आयस्टर मशरूम अब स्वास्थ्यवर्धक भोजन के रूप में उभर रही है, जो विशेष रूप से रोगियों के लिए लाभकारी है। इससे किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ मिल रहा है। राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र अन्य मशरूम प्रजातियों की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी अनुसंधान कर रहा है ताकि स्वास्थ्य व कृषि दोनों क्षेत्रों में इसका व्यापक लाभ मिल सके। मशरूम को लेकर राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन के निदेशक डॉ. वी.पी. शर्मा ने जानकारी दी है कि दुनियाभर में करीब 3000 ऐसी मशरूम की प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें खाया जा सकता है। इन प्रजातियों में कुछ औषधीय रूप में उपयोग होती हैं, तो कुछ को सामान्य रूप से पकाकर खाया जाता है। उन्होंने बताया कि मशरूम प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है और स्वादिष्ट होने के कारण इसकी मांग देश-विदेश में तेजी से बढ़ रही है।राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन के निदेशक डॉ. वी.पी. शर्मा ने बताया कि वर्तमान में आयस्टर मशरूम की विशेष मांग देखी जा रही है। यह मशरूम किसी भी जैविक अवशेष पर उगाई जा सकती है। पहले इसे केवल भूसे पर उगाया जाता था, लेकिन अब अनुसंधान द्वारा तुलसी और अदरक जैसे औषधीय पौधों के अवशेषों पर इसे उगाने में सफलता मिली है। इसका परिणाम यह हुआ है कि मशरूम में अब तुलसी और अदरक के औषधीय गुण भी शामिल हो रहे हैं, जिससे इसकी गुणवत्ता में कई गुना वृद्धि हुई है।बाइट राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र सोलन के निदेशक डॉ. वी.पी. शर्मा