विजय कुमार के गांव के लोगों ने जानकारी देते हुए बताया कि वह बेहद ही गरीब परिवार से संबंध रखते थे। उनकी माता ने बकरियां बेच कर उनकी पढ़ाई करवाई और उसके बाद उनका आर्मी में जाने का सपना पूरा किया।
कुछ घंटों में तैयार कर दी सड़क
गांव वालों का विजय कुमार के साथ काफी लगाव था। गांव के श्मशान घाट तक जाने का रास्ता नहीं था। लेकिन गांव वालों ने कुछ घंटे के अंदर ही मुख्य मार्ग से शमशान घाट तक करीब 400 मीटर तक की सड़क बना डाली। रविवार शाम करीब 8 बजे सड़क बनाने का काम शुरू किया गया और अगले दिन सुबह तक सड़क तैयार कर ली गई। इससे पहले श्मशान घाट तक जाने के लिए केवल एक पगडंडी ही थी।
सड़क के लिए दान कर दी जमीन
गांव वालों को मालूम था कि शहीद विजय कुमार की अंतिम विदाई के लिए वहां पर बहुत सारे लोग इकट्ठा होंगे। विजय कुमार के पार्थिव शरीर को श्मशान घाट तक पहुंचाने के लिए किसी तरह की समस्या ना हो इसीलिए रातों-रात इस सड़क का निर्माण किया गया। सड़क मार्ग को बनाने के लिए गांव वालों ने अपनी जमीन तक दान में दे दी। यही नहीं इस सड़क मार्ग का नाम गांव वालों ने शहीद विजय कुमार मार्ग रख दिया है । जिसे आने वाली पीढ़ी और गांव का हर व्यक्ति विजय कुमार की शहादत को याद करेगा।
गांव के लोगों को करते थे प्रेरित
विजय कुमार के परिवार में अब केवल उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे रह गए हैं। एक बेटा डेढ़ साल का और दूसरा करीब 7 साल का है। विजय कुमार पहले से ही आर्मी में जाने के लिए काफी मेहनत करते थे। सेना में रहते हुए विजय कुमार ने करीब 17 साल का समय बिताया है। स्वभाव से काफी मिलनसार विजय जब भी गांव आते थे तो गांव के बच्चों को स्पोर्ट्स और आर्मी में जाने के लिए प्रेरित करते थे।
6 साल के बेटे ने दी मुखाग्नि
शनिवार को लद्दाख में हुई दुर्घटना में जैसे ही हवलदार विजय कुमार के शहीद होने की खबर घर पर पहुंची तो पूरा गांव में सन्नाटा पसर गया। परिवार पर तो जैसे दुख का पहाड़ ही टूट गया। शहीद की अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए। पत्नी निर्मला ने दुल्हन के लिबास में शहीद पति को अंतिम विदाई दी। शहीद के 6 साल के बेटे दक्ष ने ताऊ संजीव की गोद से पिता की चिता को मुखाग्नि दी तो हर आंख भर आई।