प्राकृतिक खजाने से आत्मनिर्भरता की ओर: बुरांश के फूलों ने बदली ग्रामीणों की तकदीर

 

हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ क्षेत्र के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाला बुरांश का फूल अब स्थानीय लोगों के लिए आय का नया स्रोत बन रहा है। इन दिनों जंगलों में लाल रंग के बुरांश के फूल अपनी खूबसूरती के साथ-साथ औषधीय गुणों के कारण भी चर्चा में हैं।

बागवानी विभाग द्वारा स्थापित फल विधायन केंद्र ने इस प्राकृतिक उपहार को आर्थिक अवसर में बदल दिया है। यहाँ बुरांश के फूलों से जैविक स्वकेश (स्क्वैश) तैयार किया जाता है, जिसकी बाजार में जबरदस्त मांग है। यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक होता है और इसके औषधीय गुण इसे और भी मूल्यवान बनाते हैं।

आर्थिक समृद्धि की नई राह

स्थानीय लोग जंगलों से इन फूलों को एकत्र कर फल विधायन केंद्र में बेचते हैं, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होती है। कनिष्ठ सहायक जगदीश ठाकुर के अनुसार, इस केंद्र में अब तक लगभग 3,000 क्विंटल बुरांश के फूल स्थानीय लोगों से ₹28 प्रति किलो की दर से खरीदे गए हैं।केंद्र में इन फूलों को पहले वैज्ञानिक विधि से साफ किया जाता है, फिर उनसे उच्च गुणवत्ता वाला स्वकेश तैयार किया जाता है। इसकी बाजार में लगातार बढ़ती मांग ने ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्वावलंबन की ओर कदम

यह पहल सिर्फ आर्थिक मजबूती तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीणों को प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी देती है। जंगलों में स्वाभाविक रूप से उगने वाला यह फूल अब ‘हरे-भरे रोजगार’ का प्रतीक बन चुका है।

राजगढ़ के इन मेहनतकश लोगों की कहानी साबित करती है कि अगर संसाधनों का सही उपयोग हो, तो पहाड़ों में भी आर्थिक उन्नति के द्वार खुल सकते हैं। बुरांश का यह लाल फूल अब सिर्फ पहाड़ों की शोभा ही नहीं, बल्कि ग्रामीणों की समृद्धि का प्रतीक भी बन गया है।

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