कहते हैं ‘शौक बड़ी चीज होती है.’ इस शौक के लिए लोग न जाने क्या कुछ नहीं कर जाते. हालांकि आज के दौर में लोग उतने शौकीन नहीं हैं जितने पहले के राजा-महाराजा या नवाब हुआ करते थे. आज के समय में कोई भी शख्स अपने शौक के लिए खुद पर पैसे लुटाता है लेकिन पहले के अमीरों के शौक ऐसे थे जिनके बारे में सुन कर लोग हैरान रह जाते हैं.
ये नवाबों के शौक का ही असर है कि लोग किसी शौकीन आदमी को देख कर कहते हैं कि ‘फलाना नवाबी शौक रखता है.’ ऐसे ही एक शौकीन नवाब अपने देश में भी हुए हैं. वैसे तो हमारे ही देश अलवर के महाराजा जय सिंह प्रभाकर जैसी शख्सियत भी हुए हैं जिन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ‘रोल्स रॉयस’ की लग्ज़री गाड़ियों को कचरा ढोने में लगा दिया था, लेकिन हम आज जिस नवाब की बात करने जा रहे हैं उनका शौक एक अलग ही लेवल पर था, जिसकी बराबरी शायद आज के धन्ना-सेठ भी न कर पाएं.
जब भारत के सामने खड़ी हुई चुनौती
उस शौकीन नवाब और उनके शौक के बारे में बात करने से पहले हम बात करते हैं आजाद भारत की उस रियासत के बारे में जिसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाने के लिए पूरा जोर लगाया गया. 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होते ही लोग खुशी से झूम उठे. देश गुलामी की जंजीरों से बाहर निकल कर आजाद हवा का आनंद ले रहा था लेकिन सरकार एक ऐसी बड़ी चुनौती का सामना कर रही थी, जिस वजह से भारत का बहुत सा हिस्सा उसके हाथ से जा सकता था. दरअसल, ये चुनौती थी देश की छोटी-बड़ी कुल 565 रियासतों को भारत में विलय कराने की. इसका जिम्मा उठाया तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने. सरदार पटेल और सचिव वीपी मेनन इस काम में जुट गए.
तीन रियासतों ने कर दिया इनकार
तेज-तर्रार और कड़क अफसर के रूप में प्रसिद्ध वीपी मेनन के प्रयासों से ज्यादातर रियासतों ने थोड़ी बहुत ना-नुकर के बाद भारत का हिस्सा बनने की बात स्वीकार ली लेकिन तीन रियासतें ऐसी थीं जो इस फैसले पर अड़ गईं. विख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा के अनुसार कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ ही वे तीन रियासतें थीं जिन्होंने भारत में विलय से साफ इनकार कर दिया. कहा जाता है कि हैदराबाद इनमें से सबसे धनवान रियासत थी और इसके बाद नंबर आता था जूनागढ़ का.
वो शौकीन नवाब थे महाबत खान
जिस शौकीन नवाब की बात हमने शुरू की थी, वह इसी रियासत, जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय थे. बेहद अड़ियल किस्म के इंसान माने जाने वाले महाबत ख़ान ने अपनी पत्नी भोपाल बेगम के कहने पर जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल करवाने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा हो न सका. महाबत खान को सिर्फ इसी घटना के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि वह सबसे ज्यादा जाने गए अपनी मोहब्बत के लिए. लेकिन उनकी ये मोहब्बत इंसानों के लिए नहीं बल्कि कुत्तों के लिए मशहूर हुई.
कुत्तों से थी बेपनाह मोहब्बत
कुत्तों के प्रति नवाब महाबत खान की मोहब्बत इस कदर थी कि उनके पास एक दो नहीं बल्कि पूरे 800 कुत्ते थे. इतिहासकार परिमल रूपाणी के अनुसार इन कुत्तों 800 को पालने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई थी जैसे कि ये इंसान हों. उस समय नवाब इन कुत्तों को पालने में 1000 रुपये महीने तक खर्च किया करते थे. जान लीजिए कि उस समय के हजार रुपये की अहमियत आज के लाखों के बराबर है. इन कुत्तों की देखरेख के लिए नौकर-चाकर रखे गए थे. इसके साथ ही इनके लिए अलग-अलग कमरे, बिजली और टेलीफोन की व्यवस्था भी थी.
इतना ही नहीं, इन कुत्तों की शादी से लेकर इनके मरने तक रुपया पानी की तरह बहाया जाता था. किसी कुत्ते की मौत होने के बाद उसे तमाम रस्मों-रिवाज़ के साथ कब्रिस्तान में दफनाया जाता और उसकी शव यात्रा में शोक संगीत भी बजया जाता था. नवाब महाबत खान का कुत्तों के प्रति प्रेम दुनिया भर में तब और ज्यादा प्रसिद्ध हुआ जब उन्होंने अपनी पसंदीदा कुतिया की शादी धूमधाम से करटे हुए, उस शादी पर करोड़ों खर्च कर दिए
रोशना की शादी पर खर्च किये करोड़ों
भले ही नवाब के पास 800 कुत्ते थे लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा प्यार रोशना नामक कुतिया से था. ये प्यार इतना ज्यादा था कि नवाब उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे. विख्यात इतिहासकार डॉमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ इस बात का जिक्र किया है कि नवाब महाबत खान ने जिस ‘रोशना’ को उन्होंने अपनी बेटी की तरह पाला उसकी शादी भी उसी धूमधाम से कराई जिस तरह से कोई अमीर अपनी बेटी की शादी कराता है. उन्होंने रोशना की शादी अपने दूसरे कुत्ते ‘बॉबी’ से कराई थी.
रोशना और बॉबी की शादी कितनी खास थी इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस शादी में तमाम राजा-महाराजा समेत वायसराय को आमंत्रित किया था और 1.5 लाख से अधिक मेहमान इस शादी का हिस्सा बने थे. रोशना की शादी में नवाब ने करीब 9 लाख रुपये खर्च किये थे. बता दें कि उस समय के 9 लाख आज 10 करोड़ रुपये के बराबर हैं. इस हिसाब से रोशना की शादी करोड़ों में हुई थी. बता दें कि उस समय जूनागढ़ की आबादी 6,20,000 थी. जितने पैसे नवाब ने कुत्तों की शादी पर खर्च किये थे उतने में करीब 12,000 लोगों की साल भर की सभी जरूरतें पूरी की जा सकती थीं.
नवाब महाबत खान द्वारा इस शादी में ‘वायसराय’ को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने आने से इंकार कर दिया. वहीं शादी के दौरान रोशना को सोने के हार, ब्रेसलेट और महंगे कपड़े पहनाए गए थे. इसके साथ ही 250 कुत्तों ने ‘मिलिट्री बैंड’ के साथ ‘गार्ड ऑफ़ ऑनर’ से रेलवे स्टेशन पर इनका स्वागत भी किया था.
बेगम से ऊपर चुना कुत्तों को
इधर भारत आजाद हुआ और उधर महाबत खान ने अपनी पत्नी भोपाल बेगम के कहने पर ‘जूनागढ़’ को पाकिस्तान में शामिल करवाने की कोशिश शुरू कर दी. हालांकि जूनागढ़ की जनता नवाब के इस फैसले के खिलाफ थी. मामले को फंसता देख ये फैसला किया गया कि जूनागढ़ का फैसला जनमत संग्रह से होगा. 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह के लिए मतदान हुआ. इस दौरान 1 लाख 90 हज़ार 688 लोगों को भारत के लिए ‘लाल’ और पाकिस्तान के लिए ‘हरे’ रंग के बैलेट बॉक्स में अपने-अपने वोट डालने थे.
वोटिंग में लोगों ने सबसे ज्यादा भारत के पक्ष में वोटिंग की. भारत को 1 लाख 9 हज़ार 688 लोगों ने भारत में रहने के पक्ष में वोट दिया. नवाब महाबत खान ने इस मतदान के नतीजों के आने का इंतजार भी नहीं किया और उससे पहले ही पाकिस्तान के लिए निकल गए. इसके बाद वह कभी वापस लौटकर नहीं आया.
वह भारत से कराची भागने वाले थे. इसके लिए वह विमान में बैठे, तभी उन्हें पता चला कि उनकी एक बेगम अपनी बच्ची को लेने के लिए महल में गई है और अभी तक लौटी नहीं. तब उसने बेगम की जगह पर चार कुत्तों को विमान में बैठाया और यह कहते हुए उड़ गया कि ‘बेगम तो पाकिस्तान में भी मिल जाएगी, मगर वहां ये कुत्ते नहीं मिलेंगे.’
तो ऐसा था महाबत खान का अपने कुत्तों के प्रति प्रेम, जिनके लिए उन्होंने अपनी बेगम और बच्ची तक को भारत में छोड़ दिया.