With Love From Kargil: कारगिल युद्ध में देश के लिए गोलियां खाने वाले सतवीर सिंह का आख़री लेटर

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‘पूजनीय माताजी…पिताजी को पांवधोक बांचना. सब कैसे हैं? आज ही सुशीला बहन को पत्र भेजा है. मेरे बारे में आप कोई चिंता मत करना. मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं. 16 तारीख का समाचार पत्र जरूर पढ़ें. जो घटना हुई वो सभी शहीद मेरी ही यूनिट के थे. अब ज्यादा खतरा नहीं है. तकरीबन शांति हो गई है. हालात पूरी तरह ठीक होने पर ही मैं छुट्टी की अर्जी दूंगा. सितंबर तक छुट्टी पर आ जाऊंगा. पिताजी आपकी तबीयत कैसी है? पत्र का जवाब जल्दी देना.’

देश के लिए यह जाबांज गोलियां खाने से पीछे नहीं हटा

Satbir Singh, Kargil war

यह चिट्ठी, 2-राजपूताना राइफल्स के नायक सतवीर सिंह ने 19 जून 1999 को अपनी माताजी को संबोधित करते हुए कारगिल युद्ध के दौरान लिखी थी. तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश के दौरान दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहने वाला यह जाबांज गोलियां खाने से पीछे नहीं हटा. उनके पैर में आज भी पाकिस्तान सैनिकों की एक गोली की चोट है, जिसकी वजह से वो अच्छे से चल फिर तक नहीं सकते.

सतवीर सिंह ने एक आम परिवार में जन्म लिया. उनका पालन-पोषण ऐसे माहौल में हुआ, जहां उन्हें बचपन से ही ‘जय जवान, जय किसान’ का महत्व समझाया गया. वो महज़ पांच साल के थे, जब पहली बार उन्होंने एक रैली के दौरान भारतीय तिरंगे को अपने हाथों में पकड़ा था. छोटी उम्र में जब भी उनसे कोई पूछता था कि बड़े होकर क्या बनोगे. वो बिना देर करते हुए कह देते हैं. मैं आर्मी में भर्ती होऊंगा.

सेना में भर्ती होने से पहले ढाई साल होमगार्ड की नौकरी की

Kargil soldier, satbir singh, Mukhmelpur village, New Delhi, Battle of Kargil, land, petrol pumpबड़े उत्साह के साथ वो स्कूल में होने वाली परेड का हिस्सा बनते थे. उन्होंने एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) भी ज्वॉइन की, ताकि खुद को सेना के लिए तैयार कर सकें. आर्थिक रूप से अधिक सक्षम न होने के कारण वो बहुत अधिक पढ़ाई नहीं कर सके. आर्मी में भर्ती होने से पहले करीब ढाई साल तक उन्होंने भारतीय होमगार्ड में अपनी सेवाएं दी.

इंडिया टाइम्स से बात करते हुए सतबीर बताते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान वो 13 जून 1999 की सुबह अपनी टुकड़ी के साथ करगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर थे. वो सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे. उनके साथ 24 सैनिक थे, जिनमें से सात शहीद हो गए थे. बाकी को गंभीर चोटें आईं थीं. युद्ध में सतवीर ने दिमाग से काम लिया और दुश्मन के बेहद नजदीक पहुंचने के बाद ही उन पर हैंड ग्रेनेड से हमला किया.

आज भी मौजूद है पैर में पाकिस्तानी सैनिक की गोली का जख्म

Satbir Singh, Kargil war

उनकी योजना काम कर गई. जैसे ही उनका फेंका हुआ ग्रेनेड फटा पाकिस्तान के कई सैनिक ढेर हो गए. हालांकि, इस संघर्ष में दुश्मन की एक गोली सतवीर के पैर की एड़ी में लगी थी, जिसका निशान आज भी उनके पैर में मौजूद है. सतवीर करीब 17 घंटे तक पहाड़ी पर घायल पड़े रहे. उनके शरीर से बहुत सारा खून बह चुका था.

दुश्मन के पीछे जाने के बाद उनके साथी उन्हें नीचे लेकर आए थे. बाद में वो एयरबस से श्रीनगर लाए गए और उनके पैर से गोली निकाली जा सकी. सतवीर को 14 जून, 1999 को सेना के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था और 23 मई, 2000 को उन्हें रिटायरमेंट दे दी गई थी क्योंकि वे मुश्किल से चल पाते थे. सतवीर को उनके साहस के लिए भारत सरकार ने सर्विस सेवा स्पेशल मेडल से सम्मानित किया था. 

दुर्भाग्य से संघर्ष की ज़िदंगी जीने को मज़बूर है करगिल का हीरो

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भारत की जीत के साथ 26 जुलाई 1999 को कारगिल का युद्ध खत्म हुआ था, जिसके बाद इस युद्ध में शहीद हुए अफसरों, सैनिकों की विधवाओं, घायल सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया करवाने की घोषणा की थी. सतबीर का भी इस लिस्ट में नाम था, लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका.

उन्हें करीब 5 बीघा जमीन दी गई, जोकि करीब 3 साल वापस ले ली गई. ऐसे में मजबूरन कारगिल के हीरो को अपना घर चलाने के लिए जूस की एक दुकान खोलनी पड़ी. फौज की पेंशन और दुकान के दम पर ही सतबीर अपने दो बच्चों और पत्नी का पेट पाल रहे हैं. उन्हें वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो असली हक़दार थे.

दुश्मन की गोली खाने वाला यह योद्धा सिस्टम से हार गया!

Satbir Singh, Kargil war

इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि करगिल की लड़ाई में दुश्मन की गोली खाने वाला यह योद्धा सिस्टम से हार गया!