संस्थान के उपनिदेशक विपिन शर्मा के मुताबिक, मशरूम की खेती किसानों के लिए “प्रकृति का वरदान” है, जो न केवल मौसम की मार से मुक्त है, बल्कि पारंपरिक फसलों के मुकाबले कम संसाधनों में अधिक मुनाफा देती है। शर्मा ने बताया कि यह अनुसंधान केंद्र किसानों को मशरूम उत्पादन की आधुनिक तकनीक, बीज उपलब्ध कराने और बाजार से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रहा है।
विपिन शर्मा ने कहा, “मशरूम की खेती में न तो जंगली जानवरों का खतरा है और न ही बारिश-सूखे का असर। यह फसल 12 महीने उगाई जा सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके अवशेषों को भी खाद या दूसरे उत्पादों में बदला जा सकता है, जबकि गेहूं-धान जैसी फसलों के अवशेष अक्सर जलाए जाते हैं।” उन्होंने बताया कि किसान खेती के साथ साथ मशरूम की खेती भी करे तो उसका लाभ दोगुना हो सकता है। उन्होंने बताया कि पिछले दस वर्षों में मशरूम में विभाग द्वारा सराहनीय कार्य किया गया जिसकी बदौलत आज 15 तरह की मशरूम की फसलें आज समूचे देश में लगाई जा रही है।
बाइट उपनिदेशक विपिन शर्मा