हरिपुरधार में ‘‘ठारी थड़ा मंदिर’’ क्षतिग्रस्त, खौफनाक है इतिहास…

हिमाचल प्रदेश के दुर्गम इलाकों में मौजूदा में ऐसा इतिहास दफन है, जिसके बारे में युवा पीढ़ी वाकिफ ही नहीं होगी। दअरसल, सिरमौर के हरिपुरधार (Haripurdhar) क्षेत्र की टिकरी डसाकना पंचायत में ‘‘ठारी थड़ा मंदिर’’ क्षतिग्रस्त हुआ है।

क्षतिग्रस्त हुआ ‘‘ठारी थड़ा मंदिर’’

इसके बाद एक ऐसा इतिहास सामने आया है, जो रोंगटे खड़े करने वाला है। शाठी-पाशी (Shathi-Pashi) के युग में युद्ध हुआ करते थे। इस दौरान दुश्मनों के सिर कलम करने के बाद ‘ठारी थड़ा’ में दबा दिए जाते थे। ये विजय प्रतीक भी हुआ करता था। मौजूदा समय में ये ‘ठारी थड़ा’ ग्रामीणों के लिए एक पुराने इतिहास को संजोने का स्तम्भ है। साथ ही यहां काली माता का वास भी माना जाता है।

आपको बता दें कि शाठी व पाशी का इतिहास कौरवों-पांडवों से जुड़ा है, जिन्हें शाठी व पाशी को कौरवों का तो पाशी को पांडवों का वंशज माना जाता है। हाल ही में ट्रांसगिरि (Transgiri) के टिटियाना में सदियों बाद शाठी व पाशी भाईयों का मिलन हुआ था। टिटियाना में भी ‘ठारी माता’ की पूजा सदियों से होती आ रही है।

केलवी के प्रताप ठाकुर की मानें तो किला नुमा थड़े से दुश्मनों पर हमला  भी किया जाता था। अस्त्र-शस्त्र का भी भंडारण होता था। इसके साथ ही एक चांबियाघर भी मौजूद है। ठाकुर का दावा है कि यहां एक बावड़ी में पानी 12 महीने नहीं सूखता है। इलाके में पानी की किल्लत हो तो यहीं से लोगों की प्यास बुुझा करती थी। इसी जगह से तीन गांवों टिकरी, टटवा व डसाकना की उत्पत्ति भी हुई।

ऐसा भी दावा है कि ‘ठारी थड़ा’ के मैदान में पूरा गांव समाया हुआ था। काली माता के अलावा शिरगुल (Shirgul Maharaj) व महासू देवता (Mahasu Maharaj) रक्षा करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को ऐसे स्तम्भों को संरक्षण प्रदान करने की कोशिश करनी चाहिए। प्रताप ठाकुर ने कहा कि चांबियाघर को भी खतरा पैदा हुआ है।

उन्होंने कहा कि ‘ठारी थड़ा’ मंदिर के जीर्णाेद्धार के लिए सरकार को ठोस कदम तत्काल प्रभाव से उठाने चाहिए। उनका ये भी कहना था कि ऐसे थड़े बेहद ही दुर्लभ हैं। सिरमौर में कुछ ही स्थानों पर ये बचे होंगे।