बच्चेदानी में रसौली: महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर, समय पर जांच है

जरूरीमहिलाओं में बच्चेदानी  में रसौली यानी फाइब्रॉइड की समस्या आम होती जा रही है। हालांकि, इसे लेकर घबराने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह समस्या खान-पान से नहीं होती, बल्कि आनुवांशिक कारणों से प्रभावित हो सकती है। यह जानकारी स्त्री रोग विशेषज्ञ  रितुराज गायकवाड़ ने मीडिया को दी।  उन्होंने बताया कि    अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार में पहले किसी महिला को यह समस्या रही हो, तो अगली पीढ़ी की महिलाओं में भी इसके विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर रसौली का आकार बड़ा हो जाता है, तो यह गर्भावस्था के दौरान शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती है। कई मामलों में, बच्चे को पर्याप्त रक्त प्रवाह न मिलने से उसका संपूर्ण विकास प्रभावित हो सकता है। हालांकि, यदि रसौली 5 सेंटीमीटर तक की होती है, तो इसका अधिक असर नहीं पड़ता।स्त्री रोग विशेषज्ञ  रितुराज गायकवाड़ ने बताया कि  हर छह महीने में रसौली की जांच कराना बेहद जरूरी है। इससे यह पता चलता है कि इसका आकार बढ़ रहा है या नहीं। अगर रसौली का आकार बढ़ता है, तो समय रहते डॉक्टर से परामर्श लेकर उचित उपचार करवाना चाहिए।अगर रसौली तेजी से बढ़ रही हो या गंभीर लक्षण उत्पन्न कर रही हो, तो इसे ऑपरेशन द्वारा हटवाना जरूरी हो सकता है। सही समय पर उपचार न कराने से भविष्य में महिलाओं को अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, डॉक्टर की सलाह के अनुसार नियमित जांच और उपचार पर ध्यान देना जरूरी है।बाइट स्त्री रोग विशेषज्ञ  रितुराज गायकवाड़

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