गुजरात का ‘गुरु ग्राम’: एक ऐसा गांव जहां विद्या दान है सबसे बड़ा दान, हर घर में है एक ‘गुरु जी’

village of teachers gujarat

भारत के राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है. बापू ने भारत के ग्रामीण इलाकों के विकास पर ज़ोर दिया. शहर में भले ही कितनी ही चका-चौंध और आधुनिक चीज़ें आ जाएं, गांव के शीतल जल और ठंडी हवा की बात ही कुछ और है. तभी तो शहरवाले सुकून के लिए गांव जाना पसंद करते हैं. दुख की बात है कि हमारे गांव खाली हो रहे है, उत्तराखंड समेत कई राज्यों के न जाने कितने गांव भूतिया गांव (Ghost Village) बन गए क्योंकि सभी लोग काम की तलाश में, एक अच्छे जीवन की आस में शहर चले गए.

भारत का एक ऐसा भी गांव

village of teachers gujarat Nai Dunia/Representational Image

आज के दौर में ज़्यादातर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर, बैंक अफ़सर या कोई सरकारी महकमे में लग जाए. शायद ही कोई माता-पिता चाहते हों कि उनका बच्चा टीचर बने. समाज में तो ये कथन भी चलता है कि जिसे कुछ नहीं आता, जिसमें कोई प्रतिभा नहीं होती वो टीचर बनता है. शिक्षक तो पैसे ही खाते हैं, ये भी कहने से लोग बाज़ नहीं आते. भारत के कई गांवों के बारे में आपने पढ़ा होगा कि वो IAS, IPS का गांव है. वो IITians का गांव है. भारत में ही एक ऐसा गांव है जो शिक्षकों का गांव है.

हर चौथा व्यक्ति है टीचर

भारत के पश्चिम स्थित राज्य गुजरात के शहर अहमदाबाद से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एक ऐशा गांव जहां के हर घर से टीचर निकलता है. The Times of India के एक लेख के अनुसार, हडियोल नामक इस गांव में हर चौथा व्यक्ति या तो टीचर है या तो रिटायर्ड टीचर है. ये गांव है भारत का असल ‘गुरु ग्राम’. यहां आप किसी भी घर का दरवाज़ा खटखटा लीजिए, उस घर में एक न एक सर या मैडम ज़रूर मिल जाएंगे. दैनिक भास्कर के एक लेख के अनुसार, गुजरात का कोई भी ऐसा ज़िला नहीं है जहां हडियोल गांव से निकला शिक्षक न पढ़ा रहा हो.

1950 के दशक से हुई शुरुआत

village of teachers gujarat India Spend/Representational Image

हडियोल में ऐसे भी घर हैं जहां तीन वंशों से लोग बच्चों को पढ़ा रहे हैं.  साबरकांठा प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रमुख संजय पटेल ने बताया कि गांव की इस अनोखी पहचान की शुरुआत 1955 में हुई. उस दौर में ये गांव शिक्षकों का गांव नहीं बना था. आज़ादी के लगभग 8 साल बाद  गांव के तीन लोगों ने बतौर शिक्षक काम करना शुरु किया. हडियोल के सबसे पुराने शिक्षकों में से एक हीराभाई पटेल ने बताया कि जब उन्होंने प्राइमरी टीचर्स सर्टीफ़िकेट कोर्स में दाखिला लिया तब उनके साथ गांव के सिर्फ़ 25 और लोग थे. उन दिनों टीचर बनने के लिए 7वीं पास करना ज़रूरी था, और पटेल ने ऐसे नौकरी शुरु की थी. उनके परिवार से 9 सदस्य टीचर बने.

गांधी विचार पर खुला पहला स्कूल

बदलते दौर के साथ देशवासी भी शिक्षा का महत्त्व समझ रहे थे. गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर हडियोल निवासी गोविंद रावल और उनकी पत्नी सुमति बेन ने 1959 में एक स्कूल खोला, विश्वमंगलम. इस दंपत्ति का मकसद का गांव के बच्चों को शिक्षित करना. ये स्कूल हडियोल से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर अकोदरा गांव में खोला गया. 1962 में इसी स्कूल के साथ एक महिलाओं के लिए एक पीटीसी कॉलेज खोला गया. गांव के प्राइमरी स्कूल में 5वीं तक पढ़ने के बाद छात्र और छात्राएं विश्वमंगलम में पढ़ने जाते.

शिक्षक को मिलती थी अलग इज़्ज़्त

village of teachers gujarat Economic Times

उन दिनों महिलाओं के लिए ज़्यादा करियर विकल्प नहीं थे. मैट्रीकुलेशन के बाद कई महिलाएं पीटीसी कॉलेज में दाखिला लेने लगी. इसका दोहरा असर हुआ. शिक्षित महिलाएं अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए कोशिशें करनी लगी. पुरुषों को भी शादी करने के लिए अच्छी शिक्षा प्राप्त करने पर मजबूर होना पड़ा. कुछ गांव वालों ने ये भी बताया कि उन दिनों में शिक्षक को पैसों के साथ-साथ समाज में इज़्ज़त भी मिलती थी. 1990 के दशक के बोर्ड एग्ज़ाम टॉपर भी शिक्षक बनना चाहते थे. उस समय ज़्यादा उद्योग नहीं खुले थे और खेती करने से ज़्यादा अच्छा विकल्प था शिक्षक बनना.

अपराध के स्तर में भी कमी

village of teachers gujaratThe Times of India

गांव में टीचर्स की अधिक संख्या होने की वजह से गांव में अपराध की संख्या भी कम है. तंबाकू और शराब के आदी लोगों ने भी बुरी आदतें छोड़ दीं. इस गांव में जो परिवार आर्थिक तौर पर सुदृढ़ हैं वो दूसरे परिवारों के बच्चों की पढ़ाई में आर्थिक मदद करते हैं. इस गांव ने साबित कर दिया कि टीचर वो नहीं बनते जो कुछ और नहीं बन पाते बल्कि वो बनते हैं जो समाज में बदलाव लाना चाहते हैं.