सर्दियों के आते ही सांस संबंधी बीमारियां बढ़ने लगतीं हैं। ठण्ड में तापमान गिरने और बढ़ते वायु प्रदूषण कि वजह से अस्थमा की समस्या पहले से ज्यादा गंभीर हो जाती है इसीलिए ऐसे मौसम में अस्थमा के मरीजों को खास सावधानी बरतनी कि जरुरत होती है । उपचार में अगर देरी हो जाए तो कई बार यह जानलेवा हो जाता है ।
स्टार टुडे से बातचीत करते हुए फीफा फिजियो थेरेपिस्ट डॉ. कुशल कुमार तिवारी ने अस्थमा कि समस्या को लेकर बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की कि यह होता क्या है, इसके लक्षण क्या होते हैं और इससे बचाव किस तरह कर सकते हैं।
अस्थमा होता क्या है और इसके लक्षण होते क्या हैं
डॉ. तिवारी ने बताया की अस्थमा एक फेफड़े कि बीमारी होती है जिसमें सांस लेने कि जो नली होती है उसमें सूजन आ जाती है। जिससे यह सिकुड़ जाती है और इस वजह से हवा ठीक से अंदर नहीं जा पाती और साँस लेने में दिक्कत होने लगती है। यदि आपको सांस लेने में दिक्कतें आ रही हैं और साँस छोड़ते वक़्त व्हीज़िंग हो रही है साथ ही सीने में भी दबाव जैसा महसूस हो रहा हो तो ये लक्षण अस्थमा के हो सकते हैं। जब समस्या ज्यादा बढ़ जाती है उस कंडीशन में लंग्स में एयर का सप्लाई रेट कम हो जाती है जिसके कारण चेस्ट पेन होता है, हाईविसिलिंग साउंड होता है, इंटरनल इंफ्लमैशन होता है जिसे आम भाषा में सूजन कहते हैं और छाती के जुड़े हुए हिस्सों में मांसपेशियों में ऐठन आ जाता है।
अस्थमा होने के क्या कारण होतें हैं
दुनियाभर में हुए शोध के अनुसार के यह जो समस्या होती है वह मुख्य रूप से पर्यावरण और अनुवांशिक वजह से होती है। हवा प्रदूषण के पार्टिकल बहुत छोटे होते हैं और आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। इसकी वजह से अस्थमा का लक्षण तुरंत आपके शरीर पर में दिखाई देने लगता है और ज्यादा प्रदूषण वाली जगह पर अस्थमा होने का खतरा ज्यादा होता है। इसके अलावा और भी कारण हो सकते हैं अस्थमा के जैसे कि धुएं के संपर्क में रहना, सिगरेट पीना, प्रदूषित स्थान पर रहने से, किसी चीज से एलर्जी होना और स्ट्रेस में रहना आदि।
अस्थमा के उपचार
उनका कहना है कि सर्दी के मौसम में यदि समय रहते सावधानी नहीं बरती गई और दवाई नहीं ली गयी तो यह गंभीर रूप भी ले सकता है। इस समस्या का कोई स्थायी उपचार नहीं होता ,लेकिन दवाईयों के जरिये इसके लक्षणों को कम या कंट्रोल किया जा सकता है। ये दवाइयाँ आपके साँस कि नली के आसपास की मांसपेशियों को फैलाती है, जिससे हवा के आवागमन में आसानी होती है। डॉक्टर की सलाह से ही इसकी दवा लें। खुद अपनी मर्जी से इसके लिए कोई भी दवाईयां न लें।
अस्थमा के मरीजों के लिए डॉ. तिवारी ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए
यदि 5 दिन से ज्यादा खांसी हो तो कार्डियोपल्मोनरी डॉक्टर (फेफड़े का डॉक्टर) से संपर्क करें। फिजीओथेरपी में स्पाइरोमेट्री का इस्तेमाल भी इसमें कारगर साबित हो सकता है। दवाइयों का नियमित उपयोग करें और इसे अचानक बंद न करें। डॉक्टर की सलाह पर ही इसकी दवा छोड़नी चाहिए। हर 10-15 दिनों में डॉक्टर से कंसल्ट करते रहना चाहिए। गर्म पानी का भाप लें । मास्क या रुमाल का भी इस्तेमाल भी कर सकते है। शरीर को हाइड्रेटेड रखना जरूरी होता है। शरीर पर गुनगुना तेल से मालिश या छाती को गर्म पानी से सेंकाई भी कर सकते हैं। साथ ही इसमें श्वसन योग भी किया जा सकता है । संक्रमित लोगों से दूर रहें ताकि संक्रमण का खतरा कम हो और खास कर प्रदूषण से बचें। सर्दी में हवा की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है और अस्थमा के लक्षण बढ़ जाते हैं। इसीलिए सर्दियों में अस्थमा के मरीजों के लिए सावधान रहना बेहद जरूरी है। अगर थोड़ी बहुत सतर्कता बरती जाये तो इन समस्यायों से बचा जा सकता है।