खूबसूरती और तकनीकी की मिसाल हैं भारत की ये 3 पर्वतीय रेलवे, UNESCO ने माना वैश्विक धरोहर

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भारत के पर्वतीय रेलवे के तीन रेलवे विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल हैं. दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे को साल 1999 में, नीलगिरी पर्वतीय रेलवे को साल 2005 में और कालका-शिमला रेलवे को साल 2008 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया.

दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे

यह भारत में पहाड़ी यात्री रेल सेवा का पहला बेहतरीन उदाहरण है. इसकी शुरुआत साल 1881 में दार्जिलिंग स्टीम ट्रामवे कंपनी ने की थी. ब्रिटिश काल के दौरान सर एशले ईडन पश्चिम बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे. उन्होंने एक समिति बनाई जिसपर पूर्वी बंगाल रेलवे कंपनी के एजेंट फ्रेंकलिन प्रेस्टेज का भी साथ मिला और इस नायाब रेल सेवा की शुरुआत हो सकी.

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रेलवे लाइन को बनाने का काम साल 1879 में शुरू हुआ था. इसे जुलाई 1881 में पूरा कर लिया गया था. हालांकि, 15 जुलाई 1881 को कंपनी ने इसका नाम बदलकर दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी रख दिया. इसके बाद 20 अक्टूबर 1948 को दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी को भारत सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था.

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच स्थित यह रेलवे ट्रैक 88 किमी लंबा है. घूम स्टेशन को इस रेलवे ट्रैक का सबसे ऊंचा स्टेशन माना जाता है.  इसकी ऊंचाई 7,407 फीट है. यह भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. साल 1999 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत में शामिल किया.

नीलगिरी पर्वतीय रेलवे

यह सिंगल ट्रैक और मीटर गेज लाइन वाली रेलमार्ग है. यह देश का एक मात्र रैक रेलवे है. इसकी लंबाई 46 किमी है. तमिलनाडु में ‘ब्लू माउंटेंस’ के नाम से जानी जाने वाली नीलगिरी पहाड़ियों में स्थित यह पर्वतीय शहर उडगमंडलम को मट्टूपलयम शहर से जोड़ता है. इसके निर्माण का काम साल 1908 में शुरू हुआ था.

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इस रेलमार्ग पर अल्टरनेट बिटिंग सिस्टम (ABT) जिसे रैक एंड पिनियन के तौर पर जाना जाता है के साथ भाप इंजनों का प्रयोग किया जाता है.  रेलमार्ग प चलने वाली रेलगाड़ी अपनी यात्रा के दौरान 208 मोड़ो, 16 सुरंगों और 250 पुलों से होकर गुजरती है.

इस रेलमार्ग पर ऊपर की ओर यात्रा करने के दौरान 4.8 घंटे का समय लगता है. वहीं, ढलान पर यात्रा के दौरान 3.6 घंटे का समय लगता है. रेलमार्ग पर मेट्टूपलयम शहर से 7.2 किमी की दूरी पर पहाड़ी स्टेशन कल्लर है. यह दूरी 12 सुरंगों से गुजरता है.

जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरी पर्वतीय रेलवे को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी थी. इसके बाद इसके आधुनिकीकरण की योजना को स्थगित कर दिया गया था.

कालका-शिमला रेलवे

यह हिमाचल प्रदेश में हिमालय के तलहटी में स्थित है. इस रेलवे का निर्माण दिल्ली-अंबाला-कालका रेलवे कंपनी ने किया था. 7234 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस रेलवे ट्रैक की साल 1898 में 2 फीट की छोटी लाइन वाली पटरियों के साथ इसकी शुरुआत हुई थी.

इस रेलट्रैक की लंबाई 95.66 किमी है. इसे 9 नवंबर 1903 को यातायात के लिए खोल दिया गया था. साल 1905 में भारतीय युद्ध विभाग द्वारा निर्धारित पैरामीटर को देखते हुए इस लाइन को 2 फीट 6 इंच कर दिया गया था.

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इस सेक्शन पर 103 सुरंग हैं. इसी के लिए शिमला में आखिरी सुरंग का नाम 103 सुरंग रख दिया गया है. इसके ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से 103 स्टेशन ही कहा जाता है.

इस पूरी परियोजना को एच एस हेरलिंगटन ने शुरू किया था. भारत में इसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लार्ड कर्जन ने किया था. 1 जनवरी 1906 में रेलवे ने इसे 1.71 करोड़ में खरीद लिया. साल 2008 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत का दर्जा दिया.