अब कचरा नहीं बनेंगे खराब सोलर सेल्स, IIT के शोध को सफलता…

भारत में सौर ऊर्जा (solar energy) पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। कहने को तो हम सौर ऊर्जा के माध्यम से हरित आवरण की तरफ जा रहे हैं लेकिन सौर ऊर्जा को उत्पादित करने के लिए जो सोलर सेल्स (solar cells) इस्तेमाल हो रहे हैं, भविष्य में उनके कचरा बन जाने पर यही सौर ऊर्जा पर्यावरण के लिए सबसे हानिकारक होगी। आईआईटी मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं ने इसी बात को समझा और भविष्य में बनने वाले इस कचरे के ढेर के निष्पादन की तकनीक को अभी से ही ढूंढ निकाला है।

आईआईटी मंडी (IIT Mandi)के मैकेनिकल और मैटेरियल्स इंजीनियरिंग स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर डा. सत्वशील रमेश पोवार के नेतृत्व में इस शोध को पूर्ण किया गया है। डा. सत्वशील के साथ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग स्कूल (MMES) के सहायक प्रोफेसर डा. अतुल धर और उनकी शोध छात्रा श्वेता सिंह के सहयोग से इस शोध के विश्लेषण को जर्नल ’’रिसोर्सेस, कंसर्वेशन एंड रिसाइक्लिंग’’ में प्रकाशित किया गया है।

2050 तक भारत में उत्पन्न होगा 7.5 मिलियन टन सोलर सेल्स कचरा…
शोधकर्ता डा. सत्वशील रमेश पोवार बताते हैं कि भारत के सौर ऊर्जा का बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित हो रहा है, जिसकी 30 नवंबर 2022 तक क्षमता लगभग 62 गीगाबाइट (gigabyte) है। सौर सेल मॉड्यूल लगभग 30 वर्ष तक कार्य करते हैं। इसके कारण देश में 2050 तक 4.4 से 7.5 मिलियन टन तक सौर सेल कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है। 2030 तक ही सौर पैनल कचरा सबसे ज्यादा उत्पादित कचरे की श्रेणी में आने वाला है। इसी चुनौती का सामना करने के लिए सौर सेल कचरे की रिसाइक्लिंग और इसके मूल्यवान संसाधनों को दोबारा से प्राप्त करने के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह शोध किया गया है।

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मूल्यवान संसाधनों को दोबारा से किया जा सकेगा प्राप्त…
एसोसिएट प्रोफेसर डा. अतुल धर ने बताया कि अध्ययन से प्राप्त नतीजे समाप्त हो चुके सोलर सेल्स के पीवी मॉड्यूल की बढ़ती मात्रा से होने वाली समस्या को हल करने के लिए एक स्थाई समाधान की आवश्यकता को रेखांकित करती है। सौर सेल मॉड्यूलों की रिसाइक्लिंग से कैडमियम, टेलुरियम, इंडियम, गैलियम, और जर्मेनियम जैसे मूल्यवान संसाधनों को दोबारा से प्राप्त किया जा सकता है।

यह संसाधन अल्प मात्रा में उपलब्ध होते हैं, जबकि उद्योगों के अन्दर इसको बहुत अधिक मांग होती है। आईआईटी मंडी के इस अध्ययन में सी-एसी और सीडीटी पीवी मॉड्यूल से कांच, धातु, और सेमी कंडक्टर सामग्री के खनन और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को पारंपरिक खनन और उत्पादन विधियों से तुलना की गई है।

अपने प्रकाशित कार्य के आधार पर, आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक व्यापक रिसाइक्लिंग विधि को विकसित किया है, जिसमें रिड्यूस, रीयूज, रीपर्पज, रिपेयर, रीफर्बिश, रीडिजाइन, रीमैन्युफैक्चर और रिसायकल विधियों को शामिल किया गया है। इस समग्र दृष्टिकोण का उद्देश्य सौर पीवी मॉड्यूलों के पूरे जीवन काल में कचरे और ऊर्जा खपत को कम करना है।