‘ये आकाशवाणी है…’, ऑल इंडिया रेडियो के भवन में दाखिल होना मतलब इतिहास समेटी दीवारों के भीतर जाना है. ये इमारत गुलाम भारत के आज़ाद भारत में तब्दील होने की गवाह भी हैं. मैं भवन के गलियारे में दाखिल हुई और एक अफ़सर का दरवाज़ा खटखटाया, उन्होंने अंदर आने को कहा.
अंदर कुर्सी पर एक कॉन्फ़िडेंट इंसान बैठा था. ये थे ऑल इंडिया रेडियो के IIS (Indian Information Service) अफ़सर कमल कुमार. कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने चाय नाश्ते के लिए ऑफ़िस बॉय को बुलाया और जेब से 100 रुपये का नोट निकाला. उसे टटोलकर दो कॉफ़ी और समोसे लाने को कहा. साथ ही अपने ऑफ़िस बॉय को भी नाश्ता करने को कहा.
जन्म से ही नेत्रहीन कमल कुमार एक IIS अफ़सर हैं और आज अपने इस पद तक पहुंचने के लिए वो अपने माता-पिता के बाद अपनी पत्नी को ही श्रेय देते हैं. इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे के स्ट्रगल में किसी ने उनका साथ नहीं छोड़ा तो वह हैं उनकी पत्नी विनीता नेगी. विनीता को लाइट परसेप्शन हैं जबकि कमल पूर्ण रूप से नहीं देख सकते.
कमल और विनीता ने एक ही स्पेशल स्कूल में पढ़ाई की और इसी दौरान दोनों की मुलाकात हुई और प्यार की शुरुआत हुई. विनीता कमल से एक साल जूनियर रहीं. लेकिन, कॉलेज की पढ़ाई के लिए जब दोनों दिल्ली यूनिवर्सिटी आए तो दोनों के बीच नज़दीकियां बढ़ीं.
इसी साल मार्च में कमल और विनीता ने शादी की. कमल अपनी वाइफ़ को भगवान का दिया एक ‘अनमोल तोहफ़ा’ मानते हैं, जिसने उनकी ज़िंदगी में रंग भरे.
कमल पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बिजनौर के रहने वाले हैं. 27 वर्षीय इस युवा अफ़सर की पढ़ाई देहरादून के स्पेशल स्कूल में हुई. यह एशिया का सेकंड बेस्ट स्पेशल स्कूल है. यहां 5 साल की उम्र से कमल ने पढ़ाई की. इस दौरान वह हॉस्टल में ही रहते थे. कमल पांच भाई हैं जिसमें से वह और उनके बड़े भाई रोहित कुमार भी नेत्रहीन हैं और उनसे छोटा भाई नेत्रहीन और मानसिक रूप से असंतुलित है.
कमल के पिता अरुण कुमार एक स्कूल में क्लर्क थे और उन्हें शिक्षा का महत्व बहुत अच्छे से पता था. लिहाज़ा उन्होंने अपने दोनों बेटों को इस बेस्ट स्कूल में पढ़ाई के लिए भेज दिया. स्कूल में कमल की एक साल जूनियर थीं विनीता.
दोनों बचपन से ही एक दूसरे को जानते थे और खासकर कि 11वीं और 12 वीं क्लास में एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ के दौरान दोनों की मुलाकात ज़्यादा हुआ करती थी, लेकिन चूंकि स्कूल और हॉस्टल की पाबंदियां इतनी होती थी कि दोनों का मिलना-जुलना नहीं हो पाता था.
स्कूल में कमल हमेशा एक तेज़ दिमाग के स्टूडेंट रहे. उन्होंने कभी पढ़ाई को बर्डन की तरह नहीं लिया, हमेशा इंटरेस्ट लेकर पढ़ाई की. सिर्फ़ पढ़ाई में ही नहीं बल्कि वह एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ में भी बहुत अच्छे थे. कमल नेशनल ब्लाइंड चेस टूर्नामेंट में भी हिस्सा ले चुके हैं और डिबेट, म्यूजिक में भी कई सारे अवॉर्ड्स जीत चुके हैं.
लिटरेचर ने कमल को दुनिया और समाज से रूबरू होने में बहुत मदद की है. वह ब्रेल बुक्स, ऑडियो बुक्स और स्पेशल कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के साथ ई-बुक्स भी पढ़ते थे. इस दौरान वह गुलीवर की कहानियों समेत कई नोवेल्स और कॉमिक्स आदि को ख़ूब पढ़ा करते और धीरे धीरे उनका लिटरेचर की तरफ काफ़ी रुझान बढ़ गया था.
कमल कहते हैं कि, “लेखन की बारीकियां एक नेत्रहीन व्यक्ति को कई चीजें साफ़ कर देती हैं. उपन्यास के जरिए मैंने चीज़ों को देखा और अपने आसपास मौजूद बारीकियों को पढ़ के समझा.”
कमल का मीडिया की तरफ रुझान कुछ ऐसा हुआ कि वह ऑडियो बुक्स सुनते थे और इसे नरेट करते थे प्रोफेशनल रेडियो प्रेजेंटर. ऐसे में उन्हें उनके बोलने का अंदाज़ काफी पसंद आया और उन्होंने क्लास 11 में ये फैसला कर लिया था कि उन्हें इसी फील्ड में जाना है. स्कूल के दौरान ही वह आकाशवाणी के नजीबाबाद केंद्र में जाकर कई यूथ प्रोग्राम्स किया करते थे.
इस फील्ड में आना उनके लिए इतना आसान नहीं था क्योंकि अकसर किसी भी दिव्यांग को टीचर जैसे प्रोफेशन की तरफ जाने के लिए कहा जाता है. लेकिन कमल ने भी इस फील्ड में आने का फैसला लिया था और अपने संघर्ष के दिनों में लोगों के ताने भी सुनने को मिले. लोगों ने उनसे कहा कि, “तुम क्यों स्ट्रगल कर रहे हो, इससे अच्छा एमए कर लो और UGC-NET की परीक्षा क्लियर करके प्रोफेसर बन जाओ.”
लेकिन इरादा तो कमल का मजबूत था और उनके इस इरादे में फ्यूल का काम किया विनीता के हौसले ने. विनीता ने कमल को कभी भी उन्हें अपने सपने से दूर होने के लिए नहीं कहा और हमेशा इसी प्रोफेशन में आगे बढ़ने के लिए मोटीवेट किया.
कमल पढ़ाई में हमेशा अच्छे रहे थे और खास बात है कि उन्होंने हमेशा नॉर्मल लोगों के साथ कॉम्पीट किया. अपनी क्लास 9 का किस्सा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि, “मैं डिबेट कम्पटीशन ज्यादातर फर्स्ट ही आता था और इंटर-स्कूल कम्पटीशन में नॉर्मल बच्चों के साथ डिबेट में हिस्सा लेता था. एक बार उन्हें युवाओं की बढ़ती आत्महत्या के बारे में बोलना था और इस दौरान मैंने इतनी अच्छी स्पीच दी कि मैंने प्रथम स्थान हासिल किया.”
कमल आगे कहते हैं, “जब मैं स्टेज पर अपना प्राइज लेने पहुंचा तो पीछे से किसी बच्चे ने बोला कि इसे तो दया भावना में प्राइज मिला है.”
ये सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगा था. उन्होंने कहा कि, “लोग हमेशा सोचते हैं कि एक डिसएबल या दिव्यांग को थोड़ा बहुत मिल जाए, लेकिन इतना न मिले कि वह हमसे ऊपर हो जाए. हम कितनी भी बड़ी अचीवमेंट हासिल कर लें, लेकिन लोग कहेंगे कि हमें ये हमदर्दी या दया की वजह से मिला है.”
लेकिन, इन बातों ने कमल का हौसला कभी नहीं तोड़ा और ना ही उन्होंने कभी खुद को किसी से कम समझा. कमल ने कहा कि, “मुझे अपने आप को साबित करना था और कमी मुझ में नहीं थी बल्कि दिक्कत तो सामने वाले लोगों की थी.”
खैर स्कूल के गलियारों से निकल अब उनका सामना हुआ राजधानी दिल्ली की सड़कों से. अब वह एक सुरक्षित और उनके मुताबिक बने इंफ्रास्ट्रक्चर से बाहर निकलकर आए थे. दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफन कॉलेज से उन्होंने हिस्ट्री सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन की.
चूंकि, विनीता उनसे एक साल जूनियर थी तो एक साल वो भी दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने आईं और उन्होंने मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन की. इन कॉलेज के दिनों में यानी साल 2011 में दोनों ने ज्यादा समय बिताना शुरू किया. उनके स्कूल के प्यार ने अब एक नया रूप लिया था. दोनों अक्सर डीयू के नार्थ कैम्पस में VC लॉन में मिला करते थे.
सबसे दिलचस्प बात है की पढ़ाई के बाद अब उन्हें हॉस्टल के कमरों से बाहर निकलकर किराए का घर ढूंढना था. इस दौरान दोनों का साथ मिलकर दिल्ली जैसे शहर में कमरे ढूंढना जैसे स्ट्रगल से सामना करना भी अहम रहा.
साल 2013 में, कमल ने IIMC, दिल्ली से पढ़ाई की. कमल ने एक न्यूज़ चैनल में काम किया. यहां काम करते हुए वह दिन में पढ़ाई करते थे और रात में नौकरी. इसके बाद उन्होंने आईआईएमसी के कम्युनिटी रेडियो में बतौर रेडियो प्रेजेंटर काम करना शुरू किया. उन्हें प्रमोशन भी मिला और अकैडेमिक असिसटेंट भी बने. चूंकि उनकी यह कॉन्ट्रैक्ट जॉब थी तो उन्हें कई बार अपने आसपास मौजूद लोगों से बहुत सुनना भी पड़ा. कमल कहते हैं कि, “लोगों का कहना था कि इतने स्ट्रगल के बाद क्या मिला?”
लेकिन कमल को अपने ऊपर विश्वास था और किस्मत ने भी उनका दरवाज़ा खटखटाया. दरअसल, कमल ने सरकार ने इंटरव्यू बेस्ड IIS सीनियर ऑफिसर की पोस्ट निकाली. कमल ने इस इंटरव्यू को क्रैक कर लिया और इस तरह वह आल इंडिया रेडियो में गजेट ऑफिसर ऑफ इंडिया, सीनियर ग्रेड-बी के पद पर नियुक्त हुए.
इस कपल की ज़िंदगी की ख़ुशी दुगुनी तब हो गई जब दोनों का ऑफर लेटर लगभग एक साथ ही आया था. आज विनीता दिल्ली के आदर्श नगर में एक सरकारी स्कूल में काम कर रही हैं.
विनीता और कमल की कहानी हर लिहाज़ से खूबसूरत है. इन दो लोगों ने बचपन साथ जिया है और अपने बचपन से निकलकर बाहरी दुनिया का सामना साथ मिलकर दिया. जिंदगी के हर पड़ाव पर एक दूसरे के साथ खड़े रहे और कहीं न कहीं दुनिया को मुंह तोड़ जवाब दिया कि प्यार दिल से होता है, प्यार में कोई भी दीवार नहीं होती, बशर्ते वह सच्चा होना चाहिए.