हम अपने इतिहास से ही सीखते हैं, यही कारण है कि हमें स्कूल-कॉलेज से लेकर परीक्षा और इंटरव्यू तक के लिए इतिहास पढ़ना पड़ता है. हालांकि इतिहास के पन्नों पर दर्ज कई सूरमा ऐसे भी हैं जिनसे देश की बड़ी संख्या आज भी अनजान है. ऐसी ही थीं इतिहास की एक वीरांगना चांद बीबी, जिन्हें चांद सुल्ताना और चांद खातून के नाम से भी जाना गया.
आइए आज जानते हैं इस वीरांगना से जुड़ी कुछ खास बातें:
बचपन में गुजर गए पिता
सन 1500 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में जन्मीं चांद बीबी अहमदनगर के हुसैन निज़ाम शाह की बेटी थीं. निजाम शाह अपने क्षेत्र के लिए बड़ा नाम थे लेकिन जब चांद बीबी छोटी थीं तभी वह इस दुनिया को अलविदा कह गए. एक गृहणी होने के बावजूद पति के निधन के बाद चांद बीबी की मां ने अपना राजकाज संभाला. राज घराने में पली-बढ़ी चांद बीबी ने अच्छी घुड़सवारी सीखी. इसके साथ ही उन्हें फारसी, अरबी और मराठी भाषा का भी ज्ञान था.
पति का साथ भी छिन गया
14 साल की उम्र में चांद बीबी का निकाह बीजापुर सल्तनत के अली आदिल शाह प्रथम से हो गया. उन्होंने अपने पति के साथ राजकाज में पूरा साथ दिया. चांद बीबी पर संकट की घड़ी तब आई जब उसके पति आदिल शाह का निधन हो गया. आदिल शाह के गुजरते ही गद्दी पर बैठने वालों के बीच जंग छिड़ गई. बाद में भतीजा इब्राहीम आदिल शाह बीजापुर की गद्दी पर बैठा. और चांद बीबी राज्य-संरक्षक बन गईं.
हर कदम पर मिला विश्वासघात
हालांकि ये उस दौर की बात है जब एक महिला का सत्ता में होना बहुत से पुरुषों के लिए शूल के समान चुभने वाली बात थी. चांद बीबी के साथ भी ऐसा ही हुआ, उनके खिलाफ साजिशें शुरू हो गईं. साजिशों का खेल इतना गहरा होता चला गया कि उनके सबसे विश्वसनीय मंत्री कमाल खान भी विश्वासघात पर उतार आए. उसने सुल्तान इब्राहिम को गद्दी से हटाते हुए चांद बीबी को जेल में डाल दिया. इसके बाद वह गद्दी पर बैठ खुद सुल्तान बन गया. हालांकि जल्द ही पड़ोसी राज्यों ने बीजापुर पार हमला कर दिया और कमाल खान खुद भी गद्दी बचा नहीं पाया. कहा जाता है कि चांद बीबी ने इस हमले से बचने के लिए मराठाओं की मदद ली.
सम्राट अकबर का प्रस्ताव ठुकरा दिया
इस समय तक दक्षिण भारत के कुछ राज्य मुगलों के अधीन हो गए थे लेकिन चांद बीबी ने मुगलों के आगे घुटने नहीं टेके. उन्होंने दिलेरी दिखाते हुए अकबर जैसे सम्राट का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. अहमदनगर पहुंचने के बाद चांद बीबी को ख़बर मिली कि मुग़ल सम्राट अकबर उस वक्त उत्तर भारत के शक्तिशाली सम्राट थे. सम्राट ने अपने सत्ता के विस्तार के लिए अपने दूतों को अहमदनगर समेत दक्षिण भारत के हिस्सों में भेजा. लेकिन चांद बीबी नहीं झुकी.
इसका नतीजा ये निकला कि मुगलों ने अहमदनगर पर हमला कर दिया लेकिन इसके बावजूद भी चांद बीबी ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने साहस का परिचय देते हुए अहमदनगर की सेना का बखूबी नेतृत्व किया. वह अहमदनगर के किले को बचाने में तो सफल रहीं, लेकिन शाह मुराद ने अपने सैन्य बल की संख्या बढ़ाकर युद्ध करने का फैसला किया. चांद बीबी जानती थीं कि उनकी सेना इस हमले को रॉक नहीं सकती. ऐसे में उन्होंने गोलकोण्डा के मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह से साथ मिलकर लड़ने की अपील की.
आखिरी दम तक लड़ती रहीं
चांद बीबी अंत तक लड़ती रहीं और मुगलों को मात देने की कोशिश में लगी रहीं. लेकिन एक बार उन्हें फिर से धोखा मिला और उनका विश्वसनीय सेनापति मुहम्मद खान मुगलों से मिल गया. कहा जाता है कि सेनापति का ये धोखा चांद बीबी की हार और सम्राट अकबर की विजय का मुख्य कारण बना. हालांकि चांद बीबी ने जिस साहस के साथ मुगलों का सामना किया उसके लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा और वो हमेशा एक नायिका रहेंगी.