं.
मां को मनाने के लिए भूख हड़ताल पर गई थीं
एक बार जब वह अपनी मां के साथ फिल्म ‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग देखने गईं. तब वह काफी प्रभावित हुईं. उसी दौरान डायरेक्टर की नजर नसीम बानो पर पड़ी. वह उनकी खूबसूरती पर फ़िदा हो गया और फ़ौरन फिल्म ऑफर कर दी, मगर नसीम की मां ने ‘अभी बच्ची है कहकर’ ऑफ़र ठुकरा दिया. नसीम की मां नहीं चाहती थीं कि बेटी फिल्मों में काम करे. इसके बाद फिल्म प्रोड्यूसर सोहराब मोदी ने ‘खून का खून’ फिल्म के लिए बतौर लीड एक्ट्रेस नसीम बानो को ऑफर दिया. इस बार भी उनकी मां ने इंकार कर दिया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नसीम अपनी मां के लाख मना करने के बावजूद एक्ट्रेस बनने की जिद पकड़ रखी थीं. वह मां को मनाने के लिए भूख हड़ताल पर चली गईं. बेटी की जिद के आगे मां की ममता पिघल गई और मां की रजामंदी मिलने के बाद नसीम ने फिल्म ‘खून का खून’ से भारतीय सिनेमा में डेब्यू किया.
फिर बनी भारतीय सिनेमा की सफल अभिनेत्री
फिल्म हिट रही. अब पूरा देश नसीम की खूबसूरती पर मोहित हो गया था. उन्हें फिल्मों के खूब ऑफर आने लगे. जिसके बाद पढ़ाई छोड़ एक्टिंग पर फोकस करने लगीं. आगे, फिल्म ‘पुकार’ में नूर जहां का किरदार नसीम के करियर में गेम चेंजर साबित हुई.
इसके बाद कई सफल फ़िल्में देकर भारतीय सिनेमा की सबसे डिमांडिंग अभिनेत्रियों में से एक बन गईं. कहा जाता है कि सोहराब मोदी के अलावा कई प्रोड्यूसर के जब उन्हें ऑफ़र आने लगे. तब कांट्रेक्ट की वजह से नसीम कुछ समय तक वह ऑफर एक्सेप्ट नहीं कर पाई थीं. जिसको लेकर मोदी से उनकी अनबन भी हुई थी.
बहरहाल, इसके बाद नसीम ने दूसरे प्रोड्यूसर के साथ भी कई फ़िल्में कीं. वह अपने दौर की न सिर्फ सबसे सफल अभिनेत्रियों में शुमार थीं, बल्कि नसीम सबसे फिल्मों के लिए सबसे अधिक चार्ज करने वाली एक्ट्रेस भी थीं.
पति को छोड़, पाकिस्तान के बदले भारत को चुना
नसीम ने अपने बचपन के दोस्त एहसान-उल हक से शादी की थी. उन्होंने बेटी सायरा बानो और बेटे सुल्तान अहमद को जन्म दिया था. उनके पति ने भी खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला. जिसका नाम ताज महल पिक्चर्स था, जिसके तहत नसीम ने कई हिट फ़िल्में दीं.
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. नसीम के पति पाकिस्तान चले गए, लेकिन नसीम ने उनके साथ जाने से मना कर दिया और भारत में रहना पसंद किया. पाकिस्तान जाने के बाद एहसान-उल-हक कभी नसीम से मिलने भारत नहीं आए. कहा जाता है वह अपने साथ नसीम की फिल्मों के निगेटिव भी ले गए थे, जिनसे उन्होंने खूब पैसे कमाए, क्योंकि नसीम के पाकिस्तान में भी काफी फैंस थे.
करियर के पीक पर बेटी के लिए एक्टिंग छोड़ दी
बेटी सायरा बानो भी मां की तरह एक्ट्रेस बनना चाहती थीं, हालांकि पहले नसीम नहीं चाहती थीं कि सायरा फिल्मों में काम करे, लेकिन बेटी की जिद के आगे इन्हें मानना ही पड़ा. फिर सायरा भी अपनी मां नसीम पर गई थीं, जिसके बाद बेटी के लिए नसीम ने एक्टिंग की दुनिया को अलविदा कह दिया.
यह वही दौर था जब नसीम अपने करियर की पीक पर थीं और उनकी बेटी बॉलीवुड में दस्तक देने जा रही थी. वह नहीं चाहती थीं कि बेटी सायरा की तुलना उनसे की जाए. इसलिए उन्होंने अपनी आखिरी फिल्म ‘अजीब लड़की’ के बाद एक्टिंग को हमेशा के लिए छोड़ दिया.
खैर, नसीम की बेटी सायरा बानो भी बॉलीवुड स्टार बनीं. वहीं नसीम ने बेटी की कई फिल्मों में उनकी ड्रेसेज डिजाइन की. सायरा और दिलीप कुमार की शादी में भी नसीम ने बड़ी भूमिका निभाई थी. वहीं 18 जून 2002 में नसीम का निधन हो गया, लेकिन आज भी वह अपनी एक्टिंग और इंडस्ट्री में अपने बहुमूल्य योगदान की वजह से हमारे दिलों में जिंदा हैं.