Chandrayaan Moon Landing Date: 23 अगस्त, शाम 6 बजकर 4 मिनट के वक्त पर भारत ही नहीं पूरी दुनिया की खास नजर होगी। इस वक्त पर चांद के साउथ पोल पर भारत का स्पेसक्राफ्ट ‘चंद्रयान 3’लैंड करेगा। चंद्रयान 2 के क्रैश होने के बाद यह भारत के लिए खास इवेंट है, अब तक दुनिया का कोई भी देश चांद के साउथ पोल पर नहीं उतरा है।
हाइलाइट्स
23 अगस्त, शाम 6 बजकर 4 मिनट का वक्त पूरी दुनिया के लिए खास होगा
इस वक्त पर चांद के साउथ पोल पर भारत का स्पेसक्राफ्ट ‘चंद्रयान 3’लैंड करेगा
अब तक कोई भी देश रहस्यों से भरे चांद के साउथ पोल पर नहीं उतरा है
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नई दिल्ली: भारत कुछ घंटों बाद दुनिया में इतिहास रचने वाला है। भारत चांद की दहलीज में खड़ा है। भारत का चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) चांद (Moon) के बेहद करीब पहुंच चुका है और 23 अगस्त की शाम शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के साउथ पोल की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) कर सकता है। अब तक दुनिया का कोई भी देश चांद के साउथ पोल पर नहीं उतरा है। पूरा देश भारत के चंद्रयान मिशन की कामयाबी के लिए दुआएं मांग रहा है। हालांकि इसरो इस बार कोई चांस नहीं लेना चाहता है, इसलिए इसरो ने एक और योजना तैयार कर रखी है। ISRO अहमदाबाद के निदेश नीलेश एम. देसाई ने कहा, ‘चंद्रयान के चांद पर उतरने से 2 घंटे पहले हम लैंडर और चांद की स्थिति का जायजा लेंगे और उसके बाद लैंडर के चांद पर लैंड कराने पर फैसला लेंगे। अगर हमें लगेगा की लैंडर या चांद की स्थिति उतरने के लिए ठीक नहीं है तो हम इसे 27 अगस्त तक के लिए आगे बढ़ा देंगे। हम 23 अगस्त को लैंडर को लैंड कराने की कोशिश करेंगे।’
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में खगोल विज्ञान के प्रोफेसर मयंक एन. वाहिया का कहना है कि ‘चंद्रयान 3 चांद की सतह पर उतरने वाला है। पहले चंद्रयान मिशन ने साबित किया कि चांद पर पानी है। चंद्रयान-2 मिशन में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर लगाना था लेकिन चीजें ठीक से काम नहीं कर पाईं। लेकिन चंद्रयान-2 का मॉड्यूलर मिशन उल्लेखनीय रूप से सफल रहा। चंद्रमा पर उतरना कितना मुश्किल है, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए आप देख सकते हैं कि रूस लूना-25 को उतारने में सफल नहीं हो सका। मुझे पूरा यकीन है कि 23 अगस्त को सफल लैंडिंग होगी। चंद्रयान-3 हमें पानी, जल स्रोतों और खनिजों की पहचान करने में मदद करेगा।
चांद पर साउथ पोल क्यों है अहम?
धरती से चांद का एक हिस्सा दिखता है और जो नहीं दिखता है उसे साउथ पोल या मून का डार्क साइड भी कहते हैं। नेहरू प्लैनेटेरियम के अधिकारियों का कहना है कि चंद्रयान 3 की यही कोशिश है कि यह इस डार्क साइड में उतरकर इसके छिपे राज को जान सके। इससे पहले चांद पर अमेरिका, चीन, रूस का भी स्पेसक्राफ्ट ने लैंड किया गया है मगर साउथ पोल में अब तक कोई भी स्पेसक्राफ्ट नहीं उतरा है। इसी साउथ पोल में जा रहे रूस के लूना-25 स्पेसक्राफ्ट का सफर रविवार को खत्म हुआ, जब यह क्रैश हो गया। 2019 में भारत ने अपने लूनर मिशन के साथ चांद पर चंद्रयान 2 भेजा था मगर ऑर्बिट में पहुंचने के बाद लैंडर अलग भी हुआ, मगर फिर लैंडर के साथ संपर्क टूट गया। सोमवार को इसरो ने बताया कि चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर से चंद्रयान 3 के लैंडर का संवाद भी हुआ। 2009 में चंद्रयान 2 भेजा गया था, जिसका संपर्क टूट गया।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से चंद्रयान-3 का संपर्क होने का क्या मतलब, मिशन पर क्या पड़ेगा इसका असर
भारत के लिए क्यों फायदेमंद ?
भारत जल्द ही जब चांद की सतह पर उतरने का अपना दूसरा प्रयास करेगा। भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को उतरने का प्रयास करेगा, जिससे संभावित रूप से कई आर्थिक लाभ मिलने का रास्ता साफ हो सकता है। चंद्रयान-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है और अगर यह कामयाब होता है तो भारत, अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और चीन के बाद चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश होगा। चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद चंद्रमा पर एक रोवर तैनात करने और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन करने की योजना है। अंतरिक्ष यात्रा में लगे इस देश के लिए यह केवल राष्ट्रीय गौरव की बात नहीं है। चंद्रयान-3 की सफलता का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पड़ सकता है। दुनिया ने पहले ही अंतरिक्ष संबंधी प्रयासों से रोजमर्रा की जिंदगी में मिले फायदे देखे हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जल पुनर्चक्रण के साथ स्वच्छ पेयजल तक पहुंच, स्टारलिंक द्वारा विश्वभर में इंटरनेट का प्रसार, सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां आदि।