हीटर कमरों में जल रहे हैं, दिव्यांग ठंड में जल रहे हैं — राहुल

Heaters are burning in rooms, disabled people are burning in the cold – Rahul

 

 

हिमाचल प्रदेश के शिमला में दिव्यांगों का यह धरना सिर्फ़ एक आंदोलन नहीं, बल्कि उन ज़िंदगियों की त्रासदी, पीड़ा और उपेक्षा का प्रमाण है जो बीते ढाई साल से अपनी जायज़ माँगों को लेकर सचिवालय के पास बैठे हुए हैं। यह कोई राजनीतिक विरोध नहीं—यह उन लोगों का संघर्ष है, जिनकी आवाज़ को बार-बार अनसुना किया गया, जिनकी उम्मीदों को हर बार आधे रास्ते पर छोड़ दिया गया, और जिनके धैर्य की परीक्षा इतनी लंबी ली गई कि अब यह संघर्ष उनके अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है।

सबसे दर्दनाक और शर्मनाक दृश्य यह है कि जहाँ सरकार के दफ़्तरों और सरकारी आवासों में हीटर जलकर लोगों को सर्दी से बचा रहे हैं, वहीं छोटा शिमला में बैठे दिव्यांग भाई-बहन कड़कड़ाती ठंड, बरसती ओस और जमती रातों से लड़ते हुए अपने हक़ की आवाज़ उठा रहे हैं। जिस ठंड में एक आम इंसान बाहर कुछ मिनट खड़ा नहीं रह सकता, उसी ठंड में ये लोग खुले आसमान के नीचे रातें गुज़ार रहे हैं। यह दृश्य न सिर्फ़ दिल तोड़ देता है, बल्कि यह उस व्यवस्था की कठोरता को भी उजागर करता है, जो संवेदना सुनने से पहले फ़ाइलें खोलना ज़रूरी समझती है।

क्या सरकार को उनका दर्द दिखाई नहीं देता?
क्या इतने वर्षों से सड़क पर बैठा यह संघर्ष सरकार के कानों तक नहीं पहुँच पाता?
क्या चुनावों के समय किए गए वादे सिर्फ़ पोस्टरों और भाषणों में ही अच्छे लगते हैं?

वास्तविकता यह है कि जिन लोगों को सबसे ज़्यादा सहारे, संवेदनशीलता और सम्मान की ज़रूरत है, वही लोग आज सबसे अधिक उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। अपने हक़ के लिए लड़ते-लड़ते उनकी आँखों में चमक तो अभी भी है, पर उनके हाथों की गर्माहट ठंड छीन चुकी है… और अफ़सोस, अभी भी सरकार का दिल नहीं पिघल रहा।

मैं सरकार और प्रशासन से दोनों हाथ जोड़कर हृदय की गहराइयों से विनती करता हूँ—
कृपया इनकी आवाज़ को सुना जाए।
इनकी पीड़ा को समझा जाए।
इनकी माँगों पर तुरंत, संवेदनशील और मानवीय कार्रवाई की जाए।

दिव्यांगों की समस्या कोई काग़ज़ों में दबा दिया जाने वाला मुद्दा नहीं—यह इंसानियत का सवाल है। यह नैतिक ज़िम्मेदारी है, जिसे टालने का अधिकार किसी भी सत्ता, किसी भी व्यवस्था के पास नहीं होना चाहिए। अगर हम इन्हें अनदेखा करते हैं, तो हम सिर्फ़ एक समुदाय नहीं, बल्कि अपनी इंसानियत को भी चोट पहुँचाते हैं।

मैं और मेरे सभी साथी इस आंदोलन के साथ मजबूती, संवेदना और पूरी निष्ठा के साथ खड़े हैं।
अगर ज़रूरत पड़ी, तो हम भी बिना किसी झिझक और बिना किसी डर के उनके साथ धरने पर बैठेंगे, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ़ दिव्यांगों की नहीं—यह मानवीय गरिमा, न्याय और संवेदना की लड़ाई है।

सरकार से अंतिम प्रार्थना—
इनकी आवाज़ सुनी जाए,
इनकी पीड़ा को समझकर समाधान निकाला जाए,
और इस कड़कड़ाती ठंड में सड़क पर बैठने को मजबूर इन दिव्यांगों को इंसाफ़, राहत और सम्मान दिलाया जाए।

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