छठ पूजा है क्या है और इसे महापर्व क्यों कहा जाता है। साथ ही इसके पीछे की मान्यताएं क्या क्या हैं।

What is Chhath Puja and why is it called a great festival? Also what are the beliefs behind it.

 

यह पर्व बड़े ही उमंग,उल्लास और हर्ष के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से बिहार,उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है यह । साथ ही दूसरे राज्यों और विदेशों में भी जहाँ कहीं भी बिहार, झारखण्ड या उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं वहां भी वैसे ही उत्साह और जोश उमंग के साथ मनाया जाता है। जो लोग अपने घर से दूर रहते हैं वो सभी छठ पूजा को मनाने के लिए अपने काम धाम छोड़ कर अपने गांव लौट आतें हैं। इस पर्व को लेकर लोगो में बहुत आस्था होती है कि सच्चे मन और श्रद्धा से यदि यह पर्व किया जाये तो उनकी प्रार्थना स्वीकार होती हैं और इससे घर परिवार में सुख समृद्धि आती है।

छठ पूजा का चार दिवसीय त्योहार है जो की नहाय खाय और खरना से शुरू होता है । सूर्य को जीवन शक्ति के देवता माना गया है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाये जाने वाले इस हिंदू पर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की विधि-पूर्वक पूजा होती है। यह एक मात्र ऐसा व्रत है जिसमें चढ़ते सूरज की जगह के साथ साथ डूबते सूरज की पूजा होती है। लोग सोचते होंगे जैसे सूरज का ढलना कोई ख़राब बात या अशुभ है। पर हम भारतवासी ऐसा नहीं मानते हैं ,हम डूबते हुए सूरज को भी पूजतें हैं। क्यों कि हम मानते हैं की सूरज डूबता नहीं बल्कि दिशा बदलता है। छठ पर्व केवल सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसका पर्यावरणीय महत्व भी है। इसमें बहुत ही ज्यादा साफ़ सफाई का ध्यान रखा जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल और सूर्य की पूजा की जाती है। यह एक तरीके से प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भी एक जरिया है साथ ही यह हमें यह भी सिखाता है कि कैसे हमें प्रकृति के संरक्षण को महत्व देना चाहिए जो आज के समय के लिए बहुत जरुरी भी है। छठ का व्रत बहुत कठिन होता है। व्रतधारी 36 घंटे तक बिना खाना और पानी पिए रहते है। इस त्योहार के माध्यम से महिलाएं और पुरुष इन देवताओं से अपने परिवार की समृद्धि और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं।

यह पर्व पहली बार कब शुरू हुयी थी इसके बारे ठीक से कहा नहीं जा सकता पर ऐसी कई उल्लेख मिलती हैं जिनसे पता चलता है की यह कब और कैसे शुरू हुयी। कुछ का उल्लेख ऋग्वेद ग्रंथों में भी किया गया है। पुराणों में माँ कात्यायिनी को ही छठ माता कहा जाता है जो कि भगवान ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं । हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में द्रौपदी छठ पूजा किया करती थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार कर्ण,जो सूर्य के पुत्र थे,महाभारत काल में जल में घंटों खड़े होकर सूर्य देव की उपासना किया करते थे। और महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण अंग देश के राजा थे और यह अंग देश अब बिहार के भागलपुर जिला के रूप में जाना जाता है। इसीलिए बिहार में इसे बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है ।

इस साल का छठ आज 5 नवंबर 2024 से शुरू हो चूका है और यह शुक्रवार 8 नवंबर 2024 को समाप्त हो जायेगा । पुरे 4 दिनों तक यह चलेगी।
छठ पूजा का पहला दिन – नहाय खाय (5 नवंबर 2024)
छठ पूजा का दूसरा दिन – खरना (6 नवंबर 2024 )
छठ पूजा का तीसरा दिन -डूबते हुए सूर्य को संध्या अर्घ्य (7 नवंबर 2024 )
छठ पूजा का चौथा दिन – (उगते हुए सूर्य को उषा अर्घ्य (8 नवंबर 2024 )

इस तरह किया जाता है इस पूजा को:
छठ पूजा शुरू होने से पहले पुरे घर की बहुत अच्छे से सफाई की जाती है साथ ही घर की सभी चीजें जैसे कि कपडे, बर्तन और फर्नीचर आदि सभी चीजों को ठीक से साफ़ किया जाता है। यूँ कहले की इतनी विधि पूर्वक सफाई किसी और पर्व में नहीं की जाती । उसके बाद छठ शुरू हो जाता है पहले दिन नहाय खाय से ।

1)पहला दिन “नहाए-खाए”
नहाए-खाए के दिन व्रती सिर्फ सादा, सात्विक भोजन करते हैं. आमतौर पर चावल, चने की दाल में कद्दू डालकर दाल बनती है साथ ही ,आकाश के फूल की पकौड़ी ,और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। भोजन में लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं होता है।
2)दूसरा दिन “खरना”
इसे “लोहंडा-खरना” भी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले पूरा दिन उपवास रखकर शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद में चावल और चने की दाल ,पूरी और खीर बनती है और इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। व्रतधारी खा लेते हैं उसके बाद सभी परिवार और मित्र लोग भी प्रसाद ग्रहण करते हैं।
इस पूजा में जो भी भोजन बनता है, हमेशा मिट्टी या कांसे के बर्तनों में आम की लकड़ी या गोबर के उपलों पर पकाया जाता है।
3)तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य
सुबह कई तरह के प्रसाद बनाया जाता है जिसमें 2 चीजें बहुत जरुरी माना जाता है जैसे की घी का ठेकुआ और चावल-आटे का घी में बना लड्डू बनाया जाता है। इस तीसरे दिन को पुरे दिन और रात उपवास रखकर शाम को गंगा नदी या कोई भी पवित्र नदी के पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जसमें सूर्य देव को विशेष प्रसाद “ठेकुवा” “लड्डू” और मौसमी फल भी भोग के तौर अर्पित किया जाता है। और दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है।
4)चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन बिल्कुल सबेरे उगते हुए सूर्य को तीसरे दिन की तरह ही अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया किया जाता है। इस तरह व्रतधारी 36 घंटे तक बिना खाना और पानी पिए रहकर पूजा अर्चना करते हैं ।

उसके बाद सभी फैमिली, रिश्तेदार और मित्रगण व्रत करने वाले के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *