अंटार्कटिका के चार कॉलोनीज़ में हज़ारों एम्परर पेंगुइंस के बच्चों की मौत हो गई. एक रिसर्च के मुताबिक 2022 में सी आइस लेवल्स काफ़ी कम दर्ज किया गया. इसका सीधा असर ब्रीडींग सीज़न पर पड़ा. ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से अंटार्कटिका की बर्फ़ पिघली, समुद्र के पानी का स्तर बढ़ा. इस वजह से हज़ारों पेंगुइन के बच्चों की जान चली गई.
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मर रहे हैं पेंगुइन
हाल ही में जारी किए गए रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में ग्लोबल वॉर्मिंग का सीधा दुष्प्रभाव एम्परर पेंगुइंस पर पड़ा. नवजात बच्चों के नीचे की बर्फ़ पिगल गई और उनकी मौत हो गई. इन बच्चों में वॉटरप्रूफ़ पंख विकसित नहीं हुए थे. वॉटरप्रूफ़ पंखों की मदद से अंटार्कटिक समंदर में पेंगुइन तैरते हैं. बच्चे तैर नहीं पाए और वक़्त से पहले ही मारे गए.
एम्परर पेंगुइंस पर विलुप्त होने का खतरा
जर्नल कम्युनिकेशन्स अर्थ ऐंड एनवायरनमेंट (Journal Communications Earth & Environment) में छपी स्टडी के मुताबिक 90% एम्परर पेंगुइंस पर इस सदी के अंत तक विलुप्त होने का खतरा है. ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अंटार्कटिका महाद्वीप पर सीज़न्ल सी आइस घट रहा है. इसी वजह से पेंगुइंस के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है.
Bellingshausen Sea में ब्रीडींग फ़ेलियर की कल्पना किसी भी वैज्ञानिक या शोधार्थी ने नहीं की थी. पहली बार अंटार्कटिका में एक ही सीज़न में पेंगुइंस के मल्टीपल कोलोनीज़ ऐसे मारे गए हैं. स्टडी के प्रमुख लेखक और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के रिसर्चर डॉ पीटर फ़्रेटवेल ने कहा, ‘ये एक दर्दनाक कहानी है. मुझे यकीन नहीं हुआ. ये सोचना भी कठिन है कि इतने प्यारे छोटे बच्चे इस तरह मारे जाएंगे.’
डॉ. पीटर ने ये भी कहा कि उन्होंने अंदाज़ा लगाया था कि ऐसा हो सकता है. गौरतलब है कि ये इतनी जल्दी होगा इस बात की किसी ने कल्पना नहीं की थी. फरवरी में अंटार्कटिक महासागर की बर्फ़ पिघल कर काफ़ी कम हो गई. ये पिछले साल से भी कम थी.
अक्टूबर के आखिर से दिसंबर के शुरुआत के बीच Verdi Inlet, Smyley Island, Bryant Coast और Pfrogner Point कॉलोनीज़ में समंदर की बर्फ़ पिघली. इन इलाकों के कुछ हिस्सों में बर्फ़ पूरी तरह पिघल गई. अनुमान लगाया जा रहा है कि पेंगुइंस के पैरों तले की बर्फ़ पिघल गई और वो खुद को डूबने से नहीं बचा पाए.
पेंगुइंस शिकारियों से, फिशिंग से बचे रहे
Happy Feet फिल्म्स में एम्परर पेंगुइंस को दिखाया गया है. ये प्रजाति फ़िशिंग, शिकारियों से, घर छिन जाने से बची हुई है. ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से ये प्रजाति नहीं बच पाई. 2100 तक ये प्रजाति विलुप्त हो सकती है, ऐसा शोधार्थियों का अनुमान है.
अगर हम इंसान फॉसिल फ्यूल्स के इस्तेमाल को नियंत्रित करते हैं तो एम्परर पेंगुइंस समेत कई प्रजातियों को बचाया जा सकता है.