नमन: नहीं रहे पूर्व मेजर चंद्रसिंह, WW2 सहित सभी युद्ध लड़े, 38 साल सेना को दिए, फिर की समाजसेवा

द्वितीय विश्व युद्ध समेत आजाद भारत के सभी जंगों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पूर्व मेजर चंद्रसिंह मलिक का मंगलवार को इस दुनिया को अलविदा कह गए. रोहतक जिले के खरावड़ गांव के रहने वाले पूर्व मेजर चंद्रसिंह ने 98 साल की उम्र में आखिरी सांस ली.

नहीं रहे पूर्व मेजर चंद्रसिंह

retired major chandra singh malikBhaskar

तीन दशकों से ज्यादा देश की माटी की रक्षा करने वाले चंद्र सिंह मंगलवार को अपने गांव की मिट्टी में समय गए. यहीं पर उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनकी चिता को उनके पूर्व फौजी बेटे सत्यवीर मलिक ने मुखाग्नि दी. उनके संस्कार में खरावड़ ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों से भी गणमान्य लोग पहुंचे. बता दें कि चंद्रसिंह मलिक कुछ दिनों से बीमार थे और उनका इलाज चल रहा था. उन्हें गले और पेशाब में दिक्कत थी. चंद्रसिंह मलिक की पत्नी का निधन वर्ष 2009 में हो गया था. इन दिनों वह अपने दत्तक बेटे के साथ रहते थे जिसे उन्होंने अपने छोटे भाई से गोद लिया था.

कौन थे चंद्रसिंह मलिक?

चंद्रसिंह मलिक का जन्म 1 दिसंबर 1925 को खरावड़ गांव में चौधरी न्यादर सिंह मलिक के घर हुआ. वह बचपन से ही विशिष्ट प्रतिभा की धनी थे. 10वीं की परीक्षा पास करते ही उन्होंने आर्मी ज्वाइन कर ली थी. सबसे पहले वह 1942 में एक जवान के रूप में अंग्रेजों की रॉयल नेवी में भर्ती हुए.

बता दें कि अकेले दक्षिण-पूर्व एशिया में, 700,000 भारतीय सैनिक बर्मा, मलाया और भारत-चीन से जापानी सेनाओं को हटाने के प्रयास में शामिल हुए. युद्ध समाप्त होने तक, भारतीय सेना में 25 लाख लोग थे, जो दुनिया में अब तक देखी गई सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना थी. इनमें से 87,000 से अधिक का अंतिम संस्कार या उन्हें दुनिया भर में और भारत में युद्ध कब्रिस्तानों में दफनाया गया है. इकतीस विक्टोरिया क्रॉस जो कुल पुरस्कार का 15% हिस्सा थे, अविभाजित भारत के सैनिकों के पास गया. इन्हीं में से कई भारतीय रॉयल नेवी का हिस्सा भी थे. चंद्र सिंह भी इस विश्व युद्ध का हिस्सा रहे.

गोवा मुक्ति ऑपरेशन में भी लिया भाग

इसके बाद जब 1947 में देश आजाद हुआ तब चंद्रसिंह मलिक भारतीय सेना में बतौर सिग्नल मैन भर्ती हुए. अपनी प्रतिभा के दम पर प्रमोशन पाते हुए वह मेजर के पद तक पहुंचे. उन्होंने भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के बीच हुए सभी युद्धों में भाग लिया. इसके साथ साथ वह 1961 में गोवा मुक्ति ऑपरेशन में भी शामिल थे. 38 साल तक भारतीय सेना की सेवा करने के बाद वह 1980 में रिटायर हो गए. पूर्व मेजर चंद्रसिंह मलिक को हरियाणा एक्स सर्विसमैन लीग की ओर से सम्मानित किया गया था.

फौज के बाद की समाज की सेवा

उनके बारे में कहा जाता है कि वह मृदु भाषी, सकारात्मक सोच के साथ समाजसेवी भी थे. आर्मी से रिटायर होने के बाद चंद्रसिंह मलिक ने खरावड़ गांव में स्थित अपने घर में लाइब्रेरी खोली. जहां गांववालों के लिए पुस्तकें, पत्रिका और समाचारपत्र पढ़ने की व्यवस्था की गई है. पूर्व मेजर इस लाइब्रेरी में हर रविवार को हवन करवाते थे.

बाद में वह मुक सेवक चौधरी माडू सिंह मलिक के आह्वान पर खानपुर कन्या गुरुकुल में 1982 से 1992 तक 10 साल महासचिव रहे और वहां महिला पॉलेटेक्निक की शुरूआत की. इसके बाद गुरुकुल को गवर्नमेंट एडिड बनवाने में भी उनका अहम योगदान रहा. गुरुकुल में सेवाएं देने के बाद उन्होंने दिल्ली कैंट में वृद्ध पूर्व सैनिकों के लिए बने ओल्ड एज होम में वर्षों तक बिना वेतन सेवाएं दीं. धर्मपत्नी के स्वर्गवास के बाद वे अपने गांव लौट आए और अपने घर पर परिवार के साथ रहने लगे.

बताया जाता है कि गांव में रहते हुए उन्होंने एक समाज सेवक के रूप में सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. गुरुकुलों और गोशालाओं में सेवा के साथ वह दान-पुण्य के कार्यों में हमेशा आगे रहे. वृद्धावस्था और बीमारी की चलते पिछले एक वर्ष से वे बीमार चल रहे थे. लंबी बीमारी के बाद 28 अगस्त रात 8 बजे उन्होंने इस दुनिया से विदा ले ली.