मंडी के मंच से मुकेश अग्निहोत्री का रौद्र रूप: अफसरशाही को ‘रात के अंधेरे’ में निपटाने की धमकी और सीएम को नसीहत

Mukesh Agnihotri's furious outburst from the Mandi stage: threatening to deal with the bureaucracy in the 'dark of night' and giving advice to the Chief Minister.

मुकेश अग्निहोत्री का विस्फोटक बयान: सत्ता के गलियारे में तूफान

जब उपमुख्यमंत्री ने खुद ही फोड़ा सरकार का भ्रम-बुलबुला

मंडी (हिमाचल प्रदेश) – मंडी के मंच से उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने जो राजनीतिक भूचाल खड़ा किया है, वह हिमाचल की कांग्रेस सरकार के भीतर सुलगते लावे का खुला प्रदर्शन है। “रात के अंधेरे में निपट देंगे” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अग्निहोत्री ने न केवल लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सीमा लांघी, बल्कि अपनी ही सरकार के सीने पर सबके सामने छुरा भोंक दिया।

जब भाषा बन गई हथियार

अग्निहोत्री के भाषण में इस्तेमाल हुए शब्द केवल राजनीतिक बयानबाजी नहीं, बल्कि सत्ता के शूल हैं जो सरकार की नंगी नसों को चुभ रहे हैं:

  • “रात के अंधेरे में निपट देंगे” – यह धमकी लोकतंत्र के माथे पर काला टीका है
  • “नेस्तनाबूद कर देंगे” – विनाश की यह भाषा सत्ता के नशे का प्रमाण
  • “डंडा पकड़ो” – तानाशाही सोच का खुला इजहार
  • “दोनों हाथों से निपट दो” – मुख्यमंत्री को दी गई यह नसीहत सरकार के भीतर की खाई को उजागर करती है

 सत्ता का संकट या नेतृत्व की विफलता?

पहला शूल: अफसरशाही पर अविश्वास

जब कोई उपमुख्यमंत्री यह आरोप लगाता है कि अधिकारी “भाजपा नेताओं के घरों में हाजिरी लगा रहे हैं”, तो यह सवाल उठता है – क्या सरकार की पकड़ वाकई इतनी कमजोर हो गई है? या फिर यह महज राजनीतिक हताशा का प्रदर्शन है?

असलियत यह है कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार शुरू से ही आंतरिक कलह और विधायकों के विद्रोह से जूझती रही है। राज्यसभा चुनाव की हार और विधायकों का बीजेपी में पलायन इस सरकार की नींव को हिला चुका है। ऐसे में अग्निहोत्री का यह आक्रोश सत्ता फिसलने का डर दर्शाता है।

मुख्यमंत्री को सार्वजनिक फटकार

मुकेश अग्निहोत्री द्वारा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को खुले मंच से “ऐसे काम नहीं चलेगा” कहना राजनीतिक शिष्टाचार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। यह सत्ता में दो सिर वाले राक्षस की कहानी है जहां एक सिर दूसरे को ही खाने पर तुला है।

इस सार्वजनिक नसीहत के पीछे तीन संभावित कारण हो सकते हैं:

  1. पदों के बंटवारे में असंतोष – अग्निहोत्री का “जिसे जो कुर्सी देनी है, अब दे दो” कहना साफ करता है कि वे और उनके गुट के लोग नाखुश हैं
  2. कार्यकर्ताओं में बढ़ती नाराजगी – जमीनी स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ता सरकार से निराश हैं
  3. 2027 के चुनाव की चिंता – “दो साल रह गए” कहकर अग्निहोत्री ने समय की कमी का अलार्म बजाया है

 लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या

“रात के अंधेरे में निपट देंगे” – यह वाक्य भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। यह गुंडागर्दी की भाषा है, शासन की नहीं। यह दर्शाता है कि सत्ता किस तरह लोगों को अंधा और अहंकारी बना देती है।

क्या यही वह “बदलाव” है जिसका वादा कांग्रेस ने हिमाचल की जनता से किया था? क्या धमकियों और डर का राज स्थापित करना लोकतंत्र का उद्देश्य है?

राजनीतिक पोस्टमार्टम: क्यों फूटा यह ज्वालामुखी?

कारण 1: सत्ता का सिकुड़ता दायरा

राज्यसभा चुनाव में हार और क्रॉस वोटिंग ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी। विधायकों पर नियंत्रण खोने का यह डर अग्निहोत्री के हर शब्द में झलकता है।

कारण 2: आंतरिक गुटबाजी

सुक्खू और अग्निहोत्री के बीच सत्ता को लेकर तनातनी कोई छिपी बात नहीं। यह भाषण दरअसल कुर्सी की जंग का एक और दौर है।

कारण 3: जमीन फिसलने का अहसास

2027 के चुनाव नजदीक आते देख कांग्रेस नेतृत्व घबराया हुआ है। अफसरशाही पर नियंत्रण न होना इस बात का संकेत है कि सत्ता अब केवल कागजों पर रह गई है

खतरे की घंटी: हिमाचल लोकतंत्र के लिए

अग्निहोत्री के इस बयान से तीन बड़े खतरे उभरते हैं:

पहला, यह संदेश जाता है कि अफसरों को धमकाना स्वीकार्य है। यह नौकरशाही की स्वायत्तता पर हमला है।

दूसरा, मुख्यमंत्री को सार्वजनिक फटकार लगाना संवैधानिक पदों की गरिमा को नुकसान पहुंचाता है।

तीसरा, “रात के अंधेरे में निपटने” जैसी भाषा कानून के राज को कमजोर करती है और गुंडाराज को प्रोत्साहन देती है।

विपक्ष के लिए सोने का मौका

भाजपा के लिए यह भाषण राजनीतिक बारूद का ढेर है। अग्निहोत्री ने खुद ही स्वीकार कर लिया कि:

  • अफसर बीजेपी नेताओं के करीब हैं
  • सरकार में अनुशासन नहीं है
  • मुख्यमंत्री कमजोर हैं
  • कार्यकर्ता नाखुश हैं

 सत्ता का नशा या राजनीतिक आत्मघात?

मुकेश अग्निहोत्री का यह भाषण राजनीतिक आत्मघात की मिसाल बन सकता है। जब कोई सरकार खुद ही अपनी कमजोरियां उजागर करने लगे, तो समझ लीजिए कि अंत की शुरुआत हो चुकी है। हिमाचल की जनता ने कांग्रेस को मौका दिया था, लेकिन जो सरकार अपने ही अफसरों को “रात के अंधेरे में निपटाने” की धमकी दे, वह जनता की सेवा कैसे करेगी? यह भाषण केवल अग्निहोत्री की हताशा नहीं, बल्कि पूरी कांग्रेस सरकार के पतन का संकेत है। शब्दों के ये शूल अब उन्हीं को चुभेंगे जिन्होंने इन्हें फेंका है।

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