साबूदाने (Sabudana) को भारत में इतना शुद्ध माना जाता है कि इसे लोग व्रत में फलाहार के रूप में खाते हैं. इसकी खिचड़ी (Sabudana Khichdi), खीर (Sabudana Kheer), पापड़ तथा अन्य कई तरह के व्यंजन बनते हैं जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते हैं.
बहुत से लोग यह नहीं जानते कि कई तरह के फ़ायदों से भरपूर ये साबूदाना आखिर बनता कैसे है. कुछ लोग तो यही समझते हैं कि ये किसी तरह का अनाज है जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है. चलिए, आज हम आपको साबूदाने के बारे में हर वो बात बताते हैं जो आपको जाननी चाहिए:
अनाज नहीं तो क्या है साबूदाना ? (Sabudana in Hindi)
जिस साबूदाने को अधिकतर लोग अनाज समझते हैं वह अनाज नहीं बल्कि एक विशेष प्रकार के पेड़ के तने से बनने वाला खाद्य पदार्थ है. साबूदाना मूलरूप से पूर्वी अफ्रीका में पाया जाने वाले पेड़ सागो पाम (Sago) नामक पेड़ के तने के गूदे से तैयार किया जाता है. इस पेड़ के मोटे तने के बीच के हिस्से को पीस कर पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद इसके दाने बनाने के लिए इस पाउडर को छानकर गर्म किया जाता है. जिस कच्चे माल से साबुदाना तैयार होता है, उसे टैपिओका रूट (Tapioca Root) कहा जाता है. इसे कसावा नाम से भी जाना जाता है.
कैसे बनता है साबूदाना?
टैपिओका स्टार्च कसावा नामक कंद से बनता है. कसावा देखने में शकरकंद जैसा लगता है. कसावा के गूदे को काटकर बड़े-बड़े बर्तनों में आठ दस दिन के लिए रख दिया जाता है. इसमें हर रोज़ पानी डाला जाता है तथा इस प्रक्रिया को 4-6 महीने तक बार-बार दोहराया जाता है. इसके बाद गूदे को मशीनों में डाल दिया जाता है और तब बनता है साबूदाना.
इस प्रक्रिया के बाद कच्चे साबूदाने को सुखा कर इसे ग्लूकोज़ और स्टार्च से बने पाउडर से पॉलिश किया जाता है. आपने देखा होगा कि साबूदाना मोतियों की तरह चमकता है लेकिन मशीन से निकलने के तुरंत बाद यह इतना खूबसूरत नहीं दिखता. बल्कि ये देखने लायक बनता है इस पोलिश के बाद. इस तरह से साबूदाना बाजार में आने को तैयार होता है.
भारत में कहां होता है उत्पादन
कुछ लोग मानते हैं कि भारत में साबूदाना बहुत ही घिनौने तरीके से बनाया जाता है. दरअसल बताया जाता है कि साबूदाना बनाने के लिए पैरों का इस्तेमाल किया जाता है और इसे पैरों से मैश किया जाता है. हालांकि भारत में जहां भी साबूदाने का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है, वहां ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता. यहां साबूदाना बनाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल ही किया जाता है.
बता दें कि भारत में साबूदाने का उत्पादन 1943-44 से पहले इतना ज़्यादा नहीं था. पहले लोग इसे कम मात्रा में तैयार करते थे. टैपिओका की जड़ों से दूध निकाला जाता था, फिर उसे छान कर उससे दाने तैयार किए जाते थे. भारत में सबसे अधिक मात्रा में साबूदाने का उत्पादन तमिलनाडु के सेलम में होता है. कसावा सबसे ज़्यादा सेलम में उगाया जाता है तथा टैपिओका स्टार्च के सबसे ज़्यादा प्रोसेसिंग प्लांट भी सेलम में ही लगे हुए हैं.
साबूदाने के फायदे व नुकसान (Sabudana Benefits, Side Effects)
साबूदाने के बहुत से फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं. यह पौष्टिक आहार इतना हल्का होता है कि बहुत जल्दी पच जाता है. इसे व्रत में खाने का एक मुख्य कारण यह है कि इसमें कार्बोहाइड्रेट की अधिक के साथ साथ कैल्शियम और विटामिन-सी भी पाया जाता है. शरीर को इससे ऊर्जा मिलती है और व्रत में खाना ना खाने के बावजूद भी इंसान कमज़ोरी महसूस नहीं करता.
वहीं नुकसान की बात की जाए थोड़ी सी गलती से यह जानलेवा भी साबित हो सकता है. दरअसल जिस कसावा से साबूदाना तैयार होता है वह बेहद जहरीला होता है. यदि इसे सही से ना पकाया जाए तो यह ज़हर का काम करता है. कसावा साइनाइड पैदा करता है, जो मनुष्य के लिए एक अत्यंत जहरीला है. इसका दूसरा नुकसान ये है कि इसमें बहुत अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट तथा कैलोरी पाई जाती है, जो कि वजन बढ़ाने में सहायक होती है. तो अगर आप वजन कम करने की सोच रहे हैं तो इससे दूरी बनाने में ही आपकी भलाई है.