मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता. जो लोग मेहनत करते हैं, वो इस बात को जानते हैं. केरल के 28 वर्षीय रणजीत रामचंद्रन IIM-रांची में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर जॉइन करेंगे. लेकिन, यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने जो मेहनत और संघर्ष किया, उसके लिए एक सलाम बनता है.
आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में रणजीत का प्रोफ़ेसर बनना इसलिए इतनी बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इससे पहले वो घर चलाने के लिए बीएसएनएल के दफ़्तर में 4 हज़ार की मासिक आय पर गार्ड की नौकरी कर रहे थे. घर के नाम पर उनके पास मिट्टी की एक झोपड़ी है, जहां रह कर उन्होंने जीवन में आगे बढ़ने का सपना देखा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के कसारगोड ज़िले में रहने वाले रणजीत भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. पिता दर्ज़ी हैं और मां मनरेगा मज़दूर के तौर पर काम करती हैं. ये उनका घर है:
सिलेक्शन होने पर उन्होंने अपने घर की ये तस्वीर डाल कर सोशल मीडिया पर लिखा, “इसी घर में आईआईएम का एक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पैदा हुआ था.”
वो नौजवानों को सपने संघर्ष से प्रेरणा देना चाहते थे. उन्होंने सही में मायनों में प्रेरणा दी भी. अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर बनने के लिए उनका सफ़र बेहद मुश्किलों भरा था. उन्होंने इकोनॉमिक्स में पीएचडी की है. वो दिन में कॉलेज जाते और रात में बीएसएनएल के दफ़्तर में ड्यूटी करते. घर सिर्फ़ दोपहर का खाना खाने जाते थे. बीएसएनएल का वो कमरा ही उनका घर बन गया था. ऐसा मौका भी आया जब उन्होंने हालात से तंग आ कर पढ़ाई छोड़ने का फ़ैसला कर लिया था. लेकिन, उन्हें सही लोगों का साथ मिला, जिन्होंने उन्हें लड़ने की हिम्मत दी.
रणजीत ने IIT-मद्रास से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की. इस प्रतिष्ठित संस्थान में पहुंचने तक उन्हें बिलकुल भी अंग्रेजी नहीं आती थी और वो कभी अपने इलाके से बाहर नहीं गए थे. लेकिन उनकी मेहनत और हिम्मत की वजह से उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री पूरी की.
पीएचडी के दिनों में मिले स्टाइपेंड से सेविंग्स कर उन्होंने अपने भाई-बहन के लिए पैसे भेजे ताकि वो अच्छे कोर्स में एडमिशन ले सकें.
अब रणजीत का सपना आईआईएम में अच्छा टीचर बनने का है.