China Covid Study News: कोरोना वायरस पर हुई एक स्टडी में दावा किया गया है कि अगर चीन की महामारी को ढंकने की कोशिश के चलते छह मिलियन पीड़ित ऐसे हैं जिनके बारे में किसी को पता ही नहीं चला है। अध्ययन की मानें तो ये सभी लोग आज जिंदा होते।
कैसे सामने आया सच
ऑस्ट्रेलिया स्थित सिडनी यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर एडवर्ड होम्स ने मार्च 2020 में मैसेजिंग सॉफ्टवेयर स्लैक के एक प्राइवेट चैनल पर कई खुलासे अपने कलीग्स के सामने किए थे। उनका दावा है कि चीन को पहले ही वायरस के जीनोम सीक्वेंसिंग के बारे में पता चल चुका था।चैनल की शुरुआत फरवरी में नेचर मेडिसिन पेपर के आर्टिकल पर चर्चा करने के लिए की गई थी। 17 मार्च 2020 को इसे पब्लिश किया गया था। रिसर्च में SARS-CoV-2 के जीनोम का विश्लेषण किया गया है। इससे निष्कर्ष निकाला है कि यह प्रयोगशाला में नहीं बना था और न ही इसमें कोई हेरफेर किया गया था।
सच्चाई मानने से चीन का इनकार
नवंबर 2019 में चीन के वुहान में लोग बीमार पड़ने लगे। चीन ने उस साल 26 दिसंबर को जीनोम अनुक्रम की पहचान की थी। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) को 31 दिसंबर को इस महामारी के बारे में पता चला। इसे अगले तीन सप्ताह तक इसके इनफेक्शन के बारे में कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी नहीं मिल सकी थी। चीन ने जनवरी 2020 के मध्य में डब्ल्यूएचओ के सामने इस बात से भी इनकार कर दिया था कि बीमारी इंसान से इंसान में फैल सकती है। ऐसा कहा जाता है कि अगर चीन ने जल्द ही कोई एक्शन लिया होता तो वैश्विक स्तर पर कोविड से सात मिलियन मौतों को 95 फीसदी तक कम किया जा सकता था।
लेकिन चीन डेटा साझा करने वाले अधिकारियों पर नियंत्रण करने और बीमारी के बारे में बताने वाले डॉक्टरों को चुप कराने में लगा रहा। नए सबूतों से साफ है कि वुहान से निकली महामारी को छुपाने के लिए चीन ने किस कदर कोशिशें की हैं।
सच काफी परेशान करने वाला
चीन आज भी इस बात को मानने से इनकार कर देता है कि कोरोना वायरस उसकी किसी सीक्रेट बायो लैब से लीक हुआ था। साल 2019 में चीन से निकली इस महामारी की वजह से दो साल तक दुनिया डर और दहशत के साए में थी। आज भी कोविड-19 का असर पूरी दुनिया पर देखा जा सकता है। बायोसेफ्टी नाउ के प्रोफेसर ब्राइस निकल्स ने इसे परेशान करने वाला बताया है। उन्होंने कहा है कि यह साफ है कि चीन ने महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने के प्रयास किए और वह सफल रहा।