इंसान की दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत उससे कुछ भी संभव करवा सकती है. मेहनत और लग्न ऐसे हथियार हैं जिनकी चोट से बड़े से बड़ा मुसीबतों का पहाड़ तोड़ कर सुनहरे भविष्य की तरफ जाने वाला राह बनाया जा सकता है. आमतौर पर ऐसी बातें किताबी लगती हैं लेकिन यही बातें हकीकत तब लगने लगती हैं जब सुकरात सिंह जैसे युवा कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की होती.
ये कहानी है कटिहार रेलवे स्टेशन पर अपने पिता के साथ चाय बेचने वाले युवक सुकरात सिंह की, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनतके दम पर बिहार पुलिस में जगह बना ली है. सुकरात ने क्या हासिल किया है, ये जाने से जरूरी है कि उन्होंने ये कहां से उठ कर और किन परिस्थितियों में हासिल किया है. उनके लिए यहां तक पहुंचने का सफर बेहद कठिन रहा है.
15 साल पहले छिन गया सबकुछ
15 साल पहले तक सुकरात और उनके परिवार के सामने ज्यादा मुसीबतें नहीं थीं. वह अपने परिवार के साथ मनिहारी थाना क्षेत्र के मेदनीपुर में रह कर पढ़ाई कर रहे थे. खेती-किसानी के दम पर चल रहे उनके परिवार में आर्थिक तंगी भी काफी कम थी. लेकिन किस्मत ने उन्हें 2007 में एक साथ ही कई दुख दे दिए. गंगा नदी के भीषण कटाव के कारण आई बाढ़ में उनकी झोपड़ी, खेत खलिहान सबकुछ पानी में समा गया. परिवार की स्थिति ऐसी हो गई कि भूखों मरने की नौबत आ गई.
चाय बेची मगर पढ़ई नहीं छोड़ी
इसके बाद पेट पालने के लिए सुकरात का पूरा परिवार मनिहारी रेलवे स्टेशन के समीप आकर बस गया. सुकरात स्टेशन के पास ही चाय की दुकान चलाने लगे, जिससे कि परिवार का पेट भर सके. सुकरात भी पिता के काम में हाथ बंटाने लग गए. इतना सब गंवाने के बाद भी सुकरात के लिए एक बात अच्छी ये थी कि उन्होंने आर्थिक बदहाली में भी हार नहीं मानी और शिक्षा से नाता नहीं तोड़ा. चाय बेचने के दौरान उन्हें जितना भी समय मिलता वह उसमें यूट्यूब की मदद से पढ़ाई करते.
पा ली सफलता
साल 2018 में उन्होंने दारोगा परीक्षा दी लेकिन वह फिजिकल में सफल नहीं हो पाए. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोगुनी मेहनत से परीक्षा की तैयारी करने लगे. दूसरे प्रयास में वह सफल रहे और सब इंस्पेक्टर के लिये चयनित हो गए. सुकरात मानते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कामयाबी जरूर मिलती है. इसके साथ ही वह अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं.