वो क्रांतिकारी जिसने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जा कर भगत सिंह के परिवार को अपने घर में पनाह दी

Maulana Habib ur Rahman and Bhagat Singh

आज कहानी ऐसे शख्स की, जिसने मुश्किल घड़ी में शहीद भगत सिंह के परिवार के सदस्यों को पनाह दी थी. वो भी जब हर कोई अंग्रेजी सरकार के जुल्म से खौफ खा रहा था.

14 साल जेल में बिताए, लेकिन…

हम बात कर रहे हैं आजादी के नायक मौलाना हबीबउर रहमान लुधियानवी की. इनका जन्म 3 जुलाई 1892 को पंजाब के लुधियाना में हुआ. पढ़ाई पूरी करने के बाद हबीब उर रहमान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. उन्होंने खिलाफत और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. उस दौरान जेल भी गए. उन्होंने अपनी जिंदगी के अनमोल 14 साल कैद में बिताए. लेकिन उनका क्रांतिकारी मिजाज नहीं बदला. वे हमेशा बेख़ौफ़ होकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत करते रहे.

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भगत सिंह के परिवार को अपने घर में दी पनाह

फिर साल 1929 में जब भगत सिंह ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंके. तब कोई भी उनके परिवार के सदस्यों को पनाह देने के लिए आगे नहीं आ रहा था. क्योंकि लोगों को अग्रेजों द्वारा किए जाने वाले जुल्म का खौफ था. सभी भगत सिंह के घर वालों को अपने घर में पनाह देने से डर रहे थे.

ऐसे समय में मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी ने न सिर्फ बहादुरी और इंसानियत का परिचय दिया. उन्होंने भगत सिंह के परिवार के सदस्यों को एक महीने तक अपने घर में जगह दी. इतिहासकारों के मुताबिक, एक बार मौलाना ने नेताजी सुभाष चंद्रा बोस की भी अपने घर पर ठहराया था.

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…‘सबका पानी एक है’

ब्रिटिश ऑफिसरों ने ‘फूट डालो राज करो’ की नीति अपनाते हुए लुधियाना की घास मंडी चौक पर हिंदुओं और मुसलमानों उन्होंने अंग्रेजों की इस नापाक चाल को नाकामयाब बना दिया. उन्होंने एक पर्चा बंटवाया। ‘सबका पानी एक है’. उन्होंने हिंदू-मुसलमान के लिए अलग-अलग रखे गए घड़े को अपने साथियों के साथ तोड़ दिया. नतीजतन, ब्रिटिश सरकार को ‘सबका पानी एक है’ का संदेश देते हुए देश भर के सभी रेलवे स्टेशनों पर एक समान घड़ा लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन उनकी इस गतिविधि के चलते उन्हें और उनके 50 साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया

जब शाही जामा मस्जिद में फहराया तिरंगा

आगे साल 1931 में पूरे देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति तेज हो गई थी. इस बीच शाही जामा मस्जिद के पास लगभग 300 अग्रेज़ी अफसरों और पुलिस बल की मौजूदगी में मौलाना ने भारतीय ध्वज तिरंगा फहराया था. उनके इस साहस को देखने के बाद अग्रेजों के पसीने छूट गए थे. सभी अफसर उन्हें रोकने में नाकाम रहे थे. जिसके बाद उन्हें फिर से गिरफ़्तार किया गया था. एक साल तक वो जेल के सलाखों के पीछे रहे. बावजूद उनके तेवर कम नहीं हुए. उन्होंने अपने जीते जी देश को आजाद होते देखा.

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विभाजन के थे विरोधी

वे देश के बंटवारे के खिलाफ थे. जब 1947 में विभाजन हुआ. तब देश में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गए. उन्होंने माहौल को देखते हुए लुधियाना छोड़ दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में पनाह ले ली. उन्हें लोग पाकिस्तान जाने की सलाह देने लगे, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला कर लिया था.

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जब गांधी जी ने मौलाना के इस बात पर रखा मरणव्रत

इतिहासकारों के अनुसार, मौलाना हबीब उर रहमान के गांधी जी और जवाहरलाल नेहरु से काफी करीबी संबध थे. जब विभाजन के समय देश में दंगे हो रहे थे. तब मौलाना ने दिल्ली में गांधी जी से मुलाकात की. उन्होंने गांधी जी से कहा कि मुझे पासपोर्ट दिलवा दीजिए ताकि मैं ब्रिटेन जाकर महारानी एलिजाबेथ को बता सकूं कि गांधी अपनी अहिंसा की नीति पर असफल हो चुके हैं. आज़ादी के बाद हिंदू-मुसलमान एक दूसरे को मार रहे हैं.

गांधी उसी समय ऐलान करते हुए कहा कि जब देश में मौलाना हबीब उर रहमान जैसे राष्ट्रवादी मुसलमान महफूज नहीं हैं. तो मैं मरणव्रत का ऐलान करता हूं. या तो मैं अपनी जान दे दूंगा या फिर देश में खून खराबा बंद हो जाएगा. बताया जाता है कि गांधी जी के इस ऐलान के बाद ही देश में दंगे रुक गए थे.

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2 सितम्बर 1956 को आजादी के इस सिपाही ने दुनिया को अलविदा कह दिया और जामा मस्जिद के पास के कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक (दफन) हो गए.